महेंद्रगढ़ में 84 धूनियां जला कर बैठे 41 दिन चलेगा तप
14 बार धूनी 13 बार जलधारा तपस्या कर चुके

भारत सारथी/ कौशिक

नारनौल। कुछ हस्तियों का जन्म मानव कल्याण के लिए ही होता है। मानव कल्याण में लीन ऐसे ही एक संत ने 29 अप्रैल से कठिन तपस्या की शुरुआत की है। महेंद्रगढ़ में विश्व शांति एवं मानव कल्याण की भलाई के लिए शहर की दोहान नदी के मध्य स्थित मौदा आश्रम व करंट बालाजी मंदिर के पास 84 धूनियों के बीच एक संत अपनी तपस्या में लीन है। महाराज नरेंद्र गिरी ने बताया कि वे विभिन्न स्थानों पर गर्मियों के दिनों में 14 बार धूनी व शीतकाल में 13 बार जलधारा तपस्या कर चुके हैं। तपस्या स्थल पर महाराज के चारों ओर उपलों (गोबर के कण्डे) की चौरासी धूनियां बनाई गई है, जिसके बीच में बैठकर महाराज अपनी तपस्या में लीन है। यह तपस्या 41 दिन तक चलेगी। जिसमें दिन प्रतिदिन अग्नि को तेज करने के लिए उपलों की संख्या बढ़ा दी जाती है।

महाराज ने बताया विश्व की मंगल कामना एवं शांति के लिए इस प्रकार की तपस्या करते रहते हैं। इस तपस्या की शुरुआत 29 अप्रैल से की गई है जो 41 दिन जारी रहेगी। इस भक्ति कार्यक्रम का समापन यज्ञ व भंडारे के साथ किया जाएगा।

इस मौके पर उपस्थित विश्वेश्वर गिरी महाराज ने बताया कि यह जो 84 धूनियों की तपस्या होती है, वह प्राचीन परंपरा शलजम महादेव के द्वारा चलाई हुई है। जेष्ठ माह के समय में सारे देवता धरती पर भ्रमण करते हैं। इसलिए तपस्या को महत्व दिया गया है। जो भी व्यक्ति मनोकामना लेकर इसके चारों ओर परिक्रमा करता है। उसके जन्म जन्मांतर साथ तो जन्मों के कष्ट कट जाते हैं, इसलिए इस तपस्या का अहम महत्व होता है।

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