-कमलेश भारतीय

देश की सबसे पुरानी पार्टी काग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए लगातार विवाद जारी है । इसी भागमभाग में एक नेता इस पार्टी से आजाद हो गये । अभी बहस जारी है । गांधी परिवार से बाहर अध्यक्ष लाने पर । कौन होगा या हो सकता है नया अध्यक्ष ? मनाने वाले तो अब भी राहुल गांधी को मनाने में लगे हैं लेकिन राहुल हैं कि ‘ मैं नहीं मानूं’ की रट लगाये हुए हैं जिससे नये अध्यक्ष की तलाश जारी है । कभी राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की चर्चा होती है तो कभी शशि थरूर भी ताल ठोकते दिखाई देते हैं । वैसे मनीष तिवारी ने भी विवाद उठाने में कोई कमी नहीं छोड़ रखी । शशि थरूर , कार्ति चिदम्बरम और मनीष तिवारी ने अध्यक्ष पद की पारदर्शिता पर सवाल उठाते कहा कि सदस्यों की सूची जारी की जाये और यह भी तंज किया कि ऐसे तो किसी छोटे क्लब के चुनाव में भी नहीं होता । जवाब में मधुसूदन मिस्त्री कहते हैं कि प्रत्याशियों को उपलब्ध करवा दी जायेगी । यह भी कहा कि जिसे चाहिए वह पीसीसीए से ले सकता है ।

कांग्रेस का संकट दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है और गुलाम नबी आजाद की मानें तो इलाज के लिए कोई डाॅक्टर उपलब्ध नहीं है । कम्पाउंडर ही इलाज कर रहे हैं और फैसले ले रहे हैं । वैसे तो एक दो दिन बाद भी इल्जाम लगाये जा सकते थे । सोनिया गांधी के मां के निधन पर शोक व्यक्त करने की बजाय यह बहस करना कोई मानवीयता तो नहीं कही जा सकती । सचमुच महाभारत जैसी स्थितियां हैं । कोई किसी का नहीं रहा काग्रेस में । सबको अपनी अपनी पड़ी है । किसी के दुख से कोई सरोकार नहीं । कांग्रेस हाईकमान के दुख में रोने का समय भी नहीं । जब शशि थरूर सुनंदा पुष्कर की रहस्यमयी परिस्थितियों में उलझे कांग्रेस ने तब भी इन्हें बाहर नहीं किया । जब मनीष तिवारी ने किताब में ताज होटल के प्रकरण को लेकर टिप्पणी की कि इसे कांग्रेस सरकार ने अच्छे से हैंडल नहीं किया तब भी मनीष पर कोई कार्यवाही नहीं की । मज़ेदार बात कि उस सरकार में मनीष तिवारी भी मंत्रिमंडल में शामिल थे । यदि कांग्रेस की कार्यवाही पर विश्वास नहीं था तो तब विरोध दर्ज क्यों नहीं करवाया ? कांग्रेस हाईकमान भी इतनी कमज़ोर कि कोई कार्यवाही नहीं की । जैसे अभी तक कैप्टन अमरेंद्र सिह की पत्नी प्रणीत कौर पर कोई कार्यवाही नहीं की जबकि पंजाब में कांग्रेसजन यह आवाज उठा रहे हैं कि प्रणीत कौर को बाहर किया जाये । कांग्रेस हाईकमान का चेहरा सोनिया गांधी का जरूर है लेकिन यही चर्चा है कि फैसले राहुल गांधी और प्रियंका गांधी कर रहे हैं । परदे के पीछे से क्यों राहुल बाबा ? सीधे जब कमान मिल रही है या मिल सकती है तो सामने क्यों नहीं आ जाते ? कितना समय लगेगा मैच्योर होने में ? जैसा दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने कहा था कि अभी राहुल बाबा को समय लगेगा तो कितना और कब तक ? काग्रेस गांधी परिवार से मुक्त होगी , क्या सचमुच ? या फिर मनमोहन सिंह जैसा अध्यक्ष होगा जिसको पीछे से गांधी परिवार निर्देशित करेगा ?

जरा सामने तो आओ छलिये
छुप छुप करने में क्या राज है ,,,?
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।

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