कमलेश भारतीय

कांग्रेस नेता राहुल गांधी की संसद से सदस्यता समाप्त ! कितनी तेजी से घूमा घटनाक्रम ! इधर सूरत कोर्ट ने दो साल की सजा सुनाई और उधर संसद सदस्यता से बर्खास्त ! जैसे क्रिकेट में अंपायर ने ऊंगली उठाकर आउट करार दिया । लंदन में दिये गये भाषण के बाद से राहुल भाजपा के निशाने पर आ गये थे और संसद व बाहर माफी मांगो , माफी मांगो का शोर बढ़ता जा रहा था । इतने में सूरत कोर्ट का फैसला आया और फिर कुछ करने की जरूरत ही न रही । सूरत कोर्ट के फैसले ने राहुल गांधी और कांग्रेस की सूरत ही बदल कर रख दी । अपनेआप ही मनचाहा हो गया । कोर्ट के फैसले का स्वागत् और सम्मान ! कोर्ट ने अपना काम किया और लोक सभा के जनरल सेक्रेटरी जैसे तैयार ही बैठे थे । उसने भी अपना काम करने में देर न लगाई । दोनों ने मर्यादा निभाई ।

अब मन मे उथल पुथल यह है कि हम किस देश के वासी हैं -लोकतांत्रिक, आपातकालीन या तानाशाही देश के ? वैसे राहुल गांधी ने विदेश में कहा था कि मैं खतरनाक देश में रहता हूं । गाना तो पुराना है लेकिन सवाल नया है । लोकतंत्र की जड़ें कितनी मजबूत रह गयीं या कमज़ोर होती जा रही हैं ? क्या साध्वी प्रज्ञा ठाकुर या कंगना रानौत के बयानों पर कोई आपत्ति नजर नहीं आई ? क्या साध्वी प्रज्ञा संसद में रहने लायक हैं ? दुख तो बहुत जताया था लेकिन कार्रवाई कोई नहीं । दीदी ओ दीदी कहना कितना सम्माननीय था ? राहुल के बयान को ओबीसी का अपमान बना कर आंदोलन चलाया जायेगा । मोदी सरनेम के बयान को लेकर । संसद मे अडाणी पर कोई जवाब नहीं बन पाया । संसद ठप्प रही । अब मोदी सरनेम को मुद्दा बनाया जायेगा । मोदी , अडाणी शायद दोनों को लेकर यह मुद्दा बन गया । प्रियंका बाड्रा पूछ रही है अथ कि संसद में आपने पूछा कि नेहरु सरनेम क्यों नहीं रखते ? यह अपमान नहीं था क्या ?

लोकतंत्र कहां है ? विरोध की आवाज को संसद से बाहर का रास्ता दिखा दिया । अब करते रहो भारत जोड़ो यात्रा ! आठ साल का पूरा समय दे दिया । भरपूर समय ! कर लो जनता मुट्ठी में ।

विपक्ष एकजुट हुआ । सिर्फ जदयू को छोड़कर । ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल भी विरोध में आ खड़े हुए । शायद अब विपक्ष को अहसास हुआ कि एकजुटता बहुत जरूरी है । यदि अब भी एकजुट न हुए तो सब इसका शिकार हो सकते हैं । हो भी रहे हैं । मनीष सिसोदिया इसके नये उदाहरण हैं । लालू यादव शिकार हो रहे हैं ।

क्या यह आपातकाल है ? सेंसर तो नहीं । कर्फ्यू भी नहीं । पर मीडिया में सेंसर लायक बचा ही क्या है ! सब तो पहले से ही सेंसर किया जा रहा है । एक रवीश कुमार की आवाज थी । नहीं दबी तो चैनल ही खरीदकर रवीश को ही बाहर जाने को मजबूर कर दिया । कहां है मीडिया की स्वतंत्रता ? मीडिया की आवाज इतनी कैसे दबती जा रही है जैसे कोई भीगी बिल्ली मिमिया रही हो ।

तो क्या यह देश तानाशाही की ओर बढ़ता जा रहा है ? विरोध की आवाज सुनने की आदत ही नहीं रही । जो चाहा , वही किया । वही हुआ । अब तो खुश ?

एक बात तो है कि जितना दबाओगे , उतना ही गेंद उछलेगी ! पंजाब में तो कहते हैं :
मन्नू साडी दातर
असीं मन्नू दे सोये
ज्यूं ज्यूं सानूं कटदा
असीं दून सवाये होये !

अब विपक्ष के पास अवसर है । यदि एकजुट हो जाये तभी कोई जवाब बनता है । नहीं तो अकेले अकेले भुगतते रहोगे ! अकेले अकेले कहां जा रहे हो ? सबको साथ लेकर लो जहां जा रहे हो !
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी । 9416047075

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