भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। जिला परिषद चुनाव की घोषणा के साथ ही गुरुग्राम में जिला परिषद में वर्चस्व बनाने के लिए नेता सक्रिय हुए। वर्तमान समय में गुरुग्राम में पार्टी है तो केवल भाजपा ही। कांग्रेस, इनेलो और आप पार्टी तो खानापूर्ति करती नजर आती हैं। ऐसे में हाईकमान का ये फैसला कि जिला कार्यकारिणी फैसला करेगी चुनाव सिंबल पर लडऩा है या नहीं।

अगर गौर करें तो केवल भाजपा के उम्मीदवार ही चुनाव मैदान में थे। कोई हारे, कोई जीते परिणाम के पश्चात सभी भाजपा के कहलाए जाते परंतु इन परिस्थितियों में चुनाव चिन्ह पर लडऩे का फैसला प्रश्न खड़े करता है कि जब सभी भाजपा के जीतने थे तो फिर मुकाबला क्यों खड़ा किया?

अहीरवाल में राव इंद्रजीत चाहे भाजपा में हैं लेकिन भाजपा के कार्यकर्ता उन्हें अपना अभी तक मान नहीं पाए हैं। केंद्रीय मंत्री होने के पश्चात भी उनके कार्यक्रमों में भाजपा की जिला कार्यकारिणी प्रोटोकॉल निभाने भी पहुंचती नजर नहीं आती।

इसके पीछे कारण केवल यह है कि राव इंद्रजीत सिंह के समर्थक भाजपाई होते हुए भी वह केवल राव इंद्रजीत के ही अनुयायी हैं और राव इंद्रजीत की राजनीति आम आदमी से जुड़ी है, जिसका प्रमाण मिलता है जब भी स्थानीय निकाय के चुनाव होते हैं तो राव इंद्रजीत समर्थक ही विजयी पताका लहरा पाते हैं।

गत गुरुग्राम निगम चुनाव में तो खुलकर राव इंद्रजीत सिंह और उनके मंत्री आमने-सामने आ गए थे और राव इंद्रजीत सिंह ने आन-बान-शान से अपनी मेयर टीम बनाई। कुछ ऐसे ही अनुमान अब लगने लगे हैं कि पटौदी विधायक सत्यप्रकाश जरावता को लगा कि राव इंद्रजीत समर्थक अधिक जीतेंगे। उन्हें कमजोर करने के लिए चुनाव चिन्ह पर लडऩे का फैसला लिया गया ताकि उनके समर्थक चुनाव लड़ ही न पाएं। वास्तविकता क्या है यह तो शायद चुनाव आने के पश्चात भाजपाईयों के मुखों द्वारा ही उजागर हो पाएगी।

गौरतलब है कि राव इंद्रजीत सिंह पटौदी, गुरुग्राम में अपना विशेष प्रभाव रखते हैं और जनता की जुबान तो यह भी है कि वह प्रभाव कम करने का प्रयास मुख्यमंत्री का होता है। जनता में सोचा जाता है कि भूपेंद्र यादव और सुधा यादव का कद बढऩा इसी बात का परिणाम है।

और क्या कहें, विधायक सत्यप्रकाश जरावता ही 2009 तक राव इंद्रजीत के शिष्य हुआ करते थे। उनके लिए कुछ भी कर गुजरने की बातें करते थे लेकिन 2009 में टिकट न मिलने पर निर्दलीय लडऩे का फैसला किया और उसमें राव इंद्रजीत का सहयोग नहीं मिला। तभी से उनकी राव इंद्रजीत से बगावत हो गई।

2019 के चुनाव में वह पटौदी में राव इंद्रजीत के प्रभाव को भली प्रकार जानते थे, इसीलिए वह राव इंद्रजीत की बढ़ाई करते रहे और दिल्ली और रेवाड़ी उनके निवास पर भी गए तथा चुनाव में विजयश्री उनको मिली।

अब लगता है कि विधायक सत्यप्रकाश जरावता का मुख्यमंत्री की नजर में जो स्थान है, उसके पीछे भी राव इंद्रजीत बड़ा कारण हो सकते हैं।

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