छह सौ वर्ष बाद भी प्रासंगिक है संत रविदास की समतामूलक समाज की क्रांतिकारी अवधारणा : डॉ ‘मानव’ भारत सारथी/कौशिक नारनौल। संत शिरोमणि रविदास महाराज की जयंती गांव रामपुरा में धूमधाम से मनाई गई। इस अवसर पर बहुजन समाज पार्टी के नेता समाजसेवी ठाकुर अतरलाल एडवोकेट मुख्य अतिथि थे जबकि अध्यक्षता सरपंच संदीप कुमार ने की। मुख्य अतिथि अतरलाल ने गणमान्य लोगों के साथ संत रविदास के चित्र पर माल्यार्पण कर समारोह का शुभारंभ किया। उन्होंने दीप प्रज्वलित कर समाज व देश में सुख शांति की कामना की। छात्राओं ने संत रविदास की महिमा के भजनों तथा सबदों का गुणगान कर श्रद्धालुओं को भावविभोर कर दिया। मुख्य अतिथि अतरलाल ने संत रविदास को समतामूलक समाज का प्रहरी बताते हुए युवाओं से उनकी शिक्षा तथा आदर्शों पर चलने की अपील की। रामजस प्राचार्य, कंवरपाल, शेर सिंह यादव तथा सरपंच संदीप कुमार ने भी गुरु रविदास की शिक्षाओं को आज के समय में भी प्रासंगिक बताया तथा उपस्थित जनसमुदाय से उनका पालन करने की अपील की। ग्रामीणों ने ठाकुर अतरलाल एडवोकेट को संत रविदास का चित्र भेंट कर सम्मानित भी किया। इस अवसर पर कंवरपाल, अमित, नवीन, गुलाब, जीवन राम, जय सिंह, सुबे सिंह, राम सिंह,शिवकरण, चंद्रपाल, लीलाराम, चंदगीराम, दयाराम, सुभाषचंद, कुंवरसिंह, महेंद्र सिंह, शिवलाल, द्वारका प्रसाद, जगदेव, देवेंद्र, लालचंद,भाग सिंह चेयरमैन, शेर सिंह थानेदार, कैलाश सेठ सहित अनेक ग्रामीण उपस्थित थे। छह सौ वर्ष बाद भी प्रासंगिक है संत रविदास की समतामूलक समाज की क्रांतिकारी अवधारणा : डॉ ‘मानव’ ‘मन चंगा, तो कठौती में गंगा’ का उद्घोष करने वाले रविदास मानवीय चेतना-संपन्न संत और साधक होने के साथ एक क्रांतिकारी चिंतक भी थे। उनके द्वारा प्रस्तुत समतामूलक समाज की कल्याणकारी अवधारणा छह सौ वर्ष बाद, आज भी प्रासंगिक है। यह कहना है वरिष्ठ साहित्यकार और सिंघानिया विश्वविद्यालय पचेरी बड़ी राजस्थान में हिंदी-विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष डॉ रामनिवास ‘मानव’ का। मनुमुक्त ‘मानव’ मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा सैक्टर-1, पार्ट-2 स्थित अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक केंद्र मनुमुक्त भवन में संत रविदास की 647वीं जयंती पर आयोजित विचार-गोष्ठी में उन्होंने स्पष्ट किया कि गुलामी और राजशाही के उस दौर में संत रविदास ने ‘बेगमपुरा गांव’ के रूप में, कार्ल मार्क्स से भी शताब्दियों पूर्व, आदर्श समाज की जो परिकल्पना की थी, उसे पढ़कर आज भी आश्चर्य होता है। उनका कहना था- “ऐसा चाहूं राज मैं, जहां मिलै सबन को अन्न। छोट-बड़ो सब सम बसैं, रैदास रहै प्रसन्न।।” डॉ जितेंद्र भारद्वाज द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना-गीत के उपरांत डॉ पंकज गौड़ के कुशल संचालन में संपन्न हुई इस विचार-गोष्ठी में इंद्रप्रस्थ लिटरेरी फेस्टिवल की प्रदेशाध्यक्ष डॉ कृष्णा आर्य बतौर अध्यक्ष उपस्थित रहीं। रविदास के विचारों की प्रासंगिकता और महत्त्व को रेखांकित करते हुए अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में डॉ कृष्णा आर्य ने कहा कि उनसे आज भी समाज को समुचित मार्गदर्शन प्राप्त हो रहा है। इस अवसर पर ट्रस्टी डॉ कांता भारती, राजकीय महिला महाविद्यालय की प्रोफेसर अंजू निमहोरिया, अखिल भारतीय साहित्य परिषद् के जिला अध्यक्ष डॉ जितेंद्र भारद्वाज, एससीईआरटी पाठ्यक्रम समिति के सदस्य डाॅ पंकज गौड़, सर्वोदय उच्च विद्यालय के प्रबंध-निदेशक दलजीत गौतम, शिक्षाविद् डॉ महताब सिंह आदि ने भी संत रविदास को श्रद्धांजलि अर्पित की तथा उन्हें सच्चा संत, कवि, चिंतक और समाज सुधारक बताते हुए कहा कि उनकी क्रांतिकारी और कल्याणकारी शिक्षाओं से हम आज भी बहुत कुछ सीख सकते हैं। Post navigation नगर परिषद के कर्मचारी और अधिकारियों के भ्रष्टाचार के खिलाफ वतन बचाओ मंच द्वारा मुंडन करवा कर विरोध जताया घर आए हुए मेहमान का सामर्थ्य अनुसार आदर सत्कार अवश्य करना चाहिए : राधाकृष्ण महाराज