रक्षाबंधन: पवित्र बंधन का स्मरण कराता है 
रक्षाबंधन: केवल बहन-भाई के रिश्ते का त्यौहार नहीं, यह पिता पुत्र मां बेटा गुरु-शिष्य अनके नातो का त्यौहार है : सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज
पवित्र मन से अपने आप को सत्कर्मों में बांधो, यही सबसे बड़ा रक्षाबंधन है : कंवर साहेब जी महाराज
रक्षाबंधन: हमें भाई, पिता, पुत्र, शिष्य सब नाते ईमानदारी और सच्चाई से निभाने चाहिए।
मन मार सूरत को डांटों घर बैठे बनो फकीर : कंवर साहेब
बुराई केवल परेशानी नहीं बल्कि अच्छाई को बंद करने का कार्य करती है : कंवर साहेब जी महाराज
बंधन अनेक है असली बंधन है गुरु-शिष्यं का बंधन।

चरखी दादरी जयवीर फौगाट

10 अगस्त, सन्त सतगुरु शिष्य को जगाने का और उसकी भटकन मिटा कर उसे सत का मार्ग दिखाने का कार्य करते हैं। जीव पर अनेको बन्धन हैं और सतगुरु इन्हीं जगत बन्धनों का काटते हैं और उसे परमात्मा के बंधन में बांधने का कार्य करते हैं। रक्षाबन्धन का त्यौहार भी इसी तरह के पाक पवित्र बंधन का स्मरण कराता है। यह केवल बहन भाई के रिश्ते का ही त्यौहार नहीं है। यह तो पिता पुत्र मां बेटा गुरु शिष्य के नातो का भी त्यौहार है।

साध संगत को रक्षाबंधन की शुभकामना देते हुए गुरु महाराज जी ने फरमाया कि ये रक्षाबंधन भारत देश के लिए और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि हम अपनी आजादी के 75 वर्ष पूर्ण कर रहे हैं। ये आजादी की हीरक जयंती है और हम इस आजादी के महत्व को भली भांति जानते भी हैं क्योंकि अनेकों शहीदों के बलिदान से ये आजादी पाई थी। इसलिए इस आजादी के 75वें वर्ष को हमने बड़ी धूमधाम से मनाना है इसलिए हमें हर घर पर हमारे राष्ट्रीय ध्वज को सजाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि जिसकी मन की भावना अच्छी होती है वो ना सिर्फ अपना भला चाहता है अपितु वह समाज का भी भला चाहता है। उन्होंने कहा कि हर जीव सुखी रहना चाहता फिर भी क्यों दुख आता है। दुख इसलिए आता है क्योंकि हम दूसरो की होड़ में अपने आप को फंसा लेते हैं। अनेकों आशाओं और तृष्णाओं में अपने आप को उलझा लेते हैं। गुरु महाराज जी ने कहा कि सतयुग में मंत्र चलते थे और त्रेता युग में तंत्र। द्वापर युग में यंत्र चलने लग गए और आज कलियुग में तो षड्यंत्र ही चलते है। उन्होंने कहा कि और को छोड़ कर अपना आपा संभालो अपने आप ही सुखी होते चले जाओगे। हुजूर कंवर साहेब जी ने फरमाया कि वैसे तो इस त्यौहार की अनेको कहानियां और प्रसंग हैं। हमें प्रसंग चाहे ना पता हो लेकिन हमें इसके महत्व को अवश्य जानना है। हर त्यौहार के पीछे एक संदेश छुपा होता है और वैसा ही प्रेरक सन्देश रक्षाबन्धन के पीछे भी है।

रक्षा बन्धन राजा बलि की कथा से भी सम्बन्ध रखता है। राजा बलि ने भगवान विष्णु को पाताल लोक में अपनी पहरेदारी करने के वचन में बांध लिया था। जब लक्ष्मी को इस बात का पता चला तो उसने राजा बलि को रक्षा सूत्र बांध कर विष्णु को मुक्त करने का वचन ले लिया। तब से रक्षाबंधन का पर्व प्रचलित है। गुरु महाराज जी ने कहा कि बुराई केवल परेशानी नहीं देती बल्कि ये अच्छाई को मन्द करने का भी कार्य करती है। वचन का बंधन बहुत बड़ा होता है।जो वचन को तोड़ता है उसे कष्ट भी उठाना पड़ता है। राजा बलि ने गुरु वचन ना मानने का कष्ट उठाया। रक्षाबन्धन का पर्व यह संदेश भी देता कि हमें भाई, पिता, पुत्र, शिष्य सब नाते ईमानदारी और सच्चाई से निभाने चाहिए।

रक्षाबंधन को राजा इंद्र और आधुनिक काल में राजा पौरुष से भी संबंध रखता है। उन्होंने कहा कि इंसान पर बंधन अनेक हैं देह का नाते रिश्तेदारों का गोती नातियों पुत्र पुत्रियों का।ये सब बंधन हमें परमात्मा से विलग करते हैं लेकिन एक बंधन है जो  हमें इन बंधनों से मुक्त करके परमात्मा के बंधन में बांधने का काम करता है वो है सतगुरु और भक्त का। गुरु महाराज जी ने कहा कि सतगुरु का वचन मानने में यदि हानि भी प्रतीत होती है तो भी मान लेना चाहिए क्योंकि गुरु का वचन अंततः आपके लिए लाभकारी ही होगा। गुरु का वचन चाहे प्रेम में हो या प्रताड़ना में, चाहे वो चेतावनी में हो या भय में वह हर सूरत में लाभकारी है। उन्होंने कहा कि गुरु को इंसान ना मान कर उसे सब कुछ मान लो तो आपके सारे काम पलक झपकते ही पूर्ण होंगे।

उन्होंने कहा कि संतमत दिखावे का नहीं बल्कि करनी का मत है। ये विश्वास का मत है। उन्होंने महात्मा तुलाधर का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि एक बार सुखा पड़ा तो सारे गांव वाले महात्मा के पास गए और उनसे बारिश की प्रार्थना की। तुलाधार ने परमात्मा से प्राथना की कि यदि मैंने आपकी सेवा में कोई कोताही ना बरती हो तो इन ग्रामीणों के सामने मेरा मान रख। कहते हैं की भरपूर बरसात हुई। हुजूर ने कहा कि मन से कपट चोरी और धोखा हटा कर यदि पूर्ण समर्पण परमात्मा को कर दे तो तो परमात्मा हर पल हाजिर नाजिर होकर आपकी संभाल करता है। उन्होंने कहा कि झूठ कपट की कमाई झूठ कपट में ही जायेगी और हक हलाल की कमाई आपके हक में ही जायेगी। उन्होंने कहा कि गुरु जो करता है वो कभी ना करो गुरु को कहता है वो हमेशा करो। उन्होंने कहा कि नाम बैकड़ी जबान का बोल मात्र नहीं है बल्कि नाम तो मन को पवित्र करने का मंत्र है।

उन्होंने कहा कि जिन ने राधास्वामी नाम को प्रकट किया था वो कुल मालिक अवतार थे। गुरु महाराज जी ने फरमाया कि निंदा चुगली ईर्ष्या भिष्टा समान है। याद रखो जब भी आप किसी की निंदा चुगली की बात करते हो समझो उसकी भिष्ठा को ही ढो रहे हो। उन्होंने कहा कि हर गुरु अपने शिष्य को पाक पवित्र बनाना चाहता है फिर भी हम बुराइयों की तरफ खिंचे चले जाते हैं।  एसा करके हम किसी संत सतगुरु का अपमान ही तो करते है और मत भूलो जो अपने गुरु की निंदा करवाता है उसको नरकों में भी जगह नहीं मिलती। गुरु महाराज जी ने कहा कि रक्षाबंधन का यही संदेश है कि गृहस्थ का पूर्ण धर्म निभाओ। मन को पाक साफ रख कर अपने आप को सत्कर्मों में बांधो यही सबसे बड़ा रक्षाबंधन है।

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