परमात्मा से जो मांगोगे वही मिलेगा अगर घरों में “प्यार, प्रेम, प्रतीत” रखोगे तो : कंवर साहेब जी
संत महात्मा जीव को चेताते हैं तेरा जन्म अनमोल है, परमात्मा की भक्ति के बिना व्यर्थ गंवा : कंवर साहेब जी
संतो की संगति और सत्संग जितना मिले उतना ही कम : हुजूर कँवर साहेब जी
सबको इज्जत मान सम्मान दो, जो दोगे वही हजारों गुना लौट कर वापिस मिलेगा : हुजूर कँवर साहेब जी

चरखी दादरी/जींद जयवीर फोगाट

06 मार्च,जैसे एक अच्छा जमींदार अच्छी और उन्नत फसल पाने के लिए खेत की खरपतवार साफ करता है वैसे ही एक अच्छा भगत अपने मन में भक्ति रूपी उन्नत फसल के लिए पहले मन की खरपतवार साफ करता है। मन की चौकीदारी करते रहो ताकि परमात्मा की रजा में रह सको। यह सत्संग वचन परमसंत कंवर साहेब महाराज ने जींद में चौ रणबीर सिंह विश्विद्यालय के सामने स्थित राधास्वामी आश्रम में साध संगत को सत्संग वचन फरमाते हुए कहे। हुजूर ने फरमाया कि संतो की संगति और सत्संग जितना मिले उतना ही कम है क्योंकि कालिकाल के संताप से संतो की शरणाई ही बचाती है। 

उन्होंने कहा कि महापुरुष तीन तरह की बानी से जीव को चेताने का काम करते हैं। पहली है चेतावनी जिसमें संत महात्मा जीव को चेताते हैं कि तेरा जन्म अनमोल है लेकिन तू इसे व्यर्थ में गंवा रहा है। दूसरी है रोचक जिसमे अध्यात्म की रोचकता को जीव के सामने परोसा जाता है जिससे वह भी उस मार्ग पर चलने को प्रेरित होता है। तीसरी तरह की वाणी भयानक हैं जिससे संत हेला मारते हैं कि या तो इस जीवन में अच्छा करो नहीं तो आपको कष्टकारी यातनाएं भोगनी पड़ेंगी। संतो की बानी चाहे कैसी ही हो उन पर शक मत करो। उन्होंने फरमाया कि संतो की तो हर बानी सहज और सरल रूप लिए हुए हैं लेकिन फिर भी जीव मन के बहकावे में आ कर इंद्रियों के वश चलता है। इच्छा और तृष्णा के महासागर से जीव निकल नही पाता अगर निकलने का मौका है तो इसी मनुष्य यौनी में है। अबकी बार अगर चुके तो क्या पता इस चौरासी लाख यौनियो में कोन सी यौनी मिलेगी और क्या हमारी दशा रहेगी।

हुजूर ने कहा कि इंसान की हालत कुएं की मेंढ़ के रस्से से लटके उस इंसान की भांति है जिसके नीचे कुएं में एक अजगर कुंडली मारे बैठा है और ऊपर से दो चूहे उस रस्सी को काटने में लगे हैं लेकिन वो ऊपर से टपक रहे शहद को चाटने में मस्त है। हम भी ऐसा ही कर रहे हैं जो जीवन रूपी कुएं में सांस रूपी रस्सी से लटके है। नीचे मौत रूपी अजगर बैठा है और ऊपर दिन और रात के रूप में दो चूहे रस्सी को काट रहे हैं लेकिन इंसान जीवन की तृष्णाओ रूपी शहद को चाटते हुए गाफिल हुआ बैठा है। 

गुरु जी ने कहा कि सारे के सारे ही इस जगत की धारा में बहे जा रहे हैं। एक यौनी से दूसरी में कर्म की गठरी का बोझ लिए आते है और जाते हैं लेकिन इससे छुटने का उपाय नहीं खोजते। उन्होंने कहा कि जो बीत गया सो बीत गया लेकिन अब तो तुम्हे इतनी सुंदर देह मिली है, बुद्धि मिली है और सबसे बढ़ कर गुरु मिला है तो अब तो इस आवान जान से छुटकारा पा लो। अपने जीवन के महत्व को समझो। गुरु जी ने फरमाया कि पराई को छोड़ कर अपने आप को सुधारो।किसी के अच्छे गुण देख कर उन्हे अपने अंदर धारण करने का प्रयास करो लेकिन यदि किसी के अंदर बुरे गुण देखते हो तो ये भी संकल्प धारो कि ऐसा मैं अपने अदंर कभी नहीं आने दूंगा। उन्होंने कहा कि a man can do what a man can यानी एक इंसान वो सब कुछ कर सकता है जो किसी और ने किया है।

 उन्होंने कहा कि यदि मीरा बाई, कर्मा बाई, धना भगत, नरसी भगत परमात्मा को हाजिर नाजिर कर सकते हैं तो आप भी कर सकते हैं।

गुरु जी ने कहा कि गुरु नाम ज्ञान का है। जो आपके आंखों से भर्मो का चश्मा हटा दे, जो आपको सत असत का बोध करवा दे वो गुरु है। अपने जीवन को प्राकृतिक तरीके से जीते हुए परमात्मा की भक्ति कमाओ। ना गृहस्थ को त्यागना ना वन कंदराओं में जाना बस अपने मन को वश में करना सीख लो। गुरु जी ने कहा माया को तो तज सकते हो लेकिन मान को कैसे ताजोगे। मान आपका अभिमान है और इसमें बड़ी ताकत है। इसका एक रूप नहीं है बल्कि अनेकों हैं। अभिमान को तो रावण, दुर्योधन और राजा सगर जैसे महाबलियो को भी नहीं छोड़ा। उन्होंने कहा कि परमात्मा के बाद इंसान का दूसरा दर्जा है लेकिन इसके बावजूद भी जो इंसान कर सकता है वो परमात्मा भी नहीं कर सकता। 

हुजूर साहेब ने कहा कि इंसान का चोला कितना पवित्र है इसमें सब कुछ मौजूद है फिर भी हम अगर लापरवाही करते हैं तो लानत है हम पर। उन्होंने कहा कि धर्म की परिभाषा भी यही है कि आप अपने सारे फर्ज कर्तव्य और दायित्व सही तरीके से निभा लो। बेटे हो तो बेटे का, पिता हो तो पिता का, भाई हो तो भाई का, मित्र हो तो मित्र का फर्ज निभाओ यही धर्म है। किसी को धन वस्तु या सामग्री देने की आवश्यकता नहीं है देना है तो अच्छी शिक्षा और अच्छा आचरण दो। महाराज जी ने कहा कि अच्छे संस्कार अगर आपने कमा लिए तो आपको किसी और कमाई की जरूरत नहीं है। गुरु जी ने कहा कि संतो की बानी का असल मर्म हर कोई नहीं समझ सकता।

उन्होंने कहा कि एक बानी में आता है कि पा प करे से दुख मिटे और पा प करे सुख होए।पा प करे से हरि मिले पा प करो हर कोए।

बानी पढ़ कर हर कोई सोचेगा कि ये कैसी बानी है लेकिन विवेकी इंसान इसके मर्म को समझ सकता है। जिसने संतो की शरनाई की है वो इसको पाप करे से नहीं पढ़ेगा बल्कि पाँ पकरे से समझेगा यानी पाँ पकरे से दुख मिटे पाँ पकरे से सुख होए,पाँ पकरे से हरि मिले पाँ पकरो हर कोए। 

यानी संत महापुरुष के पांव पकड़ने से दुख जाता है और सुख आता है। संतो के पांव पकड़ने से ही हरी मिलता है इसलिए हर कोई संतो के पांव पकड़ो।

उन्होंने फरमाया कि भक्ति तन की करो दूसरी नाम की और तीसरी गुरु की भक्ति करो। यानी सबसे पहले अपने तन को स्वस्थ रखो ताकि भक्ति में आपको किसी प्रकार का कोई कष्ट ना हो। उन्होंने कहा कि जिसको तन का कष्ट है वो भक्ति नहीं कर सकता। तन स्वस्थ रहेगा तो ही परमात्मा का नाम जप पाओगे। नाम का जाप आपको गुरु से जोड़ेगा क्योंकि नाम का भेद केवल सतगुरु ही दे सकता है। गुरु जी ने कहा कि पूजा करनी है तो मां-बाप की करो। किसी को बुरा वचन मत बोलो क्योंकि हर घांव भर जाएगा लेकिन जुबान का घाव नहीं भरेगा। घरों में प्यार प्रेम प्रतीत रखो। सबको इज्जत मान सम्मान दो। जो आप दूसरो को देते हो वही लौट कर आपके पास आएगा। अहिंसा को परम धर्म मानो। अपने चरित्र को अच्छा बनाओ।

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