राजनीतिक जीवन की आखरी लड़ाई का हवाला देकर भी प्रचार में है भूपेंद्र सिंह हुड्डा
रणदीप सिंह सुरजेवाला जींद कैथल और कुरुक्षेत्र जिलों में टिकटों के मामले में टिकटों के मामले में डिसाइडिंग फैक्टर रह सकते हैं

धर्मपाल वर्मा, चंडीगढ़

27 अप्रैल – कॉन्ग्रेस हरियाणा में कोई बड़ा आंदोलन नहीं कर रही उसे भाजपा से नाराजगी का लाभ मिल रहा है। हरियाणा में मीडिया में कांग्रेस पार्टी की मजबूती की चर्चा खूब हो रही है। 2019 के चुनाव में कांग्रेस को 90 में से 31 विधानसभा क्षेत्रों में विजयश्री प्राप्त हुई थी। इनमें से काफी विधायक रोहतक सोनीपत लोकसभा क्षेत्र की 18 विधानसभा क्षेत्रों से जीत कर आए। यह पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का अपना क्षेत्र है। इनमें सोनीपत लोकसभा क्षेत्र से सोनीपत खरखोदा गोहाना बरोदा सफीदों मतलब 5 और रोहतक लोकसभा क्षेत्र की 9 विधानसभा क्षेत्रों में से रोहतक किलोई झज्जर बादली बेरी बहादुरगढ़ कलानौर मतलब 7 कांग्रेस ने जीती थी। स्थिति साफ है कि 11 विधायक तो पुराने रोहतक जिले से जीत कर आए ।

राजनीतिक जीवन की आखरी लड़ाई का हवाला देकर भी प्रचार में है भूपेंद्र सिंह हुड्डा।

बाकी इस क्षेत्र के साथ लगते जिले पानीपत से दो जींद से कांग्रेस का एक विधायक जीत पाया था। इन क्षेत्रों में कांग्रेस पहले की तरह अच्छा प्रदर्शन करती नजर आ रही है और आम राय यह है कि अगले विधानसभा चुनाव में इन जिलों में कांग्रेस की एक दो सीट और बढ़ सकती है।

इसके बावजूद अब भी लगभग 40 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां कांग्रेस के पास मजबूत सक्षम और जिताऊ उम्मीदवारों का भारी अभाव है । पार्टी के पास उम्मीदवार तो सब जगह हैं लेकिन सवाल यह है कि जिनका नाम आने से विरोधी भी उन्हें मजबूत उम्मीदवार के रूप में स्वीकार करें और उनकी जीत की संभावना को मध्य नजर रखते हुए उनकी उम्मीदवारी को गंभीरता से लेते हो उन्हें सक्षम और जूता उम्मीदवार माना जा सकता है। हरियाणा में लगभग 40 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां कांग्रेस के पास ऐसे उम्मीदवार है ही नहीं जिनके बारे में जन सामान्य यह मान ले कि उनकी जीत की संभावनाएं औसत से ज्यादा है।

जिताऊ उम्मीदवार के मामले में एक उदाहरण पंचकूला से चंद्रमोहन का दिया जा सकता है। देखने को उनका पोलिटिकल स्टेटस बहुत बड़ा है । वे लगातार चार बार विधायक रहे हैं प्रदेश के उपमुख्यमंत्री रहे हैं भविष्य में भी टिकट की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता लेकिन धरातल पर पड़ताल से पता चलता है कि उनके लिए अगला चुनाव भी आसान नहीं रहेगा जबकि उन्हीं के समर्थकों के अनुसार उनके लिए कालका में स्थिति और हो सकती है। आम राय यह है कि पंचकूला में कांग्रेस विचारधारा का कोई स्थानीय उम्मीदवार उनसे ज्यादा वोट ले जा सकता है और जीत भी सकता है। मजे की बात यह है कि चंद्रमोहन आखरी बार 2005 में विधायक बने थे। 18 साल से किसी सदन की सदस्य नहीं है। 2019 में चुनाव लड़े परंतु हार गए। कांग्रेस यहां किसी नए उम्मीदवार को प्रोजेक्ट ही नहीं कर रही है और इसी बात का लाभ भारतीय जनता पार्टी उठाने की स्थिति में नजर आ रही है। आप खुद अनुमान लगा सकते हैं कि क्या कांग्रेस ऐसा कर रही है जो उसकी प्राथमिक जरूरत है। 8 साल से पार्टी का पुनर्गठन नहीं हो पाया है और अब भी यह काम लंबित पड़ा है।

कुमारी शैलजा को कई हलकों में मजबूत उम्मीदवार तलाश करने होंगे।

अब हम जिला वाइज बात करें तो अंबाला जिले में अंबाला शहर और अंबाला कैंट ,यमुनानगर जिले में यमुनानगर और जगाधरी, कुरुक्षेत्र जिले में शाहबाद मारकंडा और पेहवा ,कैथल जिले में पुंडरी और गुहला चीका ,करनाल जिले में करनाल, जींद जिले में जींद उचाना, नरवाना, हिसार जिले में हिसार आदमपुर हांसी और उकलाना नारनौंद फतेहाबाद जिले में फतेहाबाद टोहाना और रतिया, सिरसा जिले में रानियां, सिरसा ,ऐलनाबाद, भिवानी जिले में लोहारू भिवानी और बवानी खेड़ा, चरखी दादरी में चरखी दादरी और बाढड़ा महेंद्रगढ़ जिले में नारनौल और कोसली बावल और नांगल चौधरी, गुरुग्राम में गुरुग्राम बादशाहपुर सोहना और पटौदी में कांग्रेस के पास मजबूत राजनीतिक स्टेटस के जिताऊ और दिग्गज उम्मीदवार नहीं है। इस मामले में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों की हैसियत को देखा जाना भी जरूरी होगा।

फरीदाबाद जिले में दो फरीदाबाद और तिगांव पलवल में हथीन और पृथला और मेवात में एक विधान सभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां कांग्रेस उम्मीदवार के कारण चुनाव हारने के कगार पर आ सकती है। देखा जाए तो कांग्रेस पार्टी देशवाली जाटों की रोहतक सोनीपत पानीपत और जींद की धरती पर ही ज्यादा मजबूत है और उसके पास इन क्षेत्रों में मजबूत उम्मीदवार भी उपलब्ध हैं।

रणदीप सिंह सुरजेवाला जींद कैथल और कुरुक्षेत्र जिलों में टिकटों के मामले में टिकटों के मामले में डिसाइडिंग फैक्टर रह सकते हैं।

कम से कम छह विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां पार्टी को 2019 के उम्मीदवारों को बदल कर दूसरे नेताओं को मौका देना पड़ेगा अन्यथा भारतीय जनता पार्टी को 6 सीटों पर घर बैठे फायदा हो जाएगा। अब समझा जा सकता है कि इस मामले में कांग्रेस 46 सीटों पर कमजोर नजर आ रही है। ऐसे में कांग्रेस को इधर उधर से उम्मीदवारों की व्यवस्था करनी होगी और जीत के फार्मूले को प्राथमिकता देते हुए वह सोच समझकर टिकटों का फैसला करना होगा। कांग्रेस को हर विधानसभा क्षेत्र में अपने प्रतिद्वंदी दलों के मजबूत उम्मीदवारों को मन मस्तिष्क में रखते हुए उनके मुकाबले के उम्मीदवार मैदान में उतारने होंगे।

कोई कुछ भी कहे अगले चुनाव में भी कांग्रेस में टिकट बांटने के समय सीटिंग कटिंग के फार्मूले पर ही फैसला होगा और मौजूदा सभी विधायकों को फिर से चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा।

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