गुरुग्राम में सर्वाधिक चर्चा है निगम चुनाव की

भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। गुरुग्राम में नगर निगम चुनाव होने की 2022 के सितंबर-अक्टूबर से ही चल रही है। अब चर्चा थी कि फरवरी-मार्च में चुनाव अवश्य संपन्न हो जाएंगे। सरकार की ओर से भी ऐसे संकेत मिले थे और भाजपा ने प्रभारी भी नियुक्त कर दिए थे परंतु अब लगता है कि चुनाव में अभी भी काफी समय लगेगा, क्योंकि कल ही सरकार ने वार्डबंदी की नई समिति बनाई है। वह काम करेगी, वार्डबंदी होगी, उस पर आपत्तियां मांगी जाएंगी। भाजपा की ओर से भी कहा जा रहा है कि निगम चुनाव के लिए पन्ना प्रमुखों की नियुक्ति अप्रैल माह में होगी।

अर्थात वह भी मान रहे हैं कि चुनाव अप्रैल के बाद ही होंगे। खैर, यह सवाल तो चलता ही रहेगा कि चुनाव कब होंगे, जब तक चुनाव की घोषणा नहीं हो जाती परंतु चुनाव लडऩे के इच्छुक अभी से पूर्ण तैयारियों में लग गए हैं।

जहां तक अभी दिखाई दे रहा है कि चुनाव लडऩे वालों में सैकड़ों नाम भाजपा कार्यकर्ताओं के ही हैं। कुछ नाम आप कार्यकर्ताओं के भी निकलकर आ रहे हैं परंतु कांग्रेस की ओर से अभी इस मामले में चुप्पी ही नजर आ रही है। अत: हम भाजपा की ही बात करेंगे।

भाजपा में चुनाव लडऩे वालों की फेहरिस्त बहुत लंबी है और मेयर चुनाव लडऩे वालों की ध्यान करें तो अब तक दर्जन से अधिक नाम तो चर्चा में हैं लेकिन भाजपा के सूत्रों से ज्ञात हो रहा है कि असली खिलाड़ी तो अभी मौन हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि अभी चुनाव में देर है। अत: अपना नाम गुप्त रखें ताकि विपक्षी उनकी प्रयासों में दखल न डाल सकें। 

भाजपा में टिकट अभिलाषी अलग-अलग आकाओं के दरवाजे ताक रहे हैं, जिनमें कुछ दरवाजों के नाम हैं मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़, केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह, राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य डॉ. सुधा यादव और इनके अतिरिक्त कुछ लोग केंद्रीय मंत्रीमंडल के मंत्रियों के संपर्क में भी हैं।

मुख्यमंत्री की ओर देखने वाले पटौदी के महाराज धर्मदेव की ओर भी निहार रहे हैं। इनके अतिरिक्त अनेक पार्षद की टिकट के इच्छुक विधायक सुधीर सिंगला, विधायक सत्यप्रकाश जरावता एवं जिला अध्यक्ष गार्गी कक्कड़ से भी आशा रखे हुए हैं। ऐसे में लगता है कि मामला अति गंभीर है।

अभी हाल ही में जिला परिषद के चुनाव हुए थे। उनके परिणाम के बाद भाजपा की ओर से ही ब्यान आया था कि हमने कुछ टिकटें जिद में और कुछ प्रभाव में दे दी थी, जिस कारण हार हुई। ऐसा ही कुछ यहां भी होता दिखाई दे रहा है, क्योंकि कुछ उम्मीदवारों से बात हुई तो उनका कहना था कि टिकट न मिली तो भी कोई बात नहीं, चुनाव तो हम लड़ेंगे ही और जीतने पर भाजपा अपने आप अपने साथ मिला लेगी।

इन स्थितियों को देखकर ऐसा आभास होता है कि इन चुनावों में टिकट वितरण के पश्चात टिकट न मिलने वाले अनेक भाजपाई ही भाजपा उम्मीदवारों के प्रतिद्वंद्वी होंगे। यही स्थिति भाजपा संगठन की पोल खोलेगी, ऐसा आभास है।

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