भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। आज राजनीति में रूचि रखने वालों का पहला चर्चा का विषय हरियाणा की राज्यसभा का चुनाव है, प्रश्न माकन जीतेंगे या कार्तिकेय? आज भी बड़ी तेजी से उतार-चढ़ाव देखे गए। कांग्रेस ने तो अपने विधायक पहले ही रायपुर रिजॉर्ट में ले जाकर रखे थे। भाजपा ने भी अपने विधायकों को बाड़े में डाल दिया। कारण बताया कि हम इन्हें राज्यसभा का वोट डालना सिखाएंगे। समझ नहीं आता कि जो व्यक्ति चंद समर्थक लेकर चुनाव जीता है, उसे राज्यसभा का वोट डालना सिखाने के लिए कितना समय लगता है? आम धारणा यह है कि पांच मिनट में यह बताया जा सकता है।

वर्तमान राजनीति में राजनीति में नैतिकता ढूंढने वालों को शायद अल्पबुद्धि ही कहा जाएगा। हां यह अवश्य है कि राजनैतिक लोग अपने सब कार्य नैतिकता की आड़ में ही करते हैं। कुछ सवाल मन में हैं, वह आपके साथ सांझा करता हूं।

हरियाणा में राज्यसभा सीट के लिए 31 वोटों की आवश्यकता है और 31 ही विधायक कांग्रेस के पास हैं। अत: कांग्रेस के विधायकों को तोड़े बिना निर्दलीय चुनाव कैसे जीत सकता है?

कार्तिकेय वशिष्ठ ने निर्दलीय नामांकन दाखिल किया जजपा तथा कुछ और विधायकों की मदद से। उसके पश्चात भाजपा के मंत्री उनकी जीत का दावा करने लगे, जबकि कांग्रेस के पास ही 31 विधायक हैं और अभय चौटाला, बलराज कुंडू सरकार का विरोध करते रहते हैं। फिर भाजपा को इतना विश्वास कैसे है कि वह जीत जाएंगे?

इनेलो के विधायक अभय चौटाला बार-बार बड़ी शिद्दत से भाजपा का विरोध करते रहे हैं। उन्होंने जजपा पर यह आरोप भी लगाया कि उन्होंने निर्दलीय कार्तिकेय वशिष्ठ का समर्थन हॉर्स ट्रेडिंग के अंतर्गत किया है। आज सायं उन्होंने प्रेस वार्ता कर कह दिया कि वह कार्तिकेय को वोट देंगे, क्योंकि कार्तिकेय के भाई मनु शर्मा ने जेल में उनके पिता की सेवा की है। अब प्रश्न यह उठता है कि जो भाजपा के कट्टर विरोधी थे, वह व्यक्तिगत संबंधों के चलते भाजपा के साथ हो गए? या चर्चा है कि क्या यह भी हॉर्स ट्रेडिंग में आ गए? 

इसी तरह नयनपाल रावत और बलराज कुंडू का ट्विटर वॉर खूब चर्चा में रहा। नयनपाल रावत का कहना था कि हम पांच निर्दलीय विधायकों की बात हो गई है कि हम कार्तिकेय को वोट देंगे, जबकि कुंडू ने अपने पत्ते नहीं खोले लेकिन उनके विरोध में यह अवश्य कहा कि जो यह कहते हैं, गलत कहते हैं, मैं अपनी अंर्तात्मा से वोट दूंगा। अब यह तो कल का दिन ही बताएगा कि कौन किसे वोट देगा।

तात्पर्य यह है कि कार्तिकेय का नामांकन भाजपा का उसको समर्थन अपने नैतिकता पर सवाल खड़े करता है। अभय चौटाला ने कह ही दिया कि वह कार्तिकेय को वोट दूंगे लेकिन कार्तिकेय जीत तभी सकता है, जब कांग्रेस के विधायकों के वोट उसे मिलें। क्या वहां भी पारिवारिक संबंध सामने आएंगे? इसीलिए सवाल उठ रहा है कि राजनीति में नैतिकता कहां? कल और मुखौटे उतरेंगे, ऐसी संभावना है।

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