चुनाव जीते सरपंचों की बल्ले-बल्ले …….

भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। फरवरी 2020 में पंचायतों का कार्यकाल समाप्त हुआ था। उसके बाद अब गांवों को अपनी सरकार मिल गई है, चंद जिले ही बाकी हैं लेकिन जो देखने में आ रहा है, वह यह कि इन विजयी पंच और सरपंचों को पहले से बहुत अधिक मान-सम्मान मिल रहा है। उनके क्षेत्रों के विधायक शायद चुनावों में उनके साथ नहीं थे लेकिन इस समय सबका साथ-सबका विकास की बातें कर रहे हैं और उन्हें अपना पूर्ण सहयोग देने की बात कह रहे हैं। साथ ही कह रहे हैं कि हम सरकार से आपके क्षेत्र के लिए फंड भी रिलीज कराएंगे। ऐसा पहले कभी देखा नहीं गया।

आज गृहमंत्री अनिल विज की विज्ञप्ति भी आई कि विजयी सरपंचों ने उनका आशीर्वाद लिया, जबकि उनके समर्थित अधिकांश सरपंच के उम्मीदवार चुनाव में हारे हैं।

ऐसे ही हमारे पटौदी के विधायक सत्यप्रकाश जरावता तो पक्के ब्यानवीर हैं ही, लगातार कहते रहते हैं कि मुख्यमंत्री मेरी सारी बातें मानतें हैं। मेरे कहने से ही मानेसर निगम बना दिया, स्कूल अपग्रेड कर दिए, कोर्ट कॉम्पलेक्स बनवा दिया आदि-आदि काम गिनाते रहते हैं। वह भला  ऐसे समय में चुप कैसे रह सकते हैं। उन्होंने भी ब्यान दाग दिए कि मैं सभी पंचायतों को एक-एक करोड़ रूपए दिलवाउंगा, समग्र विकास की ओर अग्रसर कराउंगा आदि-आदि।

यह दूसरी बात है कि वह जिला परिषद के वार्ड नंबर 9 में मधु सारवान का चुनाव ऐसे लड़ रहे थे जैसे उनका खुद का ही हो। अनेक सरपंच उनसे कोई उम्मीद भी नहीं रखते थे परंतु वर्तमान में वह सबका साथ-सबका विकास की बात कर रहे हैं। इसी प्रकार की बातें हर स्थान के विधायक अपने क्षेत्र के सरपंचों के साथ कर रहे हैं।

ध्यान लगाया कि ऐसा क्यों हो रहा है। सरपंचों के चुनाव तो पहले भी हुए हैं। कभी मंत्रियों और विधायकों ने उनको इस प्रकार गले नहीं लगाया। इस पर ध्यान आया कि लोकसभा के चुनाव को तो डेढ़ वर्ष भी नहीं रहा और विधानसभा चुनाव को भी दो वर्ष नहीं रहे और ऐसे में वोट लेने के लिए सरपंचों का सहयोग बहुत जरूरी है इसीलिए वे सरपंचों के साथ होने का दावा कर रहे हैं।

इधर कुछ सरपंचों से बात हुई तो उनका कहना था कि वोट के वक्त अपना फैसल लेंगे, वर्तमान में तो सत्ता के साथ रहने में ही ग्रामवासियों का लाभ है।

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