भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। मुख्यमंत्री मनोहर लाल संघ के पुराने कर्मठ स्वयंसेवक हैं और संघ इनकी कार्यशैली और पूर्व की उपलब्धियों से प्रसन्न है तथा इसी प्रकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब हरियाणा के प्रभारी थे और ये संगठन मंत्री थे तब इनकी कार्यनिष्ठा और स्वयं के प्रति आस्था और भक्ति देख वह मोदी जी के दुलारे बन गए, जिसका प्रमाण है कि प्रथम बार एमएलए बनते ही अनेक पुराने कार्यकर्ताओं को छोड़ इन्हें मुख्यमंत्री पद से नवाजा गया।

अत: संघ के प्यारे और मोदी के दुलारे होने के कारण भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने भी इन्हें स्वीकार किया और इनके नेतृत्व में काम किया। समय गुजरा और पहला कार्यकाल उन्होंने सफलतापूर्वक पूरा किया। पहली दफा हरियाणा में सत्ता बनाने का श्रेय उस समय के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष रामबिलास शर्मा को जाता है।

दूसरे कार्यकाल के समय प्रदेश अध्यक्ष का कार्यभार मुख्यमंत्री के साथी सुभाष बराला को मिला और उस समय मुख्यमंत्री जन आशीर्वाद यात्रा निकाली और अबकी बार 75 पार का नारा दिया लेकिन जन आशीर्वाद यात्रा से कोई लाभ होता नजर नहीं आया और भाजपा 75 पार के नारे के साथ 40 पर सिमट गई। दिग्गज मंत्री भी चुनाव हार गए लेकिन उस समय प्रधानमंत्री का आशीर्वाद इन्हें प्राप्त था और चाणक्य अमित शाह के प्रयासों से जजपा के साथ मिल सरकार बनाई और अब साढ़े तीन साल से सरकार चला भी रहे हैं।

वर्तमान में कर्नाटक में भाजपा की हार के बाद हरियाणा का राजनीतिक वातावरण एकदम बदलता नजर आ रहा है। जगह-जगह से विरोध के स्वर मुखर होने लगे हैं। लगभग हर वर्ग सरकार के प्रति नाराजगी दर्शा रहा है और यह बात तो कर्नाटक के परिणाम आने से पहले ही नजर आ रही थी लेकिन कर्नाटक परिणाम के बाद यह अधिक मुखर होने लगी है।

अब बात करें कि कैसे चक्रव्यूह में फंसे मुख्यमंत्री मनोहर लाल। एक तो पार्टी में ही इनके विरोध की बातें उठती रही हैं, जिनमें चाहे गृहमंत्री अनिल विज हों, प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ हों, सर छोटूराम के नाती चौ. बीरेंद्र सिंह हों या फिर राव इंद्रजीत सिंह और इनके समर्थक रहे। दूसरी ओर किसान आंदोलन के पश्चात सरकार के प्रति किसानों और जनता का विश्वास घटा। रही-सही कसर इस समय जंतर-मंतर पर चल रहे पहलवानों के धरने ने पूरी कर दी।

मुख्यमंत्री ने 2019 में भाजपा के पक्ष में वातावरण तैयार करने के लिए जन आशीर्वाद यात्रा की, जिसके सार्थक परिणाम तो नहीं निकले थे लेकिन यात्रा के समय जनता से या पार्टी से कहीं कोई विरोध की आवाज नहीं उठी थी।

उसी प्रकार इस बार मुख्यमंत्री जी ने जन संवाद कार्यक्रम आरंभ किया। जिस सिलसिले में वर्तमान में वह सिरसा जिले में तीन दिवसीय जन संवाद कर रहे थे। आज जन संवाद का आखरी दिन है लेकिन सिरसा जन संवाद मुख्यमंत्री के लिए सफल नहीं कहा जा सकता। तीनों दिन कोई न कोई ऐसी घटना होती रही, जिससे विपक्षियों को मौका मिलता गया। जनता को छुपकर बिठाना पड़ा। प्रश्नकर्ता के हाथ से माइक छीनना पड़ा, लाठीचार्ज की भी बात आई। आज तो एक महिला सरपंच नैना ने मंच पर कुपित होकर मुख्यमंत्री के पांव में अपनी चुन्नी फैंक दी। इस घटना को देख यह चर्चा चलने लगी है कि क्या मुख्यमंत्री आगे भी जन संवाद करेंगे या अभी इतिश्री हो जाएगी।

अब बात करें गठबंधन की तो चर्चाएं तो यहां तक सुनने में आ रही हैं कि कहीं हरियाणा विधानसभा चुनाव लोकसभा से पहले ही न हो जाएं, क्योंकि गठबंधन टूटने की अटकलें लगाई जा रही हैं। हां यह अवश्य है कि न इस बात को भाजपा वाले मान रहे हैं और उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला भी कह रहे हैं कि कहने वाले तो जब यह गठबंधन हुआ, तबसे ही कह रहे हैं कि दो-चार दिन में यह गठबंधन टूट जाएगा लेकिन अब साढ़े तीन वर्ष तो हो चुके और हम पांच वर्ष तक गठबंधन धर्म निभाएंगे।

यह दूसरी बात है कि आज भी दुष्यंत चौटाला दिल्ली में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष से मिले और चर्चा है कि दिल्ली से अमित शाह से भी मिलकर आएंगे। स्मरण रहे कि गठबंधन कराने में अमित शाह की महत्वपूर्ण भूमिका थी। ऐसी स्थिति में क्या होगा, यह तो समय के गर्भ में है लेकिन चर्चाकारों को चर्चा करने के लिए विषय तो मिल ही गए।

इस प्रकार देखा जाए तो इस समय मुख्यमंत्री हर ओर से घिरे नजर आ रहे हैं। चाहे वह पार्टी में सहयोग की बात हो, या यूं कहें कि पार्टी में सामंजस्य की बात हो, चाहे हरियाणा के बड़े वर्ग की नाराजगी की बात हो, चाहे पहलवानों के धरने का सवाल हो या फिर गठबंधन का हो। ऐसी स्थिति में यह कहना कि अनुचित नहीं लगता कि संघ के प्यारे-मोदी के दुलारे चक्रव्यूह में फंसे मनोहर बेचारे।

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