भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। कल केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में बजट पेश किया। जहां तक मेरी जानकारी है बजट तैयार करने में अनेक अर्थ विशेषज्ञ सहयोग देते हैं और उसमें एक माह से भी अधिक समय लगता है फिर कहीं जाकर बजट प्रस्तुत किया जाता है। अत: कह सकते हैं कि उसका अध्यन करने के लिए भी अर्थ विशेषज्ञ होना चाहिए और अर्थ विशेषज्ञ को भी उसका अध्यन करने में दो-चार दिन का समय अवश्य लगेगा लेकिन हुआ कुछ और ही है।

बजट पेश करने के चंद घंटे बाद ही हरियाणा के मुख्यमंत्री, गृहमंत्री, प्रदेश अध्यक्ष या यूं कहें कि सभी मंत्रियों और विधायकों के बजट के बहुत अच्छा होने के ब्यान आने लगे। अत: यह बात किसी के भी दिमाग में अवश्य आएगी कि जो कार्य विशेषज्ञ बहुत समय लेकर करते हैं, वह कार्य चंद घंटों में इन लोगों ने कर लिया। या तो ये उन सबसे अधिक अर्थशास्त्र की जानकारी रखते हैं या फिर पहले से ही मन बनाकर बैठे थे कि बजट आएगा तो हमें उसकी तारीफ में अपने ब्यान देने हैं। अर्थात जैसे राजसी जमाने में वृदावली गाई जाती थी। प्रश्न यही है कि क्या ये अर्थशास्त्र के विशेषज्ञ हैं या गा रहे हैं वृदावली?

जितना मेरी समझ में आया है वह आपसे सांझा करना चाहूंगा और निर्णय आप स्वयं करेंगे। पहला प्रश्न तो यही है कि यदि बजट बहुत बेहतर है तो भारत की अर्थव्यवस्था नाजुक हालात में क्यों है? जो आम लोगों से बात हुई वह कहते हैं कि हमें बजट से पैट्रोल-डीजल के दाम कम किए जाने की संभावना थी, उन उम्मीदों पर पानी फिर गया। आटा-दाल, चावल, दही, छाछ, परांठे अर्थात रोजमर्रा की चीजों पर टैक्स हटाने की सभी संभावनाएं भी धराशाही हो गई। 

इन बातों से लगता है कि आने वाले समय में महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी बढ़ेगी। देश के हालात के बिगडेंगे। नौजवानों के सामने रोजगार के संकट खड़े होंगे। ऐसा शायद पहली बार हुआ है कि जब बजट में किसी भी वर्ग को कुछ मिला नहीं। बिना दिए ही भाजपा नेता तारीफों के पुल बांध रहे हैं।

सोना-चांदी बजट के बाद तेजी से बढ़ा है। गरीब हो या अमीर हर शादी-ब्याह में सोना-चांदी की जरूरत पड़ती है लेकिन शायद सरकार को इससे कोई सरोकार नहीं। 

कहा जा रहा है कि इस बजट में अमीरों को इस तरह से फायदा दिया गया है कि कोई विरोध भी न कर सके। अभी तक जीवन बीमा पर मिलने वाली मैच्योरिटी की रकम आयकर से मुक्त थी। बीमा प्रीमीयिम पर पहले जीएसटी लगाया गया और अब समाचार यह भी है कि इस बजट में प्रावधान है कि मैच्योरिटी पर मिलने वाली रकम पर भी आयकर लिया जाएगा। विचारिए बजट कितना अच्छा है?

यह बात केवल भाजपा के नेताओं पर ही नहीं अपितु विपक्ष के नेताओं पर भी खरी उतरती है। वे भी बजट प्रस्तुत होने के चंद घंटों बाद ही बजट बुराईयों के गीत गाने लगे। पढ़ा तो शायद उन्होंने भी किसी ने नहीं। अर्थात वे भी अपने शीर्ष नेताओं को वृदावली गाकर प्रसन्न कर रहे थे।

बड़ा प्रश्न यह है कि जब राजनेता आम जनता की बातें न सुनकर अपने शीर्षस्थ नेताओं को खुश करने के लिए उनकी वृदावली गाते रहेंगे तो जनता का क्या होगा?

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