जीवन के हर क्षेत्र में दौड़ से मानसिक रोग ज्यादा : स्वामी शैलेंद्र सरस्वती -कमलेश भारतीय जीवन के हर क्षेत्र में बस दौड़ ही दौड़ और प्रतिस्पर्धा , प्रतियोगिता और ईर्ष्या के चलते समाज में विद्वेष बढ़ा और मानसिक बीमारियां भी तेजी से बढ़ीं । यह कहना है ओशो के छोटे भाई स्वामी शैलेंद्र सरस्वती का । वे सिरसा रोड स्थित ओशो मेडिटेशन रिसोर्ट सेंटर में मां अमृत प्रिया सहित चल रहे ध्यान शिविर में देवी पार्वती व भगवान् शिव के बारे में ध्यान विधियों की साधकों को जानकारी दे रहे हैं । उन्होंने कहा कि अर्जुन को महाभारत के युद्ध में संदेश व ज्ञान देते ही गीता अस्तित्व में आई ।-ओशो की प्रासंगिकता बढ़ी या कम हुई ? -अब लोग ओशो को पहले से ज्यादा समझने लगे हैं । देश ही नहीं विदेशों में भी उनकी लोकप्रियता बढ़ी है । कोरोना काॅल में तो और भी ज्यादा । ऑनलाइन कार्यक्रमों में बहुत लोग जुड़ते चले गये । -कट्टरपंथी बढ़ती जा रही है । क्या कारण देखते हैं ? -जैसे जैसे हम खुले दिमाग से सोचेंगे समझेंगे , वैसे वैसे कट्टरपंथी कम होती जायेगी । संतुलन बनाने की जरूरत है । -आप मेडिकल डाॅक्टर थे और मेडिटेशन में आ गये । कैसे ?-हां । मेरा सफर मेडिकल से मेडिटेशन तक का है । जब सिर्फ डाॅक्टर था तो बहुत कम संतुष्ट था क्योंकि कम लोगों का उपचार कर पाता था । जब मेडिटेशन में आया तब समझा कि असली तो मनोरोग है , इसका उपचार जरूरी है क्योंकि तकलीफ शरीर से ज्यादा मन में हैमानसिक रोग देर से ठीक होते हैं । शारीरिक रोग आसानी से ठीक हो जाते हैं । मन को ठीक करना ज्यादा जरूरी है । -तनाव व मानसिक रोग क्यों बढ़ते जा रहे हैं ?-यह जो सब जगह दौड़ , दौड़ लगी हुई है । यह जो प्रथम आने की दौड़ है रही हमारे तनाव व मानसिक रोगों की सबसे बड़ी वजह है । सब जगह ईर्ष्या , जलन और फर्स्ट आने की दौड़ ने और सड़ी गली सामाजिक व शिक्षा व्यवस्था ने इसे जन्म दिया । यह प्रतियोगिता की भावना ही इसकी जननी है । शिक्षा के बुनियादी ढांचे को बदलने की जरूरत है । -क्या है आपका सपना ?-शांति और प्रीति । आपस में प्रेम से ही शुरूआत होती है । आनंद का फूल खिलता है । महाभारत से द्वितीय विश्व युद्ध तक अशांति ही तो रही । होशपूर्ण होने की ही विधि है ओशो की । जब हम होशपूर्ण हो जायेंगे तब शांति भी हो जायेगी । भाईचारा भी है जायेगा । आत्मशांति से शांति तक का सफर हो जायेगा । ध्यान और भक्ति दो मार्ग हैं । Post navigation व्यंग्य व्यथा : किस्सा हरफूल, मनफूल और एक खूंखार कुत्ते का …. कांग्रेस मरी नहीं तो जिंदा क्यों नहीं ?