दिनोद धाम जयवीर फौगाट,

31 जुलाई, हरियाली तीज का त्योहार आस्था, उमंग, सौंदर्य और प्रेम का परिचायक है। तीज को सभी त्योहारों का द्वार भी कहा जाता है। रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, श्राद्ध-पर्व, नवरात्रि, दशहरा, दीपावली आदि सारे बड़े त्योहार तीज के बाद ही आते हैं।

यह विचार परमसंत सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने दिनोद गांव में तीज का त्योहार मनाने उपस्थित हुई साध संगत को परोसे। हुजूर कंवर साहेब ने कहा कि हरियाली तीज का भारतीय सांस्कृतिक परंपरा में काफी महत्व है। हरियाली तीज श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाने की परंपरा रही है। सुहागन स्त्रियों के लिए इस पर्व का काफी महत्व है। उन्होंने संगत को तीज की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि भक्ति की दृष्टि से भी तीज का अपना महत्व है। उन्होंने कहा कि सतगुरु का संग का झूला आपको हर दुविधा से बचाता है। सत्संग के झूले की पींग चढ़ा कर हम आनंद और उलास से जीवन जी सकते हैं। उन्होंने फरमाया कि काल के खेल में जीव को सुध नही रहती कि वो आया किस काम से था और कर क्या रहा है। जीव भूल जाता है और इस काल देश को अपना समझ कर गाफिल होता है। जब इंसान उम्र के आखिरी पड़ाव में आता है तब वो इस आवागमन के चक्कर से छुटकारा पाने के लिए छटपटाता है।

अगर समय रहते इंसान पूर्ण सतगुरु की शरण ले ले तो उसकी ये छटपटाहट नही रहेगी। गुरु महाराज जी ने कहा कि आज भी परमात्मा आपसे दूर नहीं है यदि आप भक्ति सच्चे मन से करते हो तो। मन में दृढ़ विश्वास रखोगे तो आज भी परमात्मा अपने भक्तो से अलग नहीं है। जिनका विश्वास होता है वो सब कुछ साक्षात प्रकट करके दिखा देते हैं। सारे काम करो। भक्ति की शुरुवात घर से ही होती है। ईमानदारी और हक हलाल की कमाई करो। जितनी हो सके भलाई और नेकी करो। किसी का हक मत मारो। हर इंसान को अपने जैसा मान कर सोचा करो कि यदि इस बात से मुझे कष्ट हो सकता है तो सामने वाले को भी होगा। जीतने की जरूरत है उतना ही संचय करो। आशा तृष्णा में मत फंसो।

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