भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक गुरुग्राम। हरियाणा में भाजपा सरकार आने के पश्चात या हुड्डा सरकार जाने के पश्चात कुछ भी कहो तब से कांग्रेस में अध्यक्ष पद के लिए रार चली ही आ रही है। कांग्रेस का संगठन तब से अब तक बन नहीं सका और राजनैतिक जानकारों के अनुसार इसका मुख्य कारण भूपेंद्र सिंह हुड्डा ही रहे हैं, क्योंकि दस साल वह हरियाणा के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उस समय में वह कांग्रेस के सुप्रीमो की तरह ही कार्य करते थे। अत: वही रूतबा वह अपना चाहते रहे हैं। अशोक तंवर आए, कुमारी शैलजा आई, चले गए। जब भूपेंद्र सिंह हुड्डा मुख्यमंत्री थे तब फूलचंद मुलाना और कुलदीप शर्मा कांग्रेस के अध्यक्ष रहे और यह वही करते और कहते थे, जैसे निर्देश हुड्डा साहब से मिलते थे। इसके पश्चात न हुड्डा मुख्यमंत्री रहे और अशोक तंवर तथा शैलजा ने इनके कहे पर चलना माना नहीं, संगठन बना नहीं। वर्तमान में आप पार्टी ने जो पंजाब में करके दिखाया, उसका असर हरियाणा पर स्पष्ट दिखाई दे रहा है। पंजाब में भी माना यह जा रहा था कि मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के मध्य होगा लेकिन दोनों ही वहां नजर नहीं आई। वर्तमान में हरियाणा में भी यही माना जा रहा है कि मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस में होगा लेकिन आप के प्रचार ने दोनों दलों में आशंकाएं तो खड़ी हो ही गई हैं। शायद इसी को देखते हुए कांग्रेस के केंद्रीय संगठन ने हरियाणा की बागडोर भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सौंप दी है। वर्तमान में कुमारी शैलजा स्थितियों का आंकलन कर लगभग 15 दिन पूर्व ही अपना इस्तीफा दे आई थीं। पिछले तीन-चार दिनों से कांग्रेस हाइकमान में के.सी. वेणुगोपाल पूर्णतया: हरियाणा पर केंद्रित नजर आ रहे थे। वह हरियाणा के सभी शीर्ष नेताओं से मिले और सोच-समझकर शायद यह निर्णय लिया कि एक बार कमान भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सौंपकर देख लें। शायद भूपेंद सिंह हुड्डा समझकर सबसे सामंजस्य बना लें। भूपेंद्र सिंह हुड्डा हालांकि दीपेंद्र हुड्डा को प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहते थे परंतु शैलजा और तंवर के दलित होने की वजह से अब भी दलित अध्यक्ष बनाने की बात उठी और भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने वर्तमान में उनके समर्थक चौ. उदयभान का नाम दे दिया और उदयभान के सितारे अच्छे थे, बन गए अध्यक्ष। इसके पश्चात जितेंद्र भारद्वाज जो भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ मुद्दतों से लगे हुए हैं, उन्हें भी कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में नवाजा गया। दूसरी कार्यकारी अध्यक्ष बनी श्रुति चौधरी। वह चौधरी बंसीलाल की पुत्री हैं और उनकी मां का अपना ही ग्रुप है। तीसरे कार्यकारी अध्यक्ष बने रामकिशन गुर्जर। यह फरीदाबाद के गुर्जर घरानों से भी संबंध रखते हैं और कुमारी शैलजा के प्रभाव से बने हैं। अब सुरेश गुप्ता की बात करें तो उन्हें रणदीप सुरजेवाला का आशीर्वाद प्राप्त है। इस तरह चार पहियों का रथ तैयार कर उदयभान को उस पर बिठा दिया और पीछे से सारथी रहेंगे भूपेंद्र सिंह हुड्डा। एक तरीके से कांग्रेस ने सभी जातियों को साधने का प्रयास किया है। बनिये, ब्राह्मण, जाट, गुर्जर को कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर दलित को अध्यक्ष बना दिया। अब यह दूसरी बात है कि ये सभी पांचों नेता जिन्हें पद नवाजे गए हैं, अपने क्षेत्र के बाहर उनकी कोई पहचान नहीं है। आइए जानिए उनका संक्षिप्त परिचय : उदयभान : खुद 1987 से विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। पलवल जिले की हसनपुर व होडल सीट से चार बार विधानसभा पहुंच चुके हैं। ये 1987 में लोकदल से विधायक बने, तो 2000 में निर्दलीय जीते। साल 2005 व 2014 में कांग्रेस की टिकट पर विधानसभा पहुंचे। उदयभान मूलत: कांग्रेसी नहीं हैं। वे लोकदल, जनता पार्टी में भी रह चुके हैं। इन्हें पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सिफारिश पर अध्यक्ष बनाया गया है। हालांकि, हुड्डा आखिरी समय तक अपने बेटे दीपेंद्र हुड्डा को कमान दिलवाने के लिए कोशिश करते रहे, लेकिन जब विरोधियों ने ऐसा नहीं होने दिया तो उन्हें मजबूरी में उदयभान का नाम हाईकमान के आगे करना पड़ा। क्योंकि, दलित समुदाय से आने वाली कुमारी सैलजा के स्थान पर दलित को न बैठा कर कांग्रेस इस बड़े वोटबैंक को नाराज करने का जोखिम नहीं लेना चाहती थी। इसलिए उदयभान की लाटरी लग गई। उदयभान को होडल, हसनपुर से बाहर कोई नहीं जानता। न तो इनकी पहचान बड़े कांग्रेस नेता के तौर पर है और न ही दलित नेता के तौर पर ये अभी तक स्थापित हो पाए हैं। उदयभान की ज्यादा पहचान तो इनके पिता गयालाल की वजह से है। गयालाल भी विधायक रहे हैं और हरियाणा राजनीति में दलबदल के प्रयाय के तौर पर गयालाल का नाम लिया जाता है। एक दिन में सबसे ज्यादा पार्टी बदलने का रिकॉर्ड भी उन्हीं के नाम है। श्रुति चौधरी : पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल की पौत्री हैं। पिता सुरेंद्र सिंह भी मंत्री रह चुके। मां किरण चौधरी मंत्री रह चुकी, फिलहाल विधायक हैं। श्रुति चौधरी साल 2009 में भिवानी लोकसभा से सांसद बनी। इस सीट पर उनके दादा चौधरी बंसीलाल तीन बार सांसद बने तो पिता सुरेंद्र सिंह भी दो बार सांसद बने। लेकिन, श्रुति चौधरी एक बार सांसद बनने के बाद इस सीट को आगे अपने लिए बचा नहीं पाई। इनको कार्यकारी अध्यक्ष बनवाने में मां किरण चौधरी की अहम भूमिका रही है। लेकिन, विडंबना यह है कि परिवार के सदस्य के अलावा किरण चौधरी को पूरे हरियाणा में कोई ऐसा नाम नहीं सूझा, जिसे वे कार्यकारी अध्यक्ष के लिए आगे बढ़ा सकें। भिवानी जिले से बाहर श्रुति की हरियाणा में उनके परिवार के अलावा व्यक्तिगत तौर न तो कोई छवि है और न ही कोई पहचान है। रामकिशन गुर्जर : नारायणगढ़ विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे हैं। कांग्रेस सरकार में मुख्य संसदीय सचिव भी रहे। आत्महत्या के लिए उकसाने के एक मामले में अंबाला कोर्ट से 4 साल की सजा हुई, तो पत्नी शैली चौधरी को मैदान में उतारा। शैली अभी भी विधायक हैं। रामकिशन गुर्जर को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली हुई है। रामकिशन गुर्जर की रिश्तेदारी बड़े गुर्जर परिवार माने जाने वाले अवतार सिंह भड़ाना, करतार सिंह भड़ाना से है। गुर्जर की गिनती कुमारी सैलजा के विश्वासपात्रों में होती है। इनका नाम कुमारी सैलजा ने ही आगे बढ़ाया। भाजपा द्वारा प्रदेश के गुर्जर समुदाय को दिए जा रहे महत्व के जवाब में कांग्रेस हाईकमान ने रामकिशन गुर्जर को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया है। जितेंद्र कुमार भारद्वाज : इनके दादा, पिता व खुद ब्लॉक कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं। खुद गुडग़ांव जिला ग्रामीण अध्यक्ष व प्रदेश प्रवक्ता भी रहे। लेकिन, इनकी पहचान गुडग़ांव से बाहर नहीं बन पाई। कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर इनकी नियुक्ति भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने ही करवाई है। जितेंद्र भारद्वाज की ईमेज हुड्डा सरकार के दौरान सीएलयू वाले व प्रॉपर्टी डीलर के तौर पर अधिक रही। सत्ता में रहने के दौरान भी और बाद में भी हुड्डा पिता-पुत्र के जन्मदिन पर अखबारों को फुल-फुल पेज विज्ञापन देने वाले के तौर पर जितेंद्र की पहचान जरूर है, बाकी न तो प्रदेश भर के ब्राह्मण समुदाय में किसी तरह की पैठ है, और न ही गुडग़ांव से बाहर प्रदेश में कहीं भी अपने ठिकाने बना पाए हैं। सुरेश गुप्ता : सुरेश गुप्ता की पहचान सुरेश गुप्ता मतलौडा के तौर पर है। इन्हें रणदीप सिंह सुरजेवाला का करीबी माना जाता है। इन्हें कार्यकारी प्रधान बनवाने में सुरजेवाला का अहम रोल रहा है। सुरेश गुप्ता 2013 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार और अपनी ही पार्टी की करनाल की विधायक सुमिता सिंह के खिलाफ आंदोलन शुरू कर चर्चा में आए। जब चौधरी बीरेंद्र सिंह कांग्रेस में थे, तो सुरेश गुप्ता को उनका भी करीबी माना जाता था। साल 2014 में इन्होंने करनाल से टिकट न मिलने पर आजाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा, लेकिन महज 2800 वोट ही हासिल कर पाए। सुरेश गुप्ता भले ही पानीपत जिले के हैं, लेकिन कार्यक्षेत्र करनाल चुनाव। करनाल, पानीपत जिले से बाहर इनका खुद का कोई नेटवर्क फिलहाल प्रदेश में नहीं है। Post navigation मानेसर में भीषण आग की जिम्मेदारी कौन लेगा: कैप्टन अजय रेडक्रॉस के आजीवन सदस्य बनकर करें समाजसेवा: डीआर शर्मा