कमलेश भारतीय 

सुप्रीम कोर्ट ने न केवल सत्ता बल्कि मीडिया को भी आइना दिखा दिया । यह फैसले की घड़ी आई मलयाली न्यूज चैनल पर केंद्र द्वारा रोक लगाने पर ! सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की खंडपीठ ने यह रोक हटाई जिसे सुरक्षा किरणों के हवाला देकर चैनल पर रोक लगाई गयी थी । इस खंडपीठ ने केरल हाईकोर्ट के फैसले को भी निरस्त कर दिया और कहा कि सरकार इस तरह नागरिकों के अधिकार नहीं कुचल सकती ! राष्ट्रीय सुरक्षा के दावे हवा में नहीं किये जा सकते ! इसके समर्थन में ठोस सबूत होने चाहिएं । कोर्ट ने माना कि सरकार प्रेस पर अनुचित रोक नहीं लगा सकती । सरकार की नीतियों के खिलाफ चैनल के आलोचनात्मक विचारों को सत्ता विरोधी नहीं कहा जा सकता क्योंकि मजबूत लोकतंत्र के लिये स्वतंत्र,  निष्पक्ष और निडर प्रेस का होना बहुत जरूरी है । सत्ता के सामने सच बोलने और ठोस तथ्य रखना प्रेस की जिम्मेदारी है । इससे लोकतंत्र को सही दिशा में ले जाने का विकल्प जनता चुन सके !

बड़े दुख की बात है कि पिछले कुछ वर्षों में मीडिया अपने इस काम से बहुत नीचे गिरता जा रहा है और इसके गिरने की कोई सीमा ही नहीं रही । हर मुद्दे पर सरकार का पक्ष लेना, बचाव करना और विपक्ष की घेराबंदी करना ही मीडिया का मुख्य काम रह गया है । जनता के मुद्दों की घोर उपेक्षा करने लगा है मीडिया और इसीलिये इसे गोदी मीडिया कहा जाने लगा है और इसकी जगह सोशल मीडिया पर लोग ज्यादा विश्वास करने लगे हैं । यह बहुत बड़ी गिरावट से मीडिया में जो पिछले कुछ वर्षों से देखने को मिल रही है । कितने ही पत्रकार मीडिया चैनलों से बाहर कर दिये गये जो अब सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं । सबसे ताजा उदाहरण एनडीटीवी के रवीश कुमार का है । इस पर कहा जा रहा है कि जब पत्रकार को नहीं खरीद पाये तब चैनल ही खरीद लिया ! उनसे पहले अजीत अंजुम , पुण्य प्रसून वाजपेयी और अभिसार कितने ही पत्रकार चैनलों से बाहर कर दिये गये । इनकी स्वतंत्र पत्रकारिता रास नहीं आई । इनकी आवाज दबाने की कोशिश हुई और जारी है ।

किसान आंदोलन में भी राष्ट्रीय चैनलों से ज्यादा सोशल मीडिया ने ही सच दिखाने की कोशिश की । इसी तरह भारत जोड़ो यात्रा में भी राहुल गांधी ने मीडिया पर तंज कसते कहा कि चौबीस घंटे के चैनल में दो चार मिनट तो हमें भी दिखा दिया करो मित्रो ! पर कहां ? हरियाणा में आते ही राहुल की यात्रा को रोकने के लिये यही मीडिया कोरोना का हौआ खड़ा करने से नहीं चूका ! इस तरह मीडिया अपनी साख, विश्वसनीयता लगातार खो रहा है । कभी मीडिया प्रधानमंत्री से सीधे सवाल करने की हिम्मत रखता था और प्रतिदिन सवाल प्रकाशित किये जाते थे ।

याद कीजिए पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के दिन जब प्रसिद्ध वकील राम जेठमलानी सवाल पूछा करते थे । मीडिया में सीमेंट के एक विज्ञापन की तरह जान थी । जब सूचना व प्रसारण मंत्री रहे लालकृष्ण आडवाणी ने भी व्यंग्य में कहा था कि हमने तो मीडिया को थोड़ा झुकने को कहा था , यह तो दंडवत ही हो गया !  यानी आप संकेत समझें कि कैसे मीडिया दंडवत होते होते फिर उठकर खड़ा नहीं हो पा रहा । मीडिया से सुप्रीम कोर्ट ने भी ठोस तथ्य रखने और जनता की आवाज उठाने की जिम्मेदारी याद दिलाई है । अब हालात यहां तक पहुंच गये कि कार्टून कोना तक बर्दाश्त नहीं हो रहा । कार्टूनिस्ट यह क्षेत्र छोड़कर जा रहे हैं ।

 ऐसे ही जैसे यह गाना है :

आइना मुझसे मेरी पहले सी सूरत मांगें !  मेरे अपने मेरे होने की निशानी मांगें ! 

देखें यह पुकार कहीं मीडिया वालों के कान में पहुंच पायेगी या वही ढाक के तीन पात रहेंगे ! 

पूर्व उपाध्यक्ष,हरियाणा ग्रंथ अकादमी । 9416047075

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