गुरुग्राम, सतीश भारद्वाज एक तरफ तो देश के प्रधानमंत्री डिजिटल इंडिया बनाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ हरियाणा प्रदेश में जहां आम नागरिकों के लिए हरियाणा सरकार ने पोर्टल सेवा उपलब्ध करा रखी है जिस पर सभी विभागों की जानकारी और आंकड़े देखे जा सकते हैं पूरी तरह लागू करने में विफल साबित हो रहा है ऐसा ही एक ताजा मामला गत दिनों राज्य सतर्कता ब्यूरो गुडगांव मंडल का सामने आया है जिसमें पोर्टल पर 30.9. 22 के बाद कोई एफआईआर ही अपलोड नहीं है, जिसे जहां दोषियों को अपनी पैरवी करने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है वहीं विजिलेंस विभाग की दबंगई और तानाशाही साफ झलक रही है। जबकि पोर्टल पर दोषीयो को 24 घंटे के अंदर एफआईआर की कॉपी मिलना सुप्रीम कोर्ट के भी आदेश है । लेकिन फिर भी राज्य के पुलिस विभाग सहित अन्य कई विभाग है जिनमें पोर्टल में कोई भी दस्तावेज आज तक नहीं है ऐसे कई मामले कई विभाग के सामने आ चुके हैं। चलो हम यह बात करते हैं केवल विजिलेंस विभाग की। विजिलेंस विभाग के आंकड़ों के अनुसार गुड़गांव की बिजली विभाग ने 1 अक्टूबर 2022 के बाद करीब 10 एफआईआर भ्रष्टाचार जालसाजी रिश्वत मांगने सहित कई अपने रिकॉर्ड में दर्ज की है। लेकिन गुडगांव विजिलेंस के पीआरओ के अनुसार विभाग ने कई भ्रष्टाचारियों को पकड़ा है लेकिन उनकी एफआईआर सोमवार तक भी पोर्टल पर अपलोड नहीं है। जिसे जहां आरोपियों को अपनी पैरवी करने में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है वहीं यह भी नहीं पता लग रहा है कि उनके खिलाफ शिकायतें करता कौन है और किस-किस के खिलाफ शिकायत एफआईआर में दर्ज है। विजिलेंस विभाग के पीआरओ ने अभी गत 15 दिसंबर को ही कई रिश्वतखोर सरकारी कर्मचारी पकड़े थे जिनमें प्रेस नोट में भी पूरी जानकारी ना देकर आधी अधूरी जानकारी देकर अपनी वाहवाही लूटने में लगे रहे। केवल मीडिया में आधी अधूरी जानकारी देकर मीडिया की सुर्खियों में ही बने रहने में अपनी शान समझते हैं। जबकि अदालत में भी सही जानकारी ना देकर अदालत का भी समय खराब कर रहे हैं। जबकि विजिलेंस के अधिकारी अपने ही दस्तावेजों में लिखते कुछ है और प्रेस नोट में कुछ लिखवा कर भेजते हैं। जब इस पत्रकार ने एफआईआर के बारे में विजिलेंस के डीएसपी एसपी यहां तक कि आईजी सतीश बी बालियान से बात करनी चाहिए तो बार-बार संपर्क करने के बाद भी एक बार संपर्क हो पाया तो उन्होंने वही अपने विभाग का बचाव करते हुए आधा अधूरा ढुलमुल का जवाब देते हुए केवल इतना ही कहा कि पोर्टल पर एफआईआर दिखाना या ना दिखाना हमारे पास अधिकार है इससे विभाग को जांच पड़ताल करने में परेशानी व जांच पर कुछ प्रभाव हो सकता है। पेपर या जानकारी लीक होने का भी विभाग को खतरा है अगर पोर्टल पर विजिलेंस की डिस्प्ले नहीं होती इसको जरूर ही कोई विशेष कारण हो सकता है वह हम डिस्क्लोज नहीं कर सकते हैं ,जब उनसे पूछा गया कि गुडगांव विजिलेंस की एफ आई आर नंबर 38. 30.09.22 के बाद आज तक नहीं पोर्टल पर अपलोड नहीं हुई है, तो उन्होंने फिर वही बात बताई है कि पोर्टल पर नहीं डाली होगी विभाग के पास इसका अधिकार है। और इससे ज्यादा हम कुछ डिस्क्लोज नहीं कर सकते, इससे पहले उन्होंने यह भी कहा था कि इसके बारे में मुझे जानकारी नहीं है एसपी से बात करो तो पत्रकार ने कहा कि एसपी साहब फोन नहीं उठा रहे हैं आपके पास जो जानकारियां है उपलब्ध करा दो तब वे अपने विभाग का बचाव करते हुए उन्होंने भी कोई सही जवाब नहीं दिया जबकि माननीय सुप्रीम कोर्ट के भी आदेश है कि 24 घंटे के अंदर आरोपियों को एफआईआर की कॉपी मिलनी चाहिए। वहीं जिला अदालत के वरिष्ठ वकीलों का भी यही इस बारे में कहना है यह तो विजिलेंस विभाग की सरेआम तानाशाही और लापरवाही है जिसके कारण उनके मुवक्किलों को जानबूझकर परेशानी और सजा भुगतनी पड़ती है। इससे यही अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश के नेताओं की करनी और कथनी में कितना अंतर है। जोकि देश के सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की भी जमकर अवहेलना कर रहे हैं। 24 घंटे में मिलने वाली एफआईआर 85 दिनों तक भी नहीं मिल रही हैं। Post navigation HDCF क्रेडिट कार्ड के धारकों को पॉइंट रिडीम कराने का मैसेज भेजकर ठगी करने वाले 06 गिरफ्तार, कब्जा से 10 मोबाईल फोन व 01 टैब बरामद अब जीयू के छात्रों को घर बैठे ऑनलाइन मिलेगा माइग्रेशन सर्टिफिकेट