हरियाणा विधानसभा चुनाव भी हो सकते लोकसभा चुनाव के साथ

भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। 2022 में निगम पार्षदों का कार्यकाल समाप्त हो गया। उसके पश्चात से ही चुनावों की चर्चा चल रही है। यहां तक कि हमने लिखा था कि 2023 अप्रैल माह से पूर्व चुनाव की संभावना नहीं है। इस पर भाजपा जिला अध्यक्ष शिकायत भी की थी और शर्त लगाई थी कि दिसंबर 2022 से पूर्व चुनाव संपन्न हो जाएंगे अब अप्रैल माह भी आ गया लेकिन आज स्थिति यह है कि भाजपा संगठन के या सरकार का कोई भी व्यक्ति यह कहने की स्थिति में नहीं है कि चुनाव कब होंगे।

सरकार की रणनीति या गलती:

वर्तमान में गुरुग्राम निगम की वार्डबंदी भी हो गई है। उसके हिसाब से भावी पार्षदों ने अपना प्रचार करना भी आरंभ कर दिया है लेकिन मेरी सोच के अनुसार यह सब अब भी गलती कर रहे हैं, क्योंकि वार्डबंदी फिर दोबारा होने की प्रबल संभावना है। इसके पीछे कारण यह है कि फरीदाबाद में तो वार्डबंदी वोटर लिस्ट के अनुसार की गई, जबकि गुरुग्राम में वार्डबंदी परिवार पहचान पत्र के अनुसार की गई। अनेक लोगों के परिवार पहचान पत्र बने हुए नहीं है और भारतीय संविधान भी यह कहता है कि हर उस व्यक्ति को जिसकी उम्र 18 वर्ष हो गई है, वोट डालने का अधिकार है। प्रश्न यह उठता है कि क्या यह जानकारी सरकार को ज्ञात नहीं थी? जो संभव नहीं लगता। ऐसे में परिवार पहचान पत्र के अनुसार वार्डबंदी क्यों की गई? अब जब वोटर लिस्ट के हिसाब से चुनाव होंगे तो वोटर भी बढ़ जाएंगे और ऐसी स्थिति में संभव है कि वार्डबंदी दोबारा करानी पड़े। अत: यह नजर आता है कि पहले तो वोटर लिस्ट के अनुसार गिनती होकर वार्डबंदी करानी पड़ेगी, फिर उस पर आपत्तियां मांगी जाएंगी। इतने में कितना समय गुजर जाएगा, यह कोई भी निश्चित बता नहीं सकता और यही कारण है कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष या निकाय मंत्री या मुख्यमंत्री इस स्थिति में नहीं हैं कि बता सकें निकाय चुनाव कब होंगे।

लोकसभा चुनाव का असर भी होगा। इन स्थितियों में राजनीति के चर्चाकारों में चर्चा है कि लोकसभा चुनाव से भाजपा का भविष्य लगा है। ऐसे में भाजपा यह नहीं चाहेगी कि लोकसभा चुनाव से 4-6 माह पूर्व निगम चुनाव कराए जाएं, क्योंकि यह तो तय है कि निगम चुनाव लडऩे के लिए 40 वार्डों से जैसी कि सूचना मिली थी लगभग ढ़ाई-तीन सौ आवेदन तो आ चुके थे और अनेक ऐसे थे जो अभी आवेदन करना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में यह कहना अनुचित नहीं होगा कि हर वार्ड से भाजपा के लगभग 10-12 कार्यकर्ता चुनाव लडऩे को लालायित हैं। टिकट किसी एक को ही मिलेगी। प्रश्न उठता है कि अन्य क्या निर्दलीय ताल ठोक देंगे? या उम्मीदवार का सहयोग करेंगे? कुल मिलाकर कहना यह है कि भाजपा अलग-अलग गुटों में बंट जाएगी और यह स्थिति लोकसभा चुनाव के लिए घातक होगी।

एक दूसरी बात और चर्चा में है कि यदि निगम चुनाव नहीं हुए तो प्रत्याशी इस इंतजार में रहेंगे कि टिकट हमें मिलेगी और वे लोकसभा चुनाव में पार्टी के हक में दिलो-जान से काम करेंगे। धन भी खर्च करेंगे, क्योंकि उन्हें यह उम्मीद होगी कि ऐसा करने से हम पार्टी की गुड बुक्स में आ जाएंगे और हमें टिकट मिल जाएगी। अत: अपने सभी कार्यकर्ताओं को लोकसभा चुनाव में किसी न किसी तरीके से दिलो-जान से मेहनत करने के लिए प्रेरित करना किसी भी पार्टी का लक्ष्य होता है और यही भाजपा का भी होगा। अत: वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए अनुमान यही लगाया जा सकता है कि निगम चुनाव 2024 के चुनाव के बाद ही होंगे।

संभव है कि हरियाणा विधानसभा चुनाव भी लोकसभा चुनाव के साथ हो जाएंगे, इसकी चर्चा किसी और दिन करेंगे।

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