काश, नेहरू की ‘भारत एक खोज’ पढ़ ली होती, या उनके भाषण ‘कौन है भारत माता’ को समझ लिया होता
नाम बदलने को लेकर इस देश में घृणा की राजनीति चल रही है
दुनिया में कई देशों ने पिछले कुछ वर्षों में अपना नाम बदला पर उनकी स्थिति नहीं बदली
कॉरपोरेट मीडिया मक्कारी भरी कहानी बनाने की कोशिश कर रहा है
देश हर इंडेक्स में पिछड़ रहा है, धनी-धनी होता जा रहा, गरीब और गरीब

अशोक कुमार कौशिक

बहुत से सेलिब्रिटी को, बीजेपी के अहसानमंद लोगों को और डरे हुये गणमान्य व्यक्तियों को इशारा हुआ है कि वो सब तुरंत भारत को पहचानें और इसका एलान करें कि वो भारत में ही रहते हैं। वैसे 2004 में मुलायम सिंह यादव की कैबिनेट ने संविधान में संशोधित करके’ इंडिया दैट इज भारत’ के बजाय ‘भारत देट इज इंडिया’ को लेकर एक प्रस्ताव विधानसभा में पारित करवाया था तब भाजपा ने प्रस्ताव पारित होने से पूर्व ही विधानसभा से बहिर्गमन किया था।

काश, उन्होंने जवाहरलाल नेहरू की ‘भारत एक खोज’ पढ़ ली होती, या उनके भाषण ‘कौन है भारत माता’ को समझ लिया होता तो आज अचानक अपने देश की पहचान भारत के रूप में करने की मजबूरी न रहती।

चलो माना कि पढ़ लिख नहीं सकते, तो राजीव गांधी जी के चलाये गये ‘मेरा भारत महान’ अभियान से ही जुड़े रहते, उनकी न सुनते जो कहे थे कि 2014 से पहले भारत में पैदा होना शर्म की बात समझी जाती थी।

अगर वो यादें पुरानी पड़ गई हैं तो राहुल गांधी i जी के ‘भारत जोड़ो अभियान’ से ही जुड़ जाते। साथ चल कर देख ही लेते असली भारत को।

मगर उनसे ये सब तो हो न सका। अब आँखें मलते हुए जागे हैं कि मेरा भारत, मेरा भारत का नारा नहीं लगाया तो मोदी राज में जाने क्या हाल हो जाये।

उन सब से अब यही कहना है कि ‘डरो मत’।

नींद से आप लोग ही अभी जागे हो। कांग्रेस पार्टी हो, संविधान निर्माता हों, स्वाधीनता सेनानी हों, या फिर ‘हम, भारत के लोग’, सभी भारत माता को पहचानते हैं, समझते हैं, उसी संविधान से जुड़े हैं, जिसमें देश का नाम ‘भारत, अर्थात् इण्डिया’ लिखा हुआ है।

मशहूर गायक विजय लाल यादव की एक बिरहा है ‘पत्तू-खरपत्तू।’ बिरहा में होता यह है कि एक ख़ानदानी बाबा थे जो साल-दो साल पर यजमानों के घर आते-जाते थे… हुआ कुछ यूं कि जब अबकी बार बाबा एक यजमान के घर गये तो इस बार दोनों भाई अलग हो गये थे। बड़ी पेशो-पेश हुई, बाबा रहें तो किसके घर? अंततः दोनों भाई ने मिल-मिलाकर सहूलियत से बाबा को भी बाँट दिया। सुबह का खाना मेरा, साँझ का तेरा। आधे शरीर की सेवा हमारी, आधे की तुम्हारी। अर्थात सब कुछ आधा-आधा बंट गया। इस दौरान सब कुछ सकुशल चल रहा था, बाबा का एक पैर एक बहु दबाती तो दूसरा, दूसरी।

पत्तू एक गगरी पानी से नहलाता तो खरपत्तू दो गगरी से। बाबा को इसी नहलाई में आ गया बुखार। इस दौरान बाबा की खूब सेवा-सुश्रूआ हुई। दोनों की लगनशील सेवा ने बाबा के शरीर में गार्माहट पैदा की और बाबा ने मस्ती में आकर एक पैर पर दूसरा पैर चढ़ा बैठे। बस फिर क्या था? पत्तू ने खरपत्तू से आपत्ति की… ‘तोर बाबा मोरे बाबा पर चढ़त हवे, मने कर दे’ इसी खींचा-तानी में दोनों में गर्मी-गरमा हो गयी। पत्तू ने आव देखा न ताव लाठी उठाकर बाबा का एक पैर तोड़ दिया। खरपत्तू पीछे क्यों रहता, उसने दूसरी लाठी उठायी और बाबा की दूसरी टांग तोड़ दिया। इसी क्रम में बाबा की बड़ी-बड़ी दुर्दशा हुई। यहाँ तक की गाँव के प्रधान ने आकर बाबा के दोनों पैर दो रस्सीयों में बांध कर दो अलग-अलग खुटों में बधवा दिया। पर हद तो यह कि इस पूरी प्रक्रिया में बाबा की कोई राय न पूछी गयी, न ही उनकी हालत देखी गयी।

देश हर इंडेक्स में पिछड़ता जा रहा। धनी-धनी होता जा रहा, गरीब और गरीब। बेरोजगारों की फ़ौज थोढ़ी पर हाथ रखे रिल्स का मजा ले रही। लाखों-लाखों महिलाएं और लड़कियां साल-दर-साल गायब होती जा रही। अस्पतालों में मरीज की भरमार है। सड़क गड्ढों से लबरेज है। महंगाई इस कदर बढ़ रही की गरीब आदमी लाचार हो मौन पड़ गया है पर हमारी सरकार और विपक्ष इंडिया और भारत के लिए लड़ रहे हैं।

नाम रामदास रख देने से व्यक्ति हनुमान नहीं बन जाता। तुर्की ने अपना नाम बदल कर क्या तीर मार लिया? या फ़्रेंच कांगो? आज दुनिया में 200 से अधिक देश हैं, और उनमें से कई ने पिछले कुछ वर्षों में अपना नाम बदल लिया है। नाम बदलने भर से उनकी स्थिति नहीं बदली।

फारस से ईरान (1935)
सियाम से थाईलैंड (1939)
बर्मा से म्यांमार (1989)
हॉलैंड से नीदरलैंड (2020)
आयरलैंड के लिए आयरिश मुक्त राज्य (1949)
सीलोन से श्रीलंका (1972)
मैसेडोनिया गणराज्य से उत्तरी मैसेडोनिया गणराज्य (2019)
स्वाज़ीलैंड से इस्वातिनी (2018)
चेक गणराज्य से चेकिया (2016)
कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य के लिए ज़ैरे (1997)
पूर्वी जर्मनी से जर्मनी (1990)

देशों के नाम बदलने के कारण अलग-अलग हैं। कुछ देश औपनिवेशिक शासन से अपनी स्वतंत्रता को दर्शाने के लिए अपना नाम बदलते हैं। अन्य लोग अपने अतीत से दूरी बनाने के लिए अपना नाम बदलते हैं, जैसे कि जब बर्मा ने कई वर्षों तक देश पर शासन करने वाले सैन्य जुंटा के साथ अपना संबंध खत्म करने के प्रयास में अपना नाम बदलकर म्यांमार कर लिया। फिर भी अन्य लोग अपनी सांस्कृतिक पहचान को दर्शाने के लिए अपना नाम बदलते हैं, जैसे कि जब सीलोन ने अपना नाम बदलकर श्रीलंका कर लिया।

भारत नाम का कोई देश नहीं कभी था ही नहीं। भारत शब्द का सबसे पहला लिखित प्रमाण ऋग्वेद में मिलता है, जो लगभग 1500 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व के बीच लिखा गया था। ऋग्वेद में, भारत शब्द का प्रयोग एक ऐसे क्षेत्र के नाम के रूप में किया गया है, जो सिंधु नदी के मैदानों से लेकर हिमालय तक फैला हुआ है। यह सिर्फ़ इस उपमहाद्वीप का नाम था, जिसके आज कई टुकड़े हो चुके हैं। अंग्रेजों के अधीन आने के बाद जब यह सम्पूर्ण भूभाग एक हुआ, तब जाकर इसकी पहचान एक संपूर्ण देश के रूप में हुई, जिसको स्थानीय निवासियों द्वारा भारत देश कहा जाने लगा।

कुछ मामलों में, नाम परिवर्तन को सार्वभौमिक रूप से स्वीकार नहीं किया जाता है। उदाहरण के लिए, उत्तरी मैसेडोनिया गणराज्य को ग्रीस सहित कई देशों द्वारा अभी भी मैसेडोनिया कहा जाता है।

अंततः, किसी देश का नाम बदलने या न बदलने का निर्णय राजनीतिक होता है। ऐसे कई कारक हैं जिन पर सरकारों को यह निर्णय लेते समय विचार करना चाहिए, जैसे नाम का ऐतिहासिक महत्व, लोगों की राय और अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर संभावित प्रभाव।

कॉरपोरेट मीडिया मक्कारी भरी कहानी बनाने की कोशिश कर रहा है—

इंडिया का नाम बदलकर भारत किया जा रहा है। ऐसा इसलिए है ताकि भ्रम पैदा हो कि देश को इंडिया और भारत में किसी एक को चुनना है।

इंडिया का नाम बदलकर भारत नहीं किया जा रहा है बल्कि इंडिया नाम मिटाया जा रहा है। इंडिया और भारत दोनों एक ही देश के दो वैधानिक और सांस्कृतिक नाम हैं। जो इस देश से प्रेम करता है, वो उन तमाम नामों से प्रेम करता है, जिनसे भारत की पहचान है। भारत और इंडिया दोनों नाम समानार्थी एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं। पापा कहो या बाबूजी या अब्बू। मतलब पिता ही होता है।

एक शब्द जिसे लेकर देश का प्रधानमंत्री दस साल तक गाल बजाता रहा हो, स्टैंड अप इंडिया, मेक इन इंडिया, न्यू इंडिया जपता रहा हो वो शब्द अचानक घृणा का पात्र बन जाये ये कैसे संभव है?

ये सिर्फ जोंबी समाज में संभव है। जहां एक राजनेता अपने राजनीतिक फायदे के लिए कोई इशारे करे और बिना सोचे-समझे लाखों लोग उसके पीछे तोता रटंत अंदाज में वही दोहराने लगे।

नाम बदलने को लेकर इस देश में जो राजनीति चल रही है, उसके केंद्र में सिर्फ और सिर्फ घृणा है। यही घृणा एक खास तरह की राजनीति करने वालों का खाद-पानी है। इंडिया मिटाया जाएगा या नहीं ये अभी तय नहीं है। संघी अफवाह तंत्र फिलहाल केवल हवा का रूख भांप रहा है।

लेकिन रातो-रात दर्जनों विचारकर और चिंतक प्रकट हो गये और लगे फेसबुक और ट्विटर जैसे अमेरिकी प्लेटफॉर्म्स पर ज्ञान की गंगा बहाने कि भारत सनातन है और इंडिया विदेशी है।

कभी इनकी टाइम लाइन चेक कीजिये क्या पिछले दस साल में इन्होंने कभी भारत और इंडिया का मुद्दा उठाया? ये अपनी आत्मा गिरवी रख चुके ऐसे लोग हैं, जिन्हें वक्त ने पांच रूपये प्रति ट्ववीट वाले ट्रोल से भी गया गुजरा बना दिया है।

बीजेपी को लगता है कि प्रतीकवाद ही सबकुछ है और वो ऐसे तमाशे खड़ी करके अनंतकाल तक सत्ता में बनी रह सकती है। बिना किसी बहस के माना जा सकता है कि देश की बहुसंख्यक आबादी मूर्ख है लेकिन बुद्धि विरोधी आंदोलन का भी कोई ना कोई एक्सपायरी डेट तो होता ही होगा।

धर्म-धर्म , समाज-समाज , जाति-जाति की लड़ाई की लगातार योजना अनुसार सफल होने के बाद पेश है …
एकदम नया और ख़ास ..

” भारत बनाम इंडिया “ ..

लड़ाई की भयंकर सफलता के आंकलन के लिए विचारिये कि मात्र कुछ घंटे पहले तक यही लोग…

क्रिकेट स्टेडियम में बैठकर ‘ इंडिया इंडिया ‘ के नारे लगाकर टीम में जोश भरते थे
हॉकी मैच के दौरान ” चक दे इंडिया ” की गूंज से माहौल गरमा देते थे

यही लोग चीन से समान लाकर असेम्बल किये लेपटॉप को भी ” मेक इन इंडिया ” की फ्रेम में सेट करते दिखे हैं
पे टीएम को ” स्टार्ट अप इंडिया ” का उदाहरण बताकर तर्क दिया करते थे

आज यही लोग इंडिया vs भारत मे जी जान से जुटे हैं

ये जाने बिना कि अंग्रेजी साम्राज्य के सबसे बड़े ईश्वर प्रभु यीशु के जन्म से करीब 200 साल पहले अर्थात आज से लगभग 2300 वर्ष पहले मौर्य काल मे सेल्युकस के साथ आये यूनानी यात्री मेगस्थनीज ने एक ग्रंथ की रचना की थी जिसका नाम है – ” इंडिका “
इंडिका ग्रीक भाषा का शब्द है
दरअसल इंडिका , तक़तकालीन संस्कृति परिवेश से कहीं ज्यादा देश के भौगोलिक परिवेश पर केंद्रित है

सिंधु , इंडस , इंडिका … इनमे से कोई भी शब्द अंग्रेजी का नहीं है

बहारत/भारत = मसाले
(ग्रीक/तुर्की/लेवांतीन/कुर्दिश आदि पूर्वी भूमध्यसागरीय भाषाओं में)
बहार फारसी शब्द है सुगंधित कलियों, फूलों, पत्तियों के लिए। मसाले इनसे बनते हैं। शब्द बना बहारत। एक भाषा से दूसरी भाषा में जाते शब्द रूप बदलते हैं तो जहां कुर्दिश में ये हुआ बिहारत, वहीं ग्रीक आदि कुछ भाषाओं में ये हो गया भारत। जहां से मसाले आते थे वो भारत। पर मसाले अरब सागर के तट पर स्थित पश्चिमी क्षेत्रों या मौजूदा केरल से गुजरात तक से जाते थे। यह समुद्रपारीय व्यापार ढाई हजार साल पहले से चल रहा है। जिन्हें यह मसाले लंबे सिल्क रूट व्यापार से मध्य एशिया होकर पहुंचते थे उनके लिए तो बस यह कल्पना का भारत ही था।

भारत शब्द पर:- बहार फारसी शब्द है; सुगंधित कलियों, फूलों, पत्तियों के लिए। मसाले इनसे बनते हैं। शब्द बना बहारत। एक भाषा से दूसरी भाषा में जाते समय शब्द रूप बदलते हैं तो जहां कुर्दिश में ये हुआ बिहारत, वहीं ग्रीक आदि कुछ भाषाओं में ये हो गया भारत। जहां से मसाले आते थे वो भारत। लेकिन मैंने आजतक इसके बारे में किसी इतिहासकर की किताब में न पढ़ा इसलिए मैं इसपे निश्चित कुछ कह नहीं पाऊँगा।

बाकी अपने देश या प्राचीन सभ्यता का नाम हड़प्पाई काल में “मेलुहा”, इंडिया की प्राचीनता ग्रीक-यूनानी इंडिका से, हिन्दुस् की प्राचीनता इससे भी थोड़ा पहले पारसिक सम्राट दारा/दारवहु के लेखों से, अशोक के लेखों में जम्बूद्वीप, पहली शताब्दी के खारवेल के कलिंग लेख में भारतवर्ष(प्राकृत में;-भरध वस), फिर इसी हिन्दुस् से तीसरी सदी में हिंदुस्तान बन गया। इनसब पर यहाँ अच्छे लेखकों ने खूब लिखा, मुझे लिखने की जरूरत नहीं क्योंकि मैं इससे कुछ नया नहीं जानता।

जो यूनानी (ग्रीक) स्थल मार्ग से आये वो इस मसालों वाले भारत में नहीं, उससे कई हजार मील दूर एक दूसरी जगह सिंधु नदी घाटी में पहुंचे। वहां से बना इंडस, इंडिका, और उससे इंडिया।

ये दो नाम दो अलग स्थानों के हैं और दोनों का ही उदगम, जैसा इतिहास में अक्सर हुआ है, दूसरे लोगों द्वारा किसी स्थान को दिया गया नाम है। ऐसे ही ब्रिटेन, चीन, अमरीका, आदि दूसरों द्वारा उन जगहों को दिए नाम हैं।

ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन ने इन दोनों को ही नहीं, ऐसे कई क्षेत्रों को एक फौजी प्रशासनिक इकाई के अंतर्गत ला दिया। यह बाद में एक साझा बाजार या आर्थिक इकाई बनने लगा (जो काम आज जीएसटी से अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है)। अतः वो इन सभी का साझा दुश्मन बन गया। एक साझा शत्रु से साझा संघर्ष में बनी साझा मानसिकता की वजह से अलग भाषा व इतिहास वाले भिन्न भिन्न क्षेत्रों के जितने जनसमुदाय 1947 में एक साझा राजनीतिक इकाई में शामिल होने को तैयार हुए, वही आज का इंडिया/भारत है।

पुनश्चः महाभारत उपरोक्त दोनों से कई सदी बाद की रचना है। वहां से इस शब्द के उदगम का सिद्धांत 19वीं सदी में उभरे उस पुनरूत्थानवाद की देन है जो भीष्म साहनी की ‘अहं ब्रह्मास्मि’ कहानी के बुजदिल ‘नायक’ की तरह गुलामी से लड़ नहीं सकता था, अतः अपनी कुंठा दूर करने के उपाय बतौर अंतर्मुखी बनकर समस्त ज्ञान विज्ञान का स्रोत किसी प्राचीन ग्रंथ में ढूंढने से ही विश्वगुरू होने का आत्मगौरव हासिल करने में जुट गया।

अभी इसमें बहुत कुछ छूट रहा, वो फिर कभी…

बाकी … समय समय पर भेड़ो की गिनती करके सलीके से घेरकर वापिस बाड़ो में भेजने की प्रक्रिया निरंतर जारी है ..और ये प्रक्रिया कई कई नित नई नई प्रकार की होती है….

जय – – हिंद,,
जय – – भारत,
जय – – जम्बूद्वीप
जय – – आर्यावर्त
जय – – भारत खंड
जय – – हिमवर्ष
जय – – अजनाभवर्ष
जय – – -हिन्दुस्तान
जय – – – अल-हिन्द
जय – – – ग्यागर,
जय – – – फग्युल,
जय – – – तियानझू,
जय – – – -होडू
जय – – – India

आदि आदि भारत जितने भी नामों से पुकारा जाता है सबकी जय,,,,
खैर छोड़िए शशि थरूर के Twit का आनन्द लीजिए!!

शशि थरूर,, के बारे में का जाता है जब वो अंग्रेजी बोलते तो बड़े बड़े अंग्रेजी के विद्धान dictionary के पन्ने पलटने लगते हैं,,,
कल उन्होंन एक ट्वीट किया है जिसका हिन्दी भावार्थ नाम बदलने वालों को जरूर समझना चाहिये!!!!!

जो इस प्रकार है –

हम भी अपने आप को गठबंधन का नाम,,
B- Betterment
H – Harmony
A- And
R- Responsible for
T- Tomorrow

BHARAT के नाम से पुकारने लगें
शायद तभी सत्ताधारी दल नाम बदलने का यह घिनौना खेल रोक पाएगा

अगर आप जनता इस खेल को अब भी नहीं समझ पा रहें तो धिक्कार है आप पर, आप और सताये जाएं भगवान से हमारी यही करबद्ध प्रार्थना है।

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