भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक गुरुग्राम। कार्तिकेय वशिष्ठ के नामांकन के पश्चात जिस तेजी से भाजपा के नेता दावा कर रहे हैं कि हम दोनों राज्यसभा की सीट जीतेंगे, उससे उन्होंने अपनी साख को भी दांव पर लगा लिया है। यदि कार्तिकेय नहीं जीत पाते हैं तो यह भाजपा की बहुत बड़ी नासमझी का प्रमाण हो जाएगा। वर्तमान में हरियाणा में निकाय चुनाव की प्रक्रिया भी चल रही है और निकाय चुनाव में जबसे कांग्रेस ने सिंबल पर न लडऩे की बात कही है, तब से भाजपा और जजपा वाले खुशी से उछल रहे हैं और कह रहे हैं कि हमारी तो जीत निश्चित है, जबकि धरातल पर देखें तो आसान नजर नहीं आ रही। भाजपा के घोषित उम्मीदवारों पर भाजपा के अंदर से ही आवाजें उठने लगी हैं। बहादुरगढ़ में तो दूसरा कैंडिडेट भाजपा से ही तैयार हो गया है और वह तथा उसके अनेक साथ कार्यकर्ता पार्टी छोडऩे की बात कर रहे हैं।इसी प्रकार भिवानी से भी समाचार मिल रहे हैं कि कार्यकर्ता ही नहीं अपितु स्थानीय शीर्ष नेता भी भाजपा के फैसले से संतुष्ट नहीं हैं। इसी प्रकार के समाचार अन्य कई स्थानों से प्राप्त हो रहे हैं। समाचार तो यहां तक प्राप्त हो रहे हैं कि चुनाव लडऩे के इच्छुक जजपा और भाजपा दोनों ही पार्टियों के लोग कई स्थानों से निर्दलीय भी अपना भाग्य आजमा सकते हैं। ऐसी स्थिति में परिणाम की कल्पना भाजपा के लिए सुखद तो नहीं दिखाई देती। राज्यसभा के चुनाव पर नजर डालें तो वह वर्तमान में कांग्रेस के पक्ष में ही दिखाई देते हैं, क्योंकि 28 विधायकों को तो कांग्रेस रायपुर ले जा चुकी है। समाचार यह मिल रहे हैं कि चिरंजीव राव भी रायपुर के लिए रवाना होने जा रहे हैं। किरण चौधरी के बारे में यह सोचा नहीं जा सकता कि वह कांग्रेस से बगावत कर क्रॉस वोटिंग करेंगी, क्योंकि उनकी पुत्री को भी कार्यकारी अध्यक्ष के पद से नवाजा हुआ है और फिर अब लड़ाई भूपेंद्र सिंह हुड्डा की नहीं रह गई, कमान केसी वेणुगोपाल के हाथ में है। तीसरी बात करें कुलदीप बिश्नोई की तो वह लंबे समय से चर्चा में हैं कि कांग्रेस छोड़ सकते हैं लेकिन उन्हें ऐसा लगता नहीं कि भाजपा में उन्हें कोई महत्व मिल पाएगा। खैर, कह सकते हैं कि कुलदीप बिश्नोई पर असमंजस बरकरार है और कांग्रस को जीत के लिए 31 मतों की ही आवश्यकता है। अभी जो बातें की जा रही हैं कि बलराज कुंडू, अभय चौटाला भी कांग्रेस के साथ न जाकर भाजपा के साथ जाएंगे, ऐसा संभव लगता नहीं, क्योंकि जनता सब देख रही है और इनकी लड़ाई जनता की नजर में सीधे-सीधे भाजपा से है। ऐसी स्थिति में इनका भाजपा के पक्ष में वोट करना संभव नहीं लगता। हां, कुछ सूत्रों से यह अवश्य ज्ञात हुआ है कि यह कांग्रेस के पक्ष में भी वोट देंगे नहीं। अर्थात संभव है कि वह चुनाव में हिस्सा ही न लें और ऐसी स्थिति में कार्तिकेय का जीतना असंभव हो जाएगा।यदि राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस का उम्मीदवार जीत गया तो उसका असर सीधा-सीधा निकाय चुनाव पर भी पड़ेगा, जिससे निपटना भाजपा को ही पड़ेगा। ऐसे में कह सकते हैं कि साख भाजपा की भी दांव पर है। Post navigation भाजपा द्वारा 14 नगर परिषदों में चेयरमैन पद के लिए एक भी ब्राह्मण को टिकट ना दिए जाने से ब्राह्मण समाज में आक्रोश की लहर मारूति विहार-सरस्वती विहार की मुख्य सीवर लाइन बदलकर नई लाइन डालने का काम शुरू