भारत सारथी/कौशिक

नारनौल। हरियाणा सरकार ने आधारकार्ड, परिवार पहचान पत्र के साथ इंसान की पूरी जीवन कुंडली जोड़ दी है। पहले आधारकार्ड, पैनकार्ड के साथ बैंक खाता जोड़ा हुआ है और इनके साथ परिवार पहचान पत्र का गठजोड़ कर दिया है। पूर्व में अध्यापकों से वोटर कार्ड को आधार कार्ड जोड़ने का भी कार्य कराया गया। स्कूलों में 6 से 18 वर्ष के बच्चों के परिवार पहचान पत्र के लिए शिक्षकों को डाटा वेरिफिकेशन के लिए दिया गया है।

अभी हाल में अध्यापकों द्वारा परिवार पहचान पत्र में आय को लेकर जानकारियां एकत्रित करवाई गई थी।अब जनता परेशान नजर आ रही है। हालांकि सरकार ने जिले में हर व्यक्ति की आय की जानकारी के लिए अतिरिक्त उपायुक्त कार्यालय के तहत सक्षम युवाओं तथा भाजपा के बूथ लेवल पन्ना इंचार्ज द्वारा कराई गई। इतना सब कुछ होने के बाद अनेक पात्रों को सरकारी योजनाओं से मरहूम होना पड़ रहा है।

अब एक क्लिक पर एक सदस्य नहीं पूरी परिवार की जन्मकुंडली सामने आती है। वहीं दूसरी ओर स्कूलों में 6 से 18 वर्ष के बच्चों के परिवार पहचान पत्र के लिए शिक्षकों को डाटा वेरिफिकेशन के लिए दिया गया है। ताकि वे एमआईएस पर इसका डाटा डालकर विभाग के आदेशों की पालना कर सके और रिकार्ड मेंटेन कर सके। शिक्षक पूरी तल्लीनता से इस कार्य में लगकर अभिभावकों को फोन कर रहे हैं। लेकिन सामने से ऐसे ऐसे जवाब शिक्षकों को सुनने पड़ रहे हैं जिससे शिक्षक स्वयं एक बार सोचने पर मजबूर हो जाता है कि वह शिक्षक है या फ्राड करने वाला जिसे शक की निगाह से सोचकर ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जा रहा है।

विभाग के आदेश शिक्षकों पर पड़ रहे भारी

एक तरफ शिक्षा विभाग द्वारा शीतकालीन सीजन में विद्यालय के विद्यार्थियों की छुट्टियां की हुई हैं तो दूसरी और शिक्षकों के कंधों पर भारी भरकम बोझ लाद दिया गया है। वैसे मानें तो ये शिक्षक किसी फौजी से कम नहीं है जिस प्रकार फौजी कड़ाकेदार ठंड व चिलचिलाती गर्मी में सरहद पर अपनी डयूटी देकर हमारी रक्षा करते हैं वैसे ही शिक्षक पढ़ाई के साथ साथ बीएलओ, एक्जाम डयूटी, चुनाव डयूटी, अनाजमंडी में कार्य के साथ साथ अब पीपीपी में डयूटी लगाई गई है।

शिक्षक भी सही और अभिभावक भी सही

एक तरफ शिक्षक बच्चों व उनके परिजनों को फोन करके पीपीपी का हवाला देकर ओटीपी व अन्य जानकारी पूछते हैं तो सामने से अभिभावकों द्वारा उन्हें फ्राड फोन करने व उनकी शिकायत करने तक की बात कह डालते हैं। जबकि दोनों अपनी अपनी जगह सही हैं। शिक्षक जहां अपना कार्य कर रहे हैं तो आज के तकनीकी युग में होने वाले आए दिन फ्राड को देखकर व सुनकर अभिभावक भी चौकन्ना है कि कहीं ओटीपी बताने से उनका बैंक खाता साफ न हो जाए। जिससे शिक्षकों का समय व्यर्थ हो रहा है और काम भी सिरे नहीं चढ़ रहा है। वहीं शिक्षकों को ठिठुरन में विद्यालय में आना भी भारी पड़ रहा है। जिससे साफ प्रतीत होता है यदि विद्यालय खुलने पश्चात ही इस कार्य को सिरे चढ़वाया जाता तो ये प्रक्रिया सिरे चढ़ जाती। लेकिन विभाग के किसी भी मामले की स्लो स्पीड को लेकर वेतन जारी न करने के फरमान भी शिक्षकों पर भारी पड़ते हैं जिससे चलते उन्हें घर चलाने के लिए ठंड में विद्यालय आना पड़ रहा है। जोे उनके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ नजर आता है। लेकिन गुरुजी स्वयं दबाव में काम करते हुए नजर आते हैं। जिसके चलते कुछ शिक्षकों ने दबी जुबान में विद्यालय लगने पर प्रक्रिया को दुरूस्त कराने की बात की।