भारत सारथी

मोदी सरनेम को लेकर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के विवादित बयान और उस पर सूरत कोर्ट से 2 साल की सजा सुनाने के बाद राहुल गांधी की संसद सदस्यता खत्म हो गई है। राहुल गांधी की संसद सदस्यता खत्म होने के बाद अब इस पर सियासत शुरु हो गई है। कांग्रेस जहां इस पूरे मुद्दें पर आक्रामक हो गई है वहीं भाजपा अब इस पूरे मामले को लेकर ओबीसी सियासत से जोड़ दिया है। राहुल गांधी को घेरने के लिए भाजपा एक साथ कई रणनीति पर काम कर रही है।

भाजपा ने बताया ओबीसी वर्ग का अपमान-राहुल गांधी के बयान को अब भाजपा ने ओबीसी वर्ग के अपमान से जोड़ दिया है। राहुल गांधी की संसद सदस्यता खत्म होने के बाद भाजपा ने इस पूरे मामले को लेकर देश भर में ले जाने के लिए अक्रामक रणनीति अपनाने जाने जा रही है। राहुल की सदस्यता खत्म होने के बाद सरकार के ओबीसी मंत्रियों की बैठक कर आगे की रणनीति तय की। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर व भुपेंद्र यादव ने राहुल गांधी के बयान को ओबीसी समुदाय के खिलाफ बताया।

भाजपा के राष्ट्रीय जेपी नड्डा ने कहा कि सूरत कोर्ट ने राहुल को ओबीसी समाज के प्रति उनके आपत्तिजनक बयान के लिए सजा सुनाई है, लेकिन राहुल और कांग्रेस पार्टी अभी भी अहंकार के चलते लगातार अपने बयान पर अड़े हुए हैं और ओबीसी समाज की भावनाओं को आहत कर रहे हैं। पूरा ओबीसी समाज प्रजातांत्रिक ढंग से राहुल से इस अपमान का बदला लेगा।

ओबीसी सियासत के पीछे की कहानी?-राहुल गांधी की संसद सदस्यता खत्म होने के बाद कांग्रेस ने अब सड़क पर सियासी लड़ाई शुरु कर दी है। कांग्रेस राहुल गांधी की तुलना इंदिरा गांधी से कर पूरे मामले में सियासी माइलेज लेने में जुट गई है। मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने कहा कि “नरेंद्र मोदी सरकार ने कांग्रेस के सम्मानित नेता राहुल गांधी के खिलाफ षड्यंत्र करने में सारी हदें पार कर दी हैं। जिस तरह से उनकी लोकसभा सदस्यता रद्द की गई है, उससे स्पष्ट है कि मोदी सरकार राहुल गांधी से भयभीत है। सरकार उनके उठाए सवालों का जवाब देने के बजाय उन्हें लोकसभा से दूर करने का रास्ता तलाश रही थी। आज का दिन भारतीय लोकतंत्र के लिए अत्यंत दुख और पीड़ा का दिन है। लेकिन एक बात अच्छी तरह याद रखनी चाहिए कि ऐसे ही षड्यंत्र स्वर्गीय इंदिरा गांधी के खिलाफ भी किए गए थे, लेकिन उससे इंदिरा मजबूत ही हुई थी, कमजोर नहीं। आज भारत की जनता पहले से कहीं मजबूती के साथ राहुल गांधी के साथ खड़ी है। इंसाफ होकर रहेगा”।

वहीं भाजपा राहुल गांधी की सजा को कांग्रेस को भुनाने का कोई मौका नहीं देना चाहती है और उसने पूरे मामले को ओबीसी की सियासत से जोड़ दिया है। भाजपा राहुल के बयान को ओबीसी वर्ग के अपमान से जोड़कर 2024 के लोकसभा चुनाव के साथ इस साल कर्नाटक, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान के एक बड़े ओबीसी वोट बैंक को साध रही है। देश की आबादी में ओबीसी की करीब आधी हिस्सेदारी है और इस बड़े वोट बैंक पर पार्टी 2024 से पहले अपनी पकड़ को मजबूत करना चाह रही है इसलिए भाजपा इस पूरे मुद्दे को ओबीसी वर्ग से जोड़ रही है।

ऐसे में जब लोकसभा चुनाव में एक साल का समय शेष बचा है तब भाजपा ओबीसी वोटर्स पर अपनी पकड़ मजबूत बनाने में जुट गई है। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से चुनाव दर चुनाव ओबीसी वोट बैंक भाजपा के साथ खड़ा नजर आया है। ओबीसी वर्ग ने जिस तरीके से भाजपा को समर्थन किया है, उसे भाजपा किसी भी हालात में खोना नहीं चाहती है।

अगर ओबीसी वोटर्स की बात करें तो 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को देश में 44 फीसदी ओबीसी वोट हासिल हुए थे वहीं कांग्रेस को 15 और अन्य क्षेत्रीय दलों को 27 फीसदी वोट हासिल हुए थे। ऐसे में भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव में अपने वोट बैंक को और मजबूत करना चाहती है।

अगर ओबीसी वोट बैंक की बात करें तो उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में ओबीसी एक बड़ा वोट बैंक है जो राज्य की सरकार का भविष्य तय करने के साथ लोकसभा सीटों पर उम्मीदवारों की जीत-हार तय करता है। मध्यप्रदेश जहां साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने है और जहां भाजपा का सीधा मुकाबला कांग्रेस से है वहां पर ओबीसी वोट बैंक पर दोनों ही पार्टियों की नजर है। प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाता लगभग 48 प्रतिशत है। ऐसे में ओबीसी वोटर 2023 विधानसभा चुनाव में भी बड़ी भूमिका निभाने जा रहे है।

दरअसल भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव में हिन्दुत्व के एजेंडे के साथ खुद को ओबीसी हितैषी पार्टी के तौर पर पेश करना चाह रही है। राहुल गांधी के बहाने भाजपा ओबीसी वर्ग को लुभाने की कोशिश कर रही है।

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