महान स्वतंत्रता सेनानी कैप्टन लक्ष्मी सहगल के स्मृति दिवस पर सेमिनार का आयोजन

गुरुग्राम – आज दिनांक 23 जुलाई 2022 अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति जिला कमेटी गुरुग्राम द्वारा महान स्वतंत्रता सेनानी कैप्टन लक्ष्मी सहगल के स्मृति दिवस पर सेमिनार का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता जिला प्रधान रामवति व संचालन जिला सचिव भारती ने किया सेमिनार में मुख्य वक्ता महिला समिति की राज्य की वरिष्ठ नेता व प्रदेश महासचिव उषा सरोहा ने भाग लिया

मुख्य वक्ता शीला ने कहा कि देश की आजादी में अहम भूमिका अदा करने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस की सहयोगी रहीं कैप्टन लक्ष्मी सहगल स्वतंत्रता संग्राम की सच्ची वीरांगनाओं में से एक हैं। कैप्टन डॉ. लक्ष्मी सहगल का जन्म 24 अक्टूबर, 1914 को केरल में वकील एस. स्वामीनाथन और सामाजिक कार्यकर्ता एवं स्वतंत्रता सेनानी ए. वी. अम्मुकुट्टी के घर हुआ। लक्ष्मी बहुत कम उम्र में ही स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ी। उन्होंने दलितों के मंदिर प्रवेश के लिए और बाल विवाह व दहेज प्रथा के विरोध में अभियान चलाए। उन्होंने 1938 में अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की और 1940 में सिंगापुर चली गई, जहां वे सुभाष चंद्र बोस के संपर्क में आई। नेता जी के साथ चली 5 घंटे की बैठक के बाद उन्हें आजाद हिंद फौज की महिला शाखा ‘रानी झांसी रेजीमेंट’ स्थापित करने का कार्य सौंपा गया। लक्ष्मी स्वामीनाथन अब कैप्टन लक्ष्मी बन गई। यह वह नाम और पहचान थी जो आजीवन उनके साथ रही।

वे आजाद हिंद सरकार में महिला मामलों की मंत्री भी रहीं। मार्च 1947 में उन्होंने आजाद हिंद फौज के अग्रणी साथी कर्नल प्रेमकुमार सहगल से विवाह किया। दंपत्ति लाहौर से कानपुर आ गया, जहां उन्होंने अपनी मेडिकल सेवाएं देनी शुरू कर दी और पाकिस्तान से आए शरणार्थियों के लिए काम करने लगी। पश्चिमी बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु के डॉक्टरों को किए गए आह्वान के कारण उन्होंने बांग्लादेशी शरणार्थियों के लिए शरणार्थी कैंप में काम किया। उसके तुरंत बाद वे भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) से जुड़ गई और राज्यसभा सांसद रहीं। वे 1981 में जनवादी महिला समिति के संस्थापक सदस्यों में से एक थी। कैप्टन लक्ष्मी सहगल आजीवन जनवादी महिला समिति के बैनर तले महिलाओं व वंचित तबकों के हितों के लिए और समाज सुधार के मुद्दों पर काम करती रही। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिख विरोधी हिंसा में उन्होंने भीड़ का विरोध किया और यह सुनिश्चित किया कि कानपुर में उनके इलाके में किसी भी सिख परिवार या सिख प्रतिष्ठान को हानि ना हो। 1998 में उन्हें पद्म विभूषण से नवाजा गया। वे अपनी मृत्यु तक कानपुर में गरीब लोगों के लिए मुफ्त क्लीनिक चलाती रहीं। 98 वर्ष की उम्र में 23 जुलाई 2012 को उनका निधन हो गया। ताउम्र देश की बेहतरी के लिए संघर्ष करने वाली महान स्वतंत्रता सेनानी कैप्टन लक्ष्मी सहगल ने मृत्यु के बाद भी अपना शरीर मेडिकल विद्यार्थियों के शोध के लिए दान कर दिया। इस मौके सभी ने कैप्टन लक्ष्मी सहगल जी की प्रतिमा पर फूल चढ़ाकर उनको श्रद्धांजलि अर्पित की

इस मौके पर सीटू नेता सतबीर सिंह, AILU के जिला सचिव विनोद भारद्वाज, किसान मोर्चा से मनीष मक्कड़, DYFI से रोहिन गर्ग, आदित्ती, आंगनवाड़ी वर्कर्स व हैल्पर्स यूनियन की नेता सरस्वती, राणी, सुमन,महिला समिति की माया, लीलावती, गिरिजा, रमेश, ओमवती, सुवेता मण्डल, फूलवती, अशोक कश्यप आदि महिलाएं शामिल हुई

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