ना धन में सुख है ना बल में, ना ऊंचे कुल में, ना माया में, सुख अगर है तो प्रभु भक्ति में हैं : हुजूर कँवर साहेब जी

धर्म पर अडिग रहोगे तो भक्त प्रहलाद की तरह परमात्मा करेगा मदद
होली पर्व पर रेवाड़ी के कनीना रोड़ पर फरमाया हजूर कंवर साहेब ने साध संगत को सत्संग वचन

चरखी दादरी/रेवाड़ी जयवीर फोगाट

17 मार्च,फाल्गुन मास का संत मत में बहुत बड़ा महत्व है। सब संतो ने फाल्गुन की महिमा गाते हुए मनुष्य चौले को फाल्गुन मास का प्रतीक बताते हुए इसे उल्लास और खुशी से मनाने का हेला दिया है। उलास और खुशी इस बात की कि हमें सतगुरु मिले सत्संग मिला और सतनाम मिला। होली को भी संतो ने भक्ति का त्योहार माना है। होली सत्य के रंगो का पर्व है।

हुजूर कंवर साहेब जी महाराज ने कहा कि होली का त्योहार हमें संगति की शिक्षा भी देता है। जिस भगत प्रहलाद से होली का यह पर्व जुड़ा है उसको जन्म से पहले ही साधु महात्माओं की संगत मिल गई थी। उन्होंने कहा कि बेशक होली भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार और भक्त प्रहलाद से जुड़ी हुई है कि विष्णु भगवान के एक भक्त प्रहलाद का जन्म असुर परिवार में हुआ। हिरण्यकश्यप को भगवान के प्रति प्रहलाद की भक्ति बिल्कुल पसंद नही होने के कारण उसे कई यातनाएं दीं गई।कई बार प्रहलाद को मारने की कोशिश की। अंततः हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से मदद मांगी। होलिका को वरदान मिला हुआ था कि वह आग में नहीं जलेगी। इसलिए हिरण्याकश्यप ने प्रहलाद को होलिका की गोद में बैठा कर अग्नि में बैठा दिया। लेकिन उस अग्नि में प्रहलाद बच गया और होलिका जलकर राख हो गई। उसी वक्त परमात्मा ने नरसिंह अवतार धारण कर हिरण्याकश्यप को मार दिया। तभी से होलिका दहन की प्रथा शुरू हो गई। और इसी खुशी में अगले दिन रंग खेला जाता है।

गुरु महाराज जी ने कहा कि होली इस बात की प्रतीक है कि बुराई ज्यादा देर तक नहीं टिक सकती। आखिरकार जीत सत्य की ही होती है। हुजूर महाराज जी ने फरमाया कि जिस प्रकार अनाज पीसने की चक्की में सारा अनाज पीस जाता है लेकिन जो दाना किल्ले के पास आ जाता है वो पीसने से बच जाता है। उसी प्रकार इस माया की चक्की में हर जीव पिस रहा है केवल वो ही पीसने से बचता है जो सतगुरु रूपी किल्ले के पास आ जाता है।

हुजूर महाराज जी ने कहा कि परमात्मा सबका करता हरता और सर्व शक्तिमान है फिर हम क्यों नहीं हर पल उसी की रजा में रहें। उन्होंने कहा कि उस परमात्मा का मार्ग केवल संत सतगुरु ही बता सकते हैं लेकिन हम गुरु के भी कहां होते हैं। हम ऊपर ऊपर से तो गुरु के गीत गाते है लेकिन बुरे कर्म हमारे छूटते नहीं। गुरु महाराज जी ने कहा कि इंसानी चौला पाप करने के लिए नही अपितु पुण्य करने के लिए मिला है। उन्होंने कहा कि हम आए तो थे इस जगत को जीतने लेकिन कदम कदम पर सांसारिक धोखो से हारते हैं। उन्होंने कहा कि दुनियादारी की हार आपको संकल्प देती है और मजबूत करती है लेकिन जो दिल से ही हार गया उसे कौन जीतना सिखा सकता है।

हुजूर ने कहा कि संवरने में तो समय लगता है लेकिन बिगड़ने में एक पल भी नहीं लगता। जो इंसान बिगड़ने और संवरने के इस खेल को सीख जाता है वो अपने जगत को भी संवार लेता है और अगत को भी। उन्होंने कहा कि ऐसे इंसान के मुंह मत लगना जो झूठा है कपटी है ईर्ष्यालु है। अगर आप परमात्मा के हो जाओगे तो कोई आपका बाल बांका नहीं कर सकता। पाप का घड़ा जल्दी ही फूटता है। अपने धर्म पर अडिग रहो। फिर देखो आपकी मदद भी परमात्मा ऐसे ही करेगा जैसे प्रहलाद की थी। जिसकी आपने शरण ली है वो आपका हर पल रखवाला है। परमात्मा की रजा के आगे किसी की कोई चतुराई नहीं चलती। हिर्णाकश्यप ने वरदान मांगा था कि ना मैं नीचे मरू ना ऊपर, ना मैं अंदर मरूं ना बाहर, ना मैं रात को मरूं ना दिन में ना मैं अस्त्र से मरूं ना शस्त्र से और ना मैं इंसान से मरूं ना मैं जानवर से। लेकिन परमात्मा के आगे उसकी भी चालाकी नहीं चली। नरसिंह भगवान जो ना इंसान था ना जानवर। उसने हिर्णाकश्यप को ना बाहर मारा ना अंदर बल्कि घर की देहली पर अपनी जांघ के ऊपर रख कर अपने नाखूनों से मारा।

हुजूर महाराज जी ने कहा कि सब परिस्थितियों से ऊपर उठकर परमात्मा से प्यार करना सीख लो आपके सब कष्ट मिट जाएगा। उन्होंने कहा कि इस श्रृष्टि के पांच शिकारी जीवो को अपनें झांसे में लेते हैं लेकिन गुरुमुख के आगे ये शिकारी पानी भरते हैं। हुजूर ने कहा कि ना धन में सुख है ना बल में, ना ऊंचे कुल में सुख है ना माया में। सुख अगर है तो प्रभु भक्ति में हैं। घर गृहस्थी में रहते हुए भी आप अपने मन पर अंकुश रख कर फकीरी को पा सकते हो। अमीरी की चाह आपको धीरे धीरे सब चीजों से खो देगी लेकिन फकीरी की चाह आपको शाहो का शाह बना देगी। उन्होंने कहा कि जो जमीन पर बैठा है वो कभी नहीं गिर सकता। होली की भी यही सीख है कि जो हो ली यानी जो बीत गया उसे भूल जाओ और आगे की सुध ले लो। मन में यदि राम को बैठाना चाहते हो तो इसकी पूर्ण रूप से सफाई करो। अंतर की सफाई तभी होगी जब पहले बाहरी आवरण को साफ कर लोगे। बाहरी आवरण साफ होगा आचरण सुधारने से। गुरु महाराज जी ने कहा कि इस फाल्गुन को व्यर्थ मत जाने देना। इस फाल्गुन सतगुरु के रंग में सत्संग और सतनाम के रंग में डूब जाओ ताकि आपकी मंजिल आपको शीघ्र मिल जाए।

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