भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। गुरुग्राम नगर निगम गुरुग्राम ही नहीं पूरे अपितु हरियाणा में चर्चा का विषय बना हुआ है लेकिन इस भ्रष्टाचार को दूर करने या भ्रष्टाचार को नकारने के लिए न तो मुख्यमंत्री का ब्यान आया था और न ही निकाय मंत्री का। गुरुग्राम में मेयर टीम बनाने टीम बनाने वाले केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह की चुप्पी भी सवाल खड़े करती है और स्थानीय विधायक भी इस बारे में कुछ बोलते नजर नहीं आते तथा सर्वाधिक जिम्मेदार जनप्रतिनिधि गुरुग्राम की मेयर की तरफ से कोई सफाई नहीं दी जा रही।

कल 11 तारीख को आप पार्टी ने निगम के भ्रष्टाचार के विरूद्ध प्रदर्शन भी किया और बहुत समय बाद किसी प्रदर्शन में इतनी संख्या नजर आई। इस पर प्रश्न यह उठता है कि क्या शामिल लोग आप पार्टी से संबंध रखते थे या निगम के भ्रष्टाचार से पीडि़त व्यक्ति भी उसमें सम्मिलित हो गए थे। हां, आप पार्टी वाले जरूर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं कि हमारा जनाधार इतना बढ़ गया।

निगम में भ्रष्टाचार की अनेक बातें समय-समय पर सामने आती रहती हैं लेकिन कार्यवाही कभी किसी पर होती देखी नहीं गई। इस पर न तो मेयर कुछ बोलती हैं, न जनता द्वारा चुने गए गुरुग्राम के विधायक मुंह खोलते हैं। 

चर्चित भ्रष्टाचारों पर नजर : 

एक बार पालम विहार से दिल्ली बॉर्डर तक सड़क बनने का ठेका दिया गया था और मेरी जानकारी के अनुसार वह ठेका 01 करोड़ 67 लाख के आसपास था। वह सड़क तो बनी नहीं लेकिन ठेकेदार की पेमेंट पूरी कर दी गई। उस पर आपके भारत सारथी ने भी समाचार लिखे थे। उसके पश्चात हमारे विधायक सुधीर सिंगला ने भी प्रेस विज्ञप्ति जारी कर उसके विरूद्ध जांच की बात की थी। कुछ समय पश्चात बात आई गई हो गई। विधायक जी से पूछा कि उसका क्या हुआ तो विधायक जी का उत्तर था कि ठेकेदार ने पेमेंट वापिस कर दी है और बात खत्म।

अब आप ही सोचिए, किसी ठेकेदार को 01 करोड़ 67 लाख की पेमेंट दे दी जाती है और नियम कानूनों के अनुसार उस पर पार्षद, जेई, एसडीओ, एक्सईएन, चीफ इंजीनियर आदि के हस्ताक्षर होते हैं। हस्ताक्षर होने का अर्थ यह है कि यह उनकी नजर में होता है। अब यह सब निगम कमिश्नर और निगम मेयर की जानकारी में भी होना चाहिए। अब इसे क्या कहें इन सबकी गफलत या जानबूझकर किया हुआ काम? तात्पर्य यह है कि  निगम के अधिकारियों ने जो इतनी बड़ी पेमेंट कर दी, उसके लिए किसी की तो जिम्मेदारी बनती ही होगी लेकिन सजा किसी को नहीं और निगम मेयर मौन?

दूसरी बड़ी घटना याद आती है कि जब अनिल विज स्थानीय निकाय मंत्री होते थे, उन्होंने यहां दौरा भी किया था और कुछ अनियमितताएं पाने पर निगम कर्मचारियों को सजा भी दी थी और एक एक्सईएन पर तो एफआईआर दर्ज कराने के भी आदेश दिए थे और एफआईआर दर्ज भी हुई। अब उसका क्या हुआ पता नहीं।

आपके मन में सवाल अवश्य उठ रहा होगा कि एफआईआर किसलिए? तो आपको बता दें कि मामला यह था कि कुछ ठेकेदारों को एक्सईएन ने पार्षदों के नकली हस्ताक्षर कर पेमेंट करा दी थी। आरंभ में इन पार्षदों की संख्या लगभग डेढ़ दर्जन सुनी गई थी लेकिन बाद में सुनने में आया कि पुलिस में ब्यान आधों में से भी कम के हुए थे लेकिन वही एक्सईएन अब फिर निगम में कार्यरत है। कौन से कानून हैं, कौन से नियम हैं यह जानकारी देने के लिए मेयर, विधायक राव इंद्रजीत, निकाय मंत्री कमल गुप्ता बोलने को तैयार नहीं।

शायद यही कारण है कि अब इसी प्रकार का एक और मामला सामने आया है। वार्ड 19 के पार्षद अश्वनी शर्मा ने फिर पत्र लिखकर कमिश्नर को सूचित किया है कि उनके क्षेत्र में काम हुए बिना और उनके हस्ताक्षर हुए बिना पेमेंट कर दी गई। अब इसे क्या कहेंगे आप समझ सकते हैं।

अब तीसरी घटना सुनिए, निगम की सामान्य बैठक में पार्षदों ने मांग रखी थी कि हमें पिछले पांच साल में हमारे वार्डों में हुए कार्यो और कितने बजट में हुए उसका ब्यौरा दिया जाए और कई माह बीतने के पश्चात भी वह ब्यौरा पार्षदों को उपलब्ध निगम की ओर से शायद नहीं कराया गया है।

पार्षदों और जनता में एक आम चर्चा है कि 10-20 लाख के जो छोटे काम होते हैं, वह केवल कागजों में ही हो जाते हैं और पेमेंट कर दी जाती है।

इसी प्रकार बड़े कामों में भी बजट के अनुसार धरातल पर काम हुआ या नहीं यह भी ज्ञात हो सकता है परंतु मजेदारी देखिए कि सामने आकर न तो कोई पार्षद बोलता और न ही अधिकारी।

निगम की मेयर ही उदाहरण प्रस्तुत करें अपने वार्ड का पांच साल में हुए कार्यों का और उन कार्यों के लिए किए गए भुगतान का ब्यौरा अपने कार्यालय के बाहर लगे सूचना पट्ट पर अंकित कर दें।

इन सब बातों से ऐसा दिखाई पड़ता है कि निगम में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार व्याप्त है। प्रश्न यह उठता है कि उसके लिए जिम्मेदार कौन है? वैसे तो कह सकते हैं कि निगम मेयर की बड़ी जिम्मेदारी बनती है जनता के टैक्स के पैसे के सदुपयोग की। उसके पश्चात जिम्मेदारी बनती है विधायकों की। वह क्यों नहीं इन पर नजर रखते? और यदि कहें कि अत्याधिक जिम्मेदार राव इंद्रजीत हैं, क्योंकि उन्होंने ही अपनी आन-बान-शान का सवाल बनाकर मेयर बनाए थे। अब मेयरों की कार्य की जिम्मेदारी भी उनकी ही होगी? फिर उसके पश्चात स्थानीय निकाय मंत्री और भ्रष्टाचार के काल मनोहर लाल क्यों नहीं ध्यान देते?

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