केवल मात्र मानव ही है ब्रह्मांड का श्रेष्ठ प्राणी: शंकराचार्य नरेंद्रानंद
मानव के बौद्धिक विकास का बहुत लंबा और पौराणिक इतिहास
सृजन और विध्वंस की क्षमता केवल मात्र मानव में ही मौजूद
84 लाख योनि में केवल मानव योनि को श्रेष्ठ माना गया
अनादि काल से वर्तमान तक केवल मानव के द्वारा सृजित
फतह सिंह उजाला
गुरुग्राम । जिस ब्रह्मांड अथवा पृथ्वी लोक पर हम सभी रहते हैं , इस ब्रह्माड में केवल मात्र मानव को ही सर्वश्रेष्ठ प्राणी माना गया है । मानव के विकास सहित बौद्धिक विकास और समय अनुसार किए गए कार्य को देखते हुए वेद पुराणों शास्त्रों ऋषि-मुनियों तपस्वीयों देवी देवताओं के द्वारा भी मानव को ही सर्वश्रेष्ठ माना गया है । इस बात में कोई शक नहीं कि समय-समय पर देवता भी मानव देह का रूप धारण कर इस नश्वर संसार अथवा ब्रह्मांड या फिर पृथ्वी लोक पर विभिन्न प्रकार की जिज्ञासाओं की शांति और समाधान के लिए अवतरित होते रहे हैं । यह बात काशी सुमेरु पीठाधीश्वर अनंत श्री विभूषित जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती जी महाराज ने भदोही जनपद अंतर्गत महादेवा गांव में विश्व गुरु स्वामी करुणानंद सरस्वती के मार्गदर्शन में आयोजित अनुष्ठान में उपस्थित श्रद्धालुओं के बीच कहीं । यह जानकारी शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद के निजी सचिव स्वामी बृजभूषण आनंद के द्वारा मीडिया के साथ सांझा की गई है ।
इससे पहले यहां पहुंचने पर शंकराचार्य नरेंद्रानंद का मंत्र उच्चारण और विधि विधान से श्रद्धालुओं के द्वारा अभिनंदन और वंदन किया गया। इस मौके पर शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती महाराज ने कहा सोचने और समझने सहित किसी भी कार्य को सही प्रकार या गलत करने की बौद्धिक क्षमता और ताकत परमपिता परमेश्वर ने केवल मानव को ही उपलब्ध करवाई है । मानव चाहे तो अपने बौद्धिक क्षमता का इस्तेमाल करते हुए इस पूरे ब्रह्मांड के नए नए सृजन का विकल्प उपलब्ध करवाने में सक्षम है। और यदि विध्वंस की बात हो तो इस कार्य में भी मानव अपनी बौद्धिक योग्यता के मुताबिक कुछ भी करने में सक्षम है । उन्होंने कहा विध्वंस युद्ध अन्य प्रकार के हिंसक घटनाएं वारदात इनसे कभी भी किसी को भी शांति प्राप्त नहीं हो सकती है । अनादि काल से लेकर मौजूदा समय में मानव के द्वारा जो भी कार्य किए गए अविष्कार किए गए यह अधिकांश मानव प्रजाति की भलाई के लिए ही किए गए हैं ।
उन्होंने कहा मानव जीवन में संगत सत्संग और संगति का बहुत अधिक महत्व होता है । इसी मौके पर शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद ने कहा मानव जीवन बहुत ही सौभाग्य और पुण्य के कर्मों के बाद ही प्राप्त होता है । मानव योनि या मानव जीवन प्राप्त करने के बाद जितना अधिक संभव हो सके , अपने दिनचर्या में समय निकालकर उस परमपिता परमेश्वर को हमेशा याद करते रहना चाहिए, जिसने हमें मानव जीवन या मानव योनि में जन्म लेने का सौभाग्य प्रदान किया । उन्होंने कहा सच्चा गुरु आध्यात्मिक मार्गदर्शक साधु संत तपस्वी ऋषि मुनि यह किसी का भी जीवन कभी भी दुखी देखना नहीं चाहते यही कारण है कि सदैव परमपिता परमेश्वर को और निस्वार्थ भाव से जीव कल्याण के कार्य करने की प्रेरणा प्रदान की जाती है पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज ने अपना आशीर्वचन प्रदान करते हुए कहा कि, “साधन धाम मोक्ष कर द्वारा पाइ न जे परलोक सवाँरा। क्योंकि मानव योनि में आने के पश्चात् जीव अपना उद्धार कर इस भवसागर के आवागमन से सदा सर्वदा के लिए मुक्त हो सकता है। जीवन में सत्कर्म करते हुए सदैव भगवद् स्मरण करते रहना चाहिए ।
सनातन संस्कृति ही “सर्वे भवन्तु सुखिनरू, सर्वे सन्तु निरामया । सर्वे भद्राणि पश्यनतु, मा कश्चिद् दुख भाग्भवेत का सन्देश देती है । सभी सनातनधर्मी आपस में मिलजुल कर रहें। अपने धर्म के प्रति समर्पित एवं सजग रहें। कार्यक्रम में पधारने पर पूज्य शंकराचार्य जी महाराज का आयजकों के साथ विश्वगुरु स्वामी करुणानन्द सरस्वती जी महाराज ने माल्यार्पण कर स्वागत एवं पूरे विधि-विधान से पूजन किया।