यज्ञ-महायज्ञ के माध्यम में सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण किया जाना संभव.
यज्ञ-महायज्ञ, का भारतीय सनातन में वैदिक परंपरा का अनादी काल से महत्व.
महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने शंकराचार्य नरेन्द्रानन्द से लिया आशिर्वाद

फतह सिंह उजाला

गुरूग्राम। काशी सुमेरु पीठाधीश्वर अनन्त श्री विभूषित जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती महाराज ने कहा संपूर्ण विधि विधान मंत्रों के शुद्ध उच्चारण और पवित्र संकल्प के साथ किए जाने वाले किसी भी यज्ञ महा यज्ञ अनुष्ठान से मनोकामना पूर्ण होना संभव है । ऋषि-मुनियों, साधु-संतों, तपस्वी, संयासी के द्वारा अनादि काल से भारतीय सनातन परंपरा के मुताबिक हवन-यज्ञ, महायज्ञ जैसे अनुष्ठान किये जाते आ रहे हैं । भारतीय सनातन संस्कृति और भारतीय समाज में आज भी यथा सामर्थ्य के महायज्ञ का आयोजन किया जा रहा है । भारतीय सनातन संस्कृति हिंदू धर्म के प्रति जन जागृति और वैदिक परंपरा के जन जागरण अभियान पर देश भर में भ्रमण के दौरान यही अलग शंकराचार्य नरेंद्रानंद महाराज के द्वारा जगाई जा रही है ।

इसी कड़ी में काशी सुमेरू पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य नरेंद्रानंद सरस्वती महाराज ने मोतिहारी में प्रख्यात शिक्षाविद्, समाजसेवी डा शम्भू नाथ सीकरिया द्वारा आयोजित अश्वमेध यज्ञ का मंत्रोच्चारण के बीच शुभारम्भ किया। जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती महाराज द्वारा सर्व प्रथम अश्व पूजन कर अश्व को भ्रमण के लिये छोड़ा गया। इसके साथ ही उन्होंने ने वैदिक विद्वानों के मन्त्रोच्चारण के साथ यज्ञ में आहुतियाँ डालकर अश्वमेध यज्ञ का शुभारम्भ किया। यह जानकारी मीडिया को शंकराचार्य नरेंद्रानंद के निजी सचिव स्वामी बृजभूषणानन्द सरस्वती के द्वारा उपलब्ध कराई गई है।

अश्वमेध यज्ञ के शुभारम्भ के पश्चात् शंकराचार्य महाराज ने अश्वमेध यज्ञ की महत्ता पर जानकारी  देते हुए कहा कि आश्वलायन श्रौत सूत्र का कथन है कि जो सब पदार्थाे को प्राप्त करना चाहता है, सब विजयों का इच्छुक होता है और समस्त समृद्धि पाने की कामना करता है, वह इस यज्ञ का अधिकारी है। इसलिए सार्वभौम के अतिरिक्त भी मूर्धाभिषिक्त ब्यक्तित्व अश्वमेध कर सकता है। यह अति प्राचीन यज्ञ होता है, क्योंकि ऋग्वेद के दो सूक्तों में अश्वमेधीय अश्व तथा उसके हवन का विशेष विवरण मिलता है। शतपथ तथा तैतिरीय ब्राह्मणों  में इसका बड़ा ही विशद वर्णन उपलब्ध है, जिसका अनुसरण श्रौत सूत्रों, वाल्मीकीय रामायण महाभारत के आश्वमेधिक पर्व में तथा जैमिनीय अश्वमेध में किया गया है। वैसे भी यज्ञ विभाजित, असंगठित समाज को एकसूत्र में पिरोने का सबसे ससक्त माध्यम है । यज्ञ से सभी मनोरथों की प्राप्ति होती है ।

इससे पहले महाराष्ट्र प्रवास के दौरान के शिवाजी विश्वविद्यालय-कोल्हापुर में आयोजित सन्त साहित्य सम्मेलन में महाराष्ट्र के महामहिम राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने काशी सुमेरु पीठाधीश्वर अनन्त श्री विभूषित जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती महाराज से आशिर्वाद प्राप्त किया। इस मौके पर शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द महाराज ने कहा कि पूरे ब्रह्मांड में केवल मात्र भारत देश और यहां की भूमि  एकमात्र ऐसा स्थान है, जहां सनातन संस्कृति का उदय हुआ ।

भारत की भूमि पर जंगलों और बर्फीली कंधराओ में हजारों हजार वर्ष तक तपस्या करने वाले ऋषि मुनियों के द्वारा अध्यात्म की जो खोज की गई उसी की बदौलत आज भी भारतीय सनातन संस्कृति पूरी दुनिया में सर्वश्रेष्ठ है । इसके एक नहीं अनगिनत उदाहरण भी हैं । जहां स्वयं देवताओं ने प्रकांड विद्वान ऋषि-मुनियों ने अपने आवास आश्रम गुरुकुल इत्यादि बनाकर आत्म ज्ञान और आत्म बल की शिक्षा दीक्षा दी , यह बात भी किसी से छिपी हुई नहीं रह सकी है । दुनिया में आज जितनी भी वैज्ञानिक खोज का दावा किया जा रहा है, यह सब कार्य अनंत काल पहले भारत के ऋषि मुनियों के द्वारा किया जा चुका है । कालांतर में इस प्रकार की खोज और उसकी कार्यप्रणाली के लिखित तमाम दस्तावेजों को एक योजनाबद्ध तरीके से साजिश के तहत नष्ट कर दिया गया । लेकिन जो ज्ञान प्रकांड विद्वानों और गुरुजनों के द्वारा आज भी भारतीय सनातन संस्कृति को समर्पित शिष्यों को प्रदान किया जा रहा है, ऐसे ज्ञान को कोई भी ताकत किसी भी प्रकार से समाप्त करने में कभी कामयाब नहीं हो सकेगी । उन्होंने समस्त मानव जाति, जीव कल्याण की कामना करते हुए ऋषि-मुनियों और प्रकांड विद्वानों के द्वारा बताए गए या फिर दिखाई गए अध्यात्म के मार्ग को अपनाने का सभी का आह्वान किया है।

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