कई जन्मों के अच्छे कर्मों के बाद हमें ये इंसानी चोला मिला है, परमात्मा की भक्ति के बिना वर्था ना खोवो : कंवर साहेब जी 

मां का गुणगान इसीलिए करते हैं कि वो अपनी संतान को सही मार्ग सुझाती है,मां ही बच्चों में नैतिक, आध्यात्मिक विकास की प्रथम गुरु और घर व परिवार की धूरी है : हजूर कंवर साहेब जी 
मां तो इस श्रृष्टि की जननी है, मां के बिना तो जीवन ही संभव नहीं है : हजूर कंवर साहेब जी 
मां-बाप और गुरु की आज्ञा में रहो गे तो हर विद कल्याण : हजूर कंवर साहेब जी
मां तो हर युग, हर घड़ी में जिंदा है, मां के बीना इस धरा पर जीवन सम्भव नही।
मातृ दिवस पर भीषण गर्मी में भी उमड़ी संगत की विशाल हाजरी के बीच सत्संग फरमाते परमसंत कंवर साहेब जी महाराज

चरखी दादरी/हिसार जयवीर फोगाट

08 मई,मां तो इस श्रृष्टि की जननी है। मां के बिना तो जीवन ही संभव नहीं है तो भक्ति सत्संग उससे अलग कैसे हो सकते हैं। हर ऋण से मुक्त हुआ जा सकता है लेकिन माता-पिता के ऋण से हम कभी मुक्त नहीं हो सकते। मां को हम मदर डे के रूप में किसी एक दिन में नहीं बांध सकते। मां तो हर युग, हर घड़ी में जिंदा है। जिस दिन मां नहीं होगी उस दिन इस धरा पर जीवन ही नहीं होगा।

भीषण गर्मी के बावजूद उमड़ी संगत की विशाल हाजरी के बीच हुजूर कंवर साहेब जी महाराज ने उच्च कोटि का अध्यात्म परोसते हुए मां को हर चीज का आधार माना। उन्होंने कहा कि मां जिस दिन पैदा हुई थी तब कोई दूसरी चीज पैदा ही नहीं हुई। कभी कल्पना की है कि नौ माह तक हमें गर्भ में रख कर मां ने कितने कष्ट सहे होंगे। बिना बोले बच्चे की भाषा केवल मां ही समझ सकती है। हर इंसान के जीवन में मां अपने प्राण स्थापित करती है। अगर मां को खुश कर लिया तो समझो आपने परमात्मा को ही खुश कर लिया। 

गुरु महाराज जी ने कहा कि दो ही चीज इंसान को नाच मचाते हैं। एक काल और दूसरी माया। इससे केवल सतगुरु की शरण में जाकर ही बचा जा सकता है और सतगुरु केवल अपना आपा चिन्हित करके खोजा जा सकता है। उन्होंने कहा कि हम कभी स्वयं को खोजते ही नहीं है। हम विद्या के फेर में उलझे हैं। उस विद्या को जिसको संतो ने अविद्या माना है। विद्या तो केवल भ्रम पैदा करती है। ये केवल दूसरो की बुराईयों में तांका झांकी करवाती है। उन्होंने कहा कि किताबी ज्ञान आपका कल्याण नहीं करता बल्कि वह तो आपको मनमुखी बातो में उलझाता है। उन्होंने कहा कि कई ढोंगी लुटेरे संतोंका भेख धार कर ये दावा करते हैं कि उन्होंने परमात्मा का नूर देखा, प्रकाश देखा और शब्द सुना। ये कोरी बेइमानी हैं। भक्ति इतनी आसान नहीं है। भक्ति तो छठी का दूध निकसाती है। परमात्मा का जहूर देखना खाला का घर नहीं है। इस जहूर को तो कोई बिरला अरबो खरबों में एक ही लख सकता है।

गुरु जी ने कहा कि हम छोटी मोटी रिद्धी सिद्धि तो प्राप्त कर सकते हैं लेकिन अपना आपा कोई बिरला गुरमुख ही मार सकता है। उन्होंने बाबा फकीर का प्रसंग सुनाते हुए फरमाया कि बाबा फकीर को भी अपनी ध्यान साधना का गुमान हो गया था। उनके गुमान को तो एक पतिव्रता स्त्री ने ही तोड़ दिया था। उन्होंने कहा कि एक गुरमुख की गति भी पतिवर्ता स्त्री की भांति होती है। जिसका गुरु में ध्यान लग गया समझो उसको सर्वस्व ही छूट गया। 

हुजूर ने कहा कि हम सब राम राम तो करते हैं लेकिन क्या कोई जानता भी है कि इस राम का रूप क्या है। आप जिस रूप में राम को मानते हो उसी रूप में वो आपके सारे कारज करता है। उन्होंने कहा कि एक राम वो है जो दसरथ के घर पैदा हुए थे। एक राम वो हैं जो हर घट में बोलता है। एक राम का सारे जहां में पसारा है लेकिन संतो का राम तो तीन लोक से न्यारा है। महाराज जी ने कहा कि आपके वचन में बड़ी ताकत है। एक वचन ऐसा होता है जो किसी अस्त्र शस्त्र से भी गहरा घाव करता है वहीं एक वचन ऐसा भी होता है जो सामने वाले का सब कुछ जीत लेता है। उन्होंने कहा कि इंसान के पांच दुश्मन है। काम क्रोध मोह लोभ और अहंकार। इन सब में सबसे बड़ा दुश्मन क्रोध है। क्रोध आपके विवेक को हर लेता है और बुरे अच्छे के बीच का अंतर मिटा देता है।

हुजूर ने कहा कि बेशक किसी मंदिर मस्जिद सत्संग में ना जाना लेकिन अपनी मां को खुश कर लेना। मां से बड़ा सत्संग, ध्यान साधना चिंतन इस विश्व में दूसरा नहीं है। उन्होंने महाभारत काल का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि ये मां की ताकत ही थी जिसने दुष्ट दुर्योधन को भी अपनी दृष्टि से वज्र का बना दिया। गुरु जी ने कहा कि पौराणिक कथाओं में हम जिन शक्तियों के बारे में सुनते हैं उन शक्तियों को हम भी हासिल कर सकते हैं बशर्ते कि हम अपने जीवन को और क्रियाओं को साध ले। जब हम अपनी वृति को एकाग्र करके उन्हे सही दिशा में साधते हैं तो प्रकृति का कण कण हमारी मदद करता है। उन्होंने कहा कि हमारी हालत तो अंधो की नगरी जैसी है जहां अंधा अंधे से ही मार्ग पूछ रहा है। ऐसे में कोई कैसे पार जाए। हर कोई अधर्म के मार्ग पर जा रहा है तो कोई कैसे किसी को धर्ममार्गी बनाएगा। 

गुरु जी ने कहा कि सोचो कितने जन्मों के बाद, कितने अच्छे कर्मों के बाद हमें ये इंसानी चोला मिला है। अब ये हमारे ऊपर है कि हम इसे सार्थक करे या निरर्थक। उन्होंने कहा कि किसी लकीर को मिटाए बिना हम उस लकीर को छोटा तभी कर सकते हैं जब उसके बराबर में बड़ी लकीर खींच देंगे। इसी प्रकार किसी की बुराई को उसकी निंदा करके नहीं बल्कि अपने आचरण को सही करके मिटाएं। हम किसी की बुराइयों को देखने की बजाए सिर्फ अपने अंदर अच्छाइयां भरें। 

गुरू जी ने कहा कि आज हम मां का गुणगान इसीलिए करते हैं कि वो अपनी संतान को सही मार्ग सुझाती है। उन्होंने कहा कि अपने कर्म मत बिगाड़ो। माया के हाथो मत ठगो। भले बुरे की पहचान करना सीखो। पहले अपनी बुराई समाप्त करो ताकि आपको अच्छाई का स्वाद भली भांति आ सके। उन्होंने कहा कि आप नमक रूपी बुराई को जब तक मुंह में रखोगे तब तक आपको अच्छाई रूपी मिसरी भी कड़वी लगेगी। सत्संग में आओ तब अपनी सारी बुराइयों को त्याग कर आया करो ताकि सत्संग के सत्य वचन आपके अंदर समाहित हो सकें। 

गुरु जी ने कहा कि समय बहुत कम है इसे व्यर्थ मत खोवो। पूरी सचाई और ईमानदारी से अपना जीवन यापन करो। परहित और परमार्थ में अपनी सांसे लगाओ क्योंकि इससे बड़ा धर्म नहीं है। अपने कर्म संवार लो जीवन संवर जाएगा। मां-बाप गुरु की आज्ञा में रहो। घरों में प्यार प्रेम प्रीत रखो। चार युगों के बाद ये पांचवां युग पाप युग का चल रहा है इसमें संभल कर चलो नहीं तो हर तरफ ठग तुम्हें ठगने के लिए खड़े हैं।

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