आयाराम गयाराम राजनीति के शिकार बने थे पंडित जीवाचन करने और शतरंज खेलने में विशेष रुचि थी ‘पण्डितजी’ की अशोक कुमार कौशिक हरि की भूमि हरियाणा को जहाँ सन्त महात्माओं और ऋषि मुनियों की भूमि के रूप में जाना जाता है, वहीं इसे वीर योद्धाओं की भूमि होने का भी गौरव प्राप्त है। यहां ऐसे अनेक स्वतन्त्रता सेनानी भी हुए है जिन्होंने महात्मा गांधी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर स्वतन्त्रता के पथ का निर्माण किया। ऐसे ही चिरस्मरणीय स्वतन्त्रता सेनानी थे पण्डित भगवत दयाल शर्मा। वे भारत माँ के महान सपूत,सच्चे देशभक्त और निर्भीक स्वतन्त्रता सेनानी थे। उनकी राष्ट्र सेवा,उनके त्याग और बलिदान के अप्रतिम गुणों ने ही उन्हें हरियाणा का प्रथम मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य दिलाया था। उन्होंने उच्च आदर्शों तथा प्रगतिशील हरियाणा की नींव रखी। जिसमें सभी जाति तथा समुदायों को बराबरी के अधिकार थे। भगवत दयाल शर्मा हरियाणा राज्य के पहले मुख्यमंत्री थे। उन्होने ‘भारतीय स्वतंत्रता संग्राम’ में भी योगदान दिया था। अपने कार्यकर्ताओं के बीच भगवत दयाल शर्मा ‘पण्डितजी’ के नाम से प्रसिद्ध थे। जन्महरियाणा के प्रथम मुख्यमंत्री पण्डित भगवत दयाल शर्मा का जन्म 26 जनवरी,1918 को रोहतक जिले(वर्तमान झज्जर)के ऐतिहासिक कस्बा बेरी में पण्डित हीरालाल शर्मा के घर हुआ। छह माह की छोटी सी उम्र में ही इनकी माता जी का देहांत हो गया। उन्होंने दसवीं तक की पढ़ाई गांव के स्कूल से ही प्राप्त की तथा बाद में रोहतक के बाबरा मोहल्ला निवासी पण्डित मुरारी लाल के यहां गोद आ गए। शिक्षाउन्होंने पिलानी से स्नातक की । भगवत दयाल शर्मा ने अपनी एम.ए. की डिग्री ‘बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय’, उत्तर प्रदेश से ग्रहण की थी। इसके बाद में डी.लिट की उपाधि ‘महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय’, रोहतक से प्राप्त की। वे विद्यार्थी काल से ही राजनीति में रुचि लेने लगे थे।वर्ष 1938 में महात्मा गांघी से सम्पर्क होने के बाद वे उनकी सेना के मजबूत स्तम्भ बन गए। साल 1941 में व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान उन्हें एक वर्ष का कठोर कारावास की सजा दी गई। फिरंगियों की नजर हमेशा पण्डित जी पर लगी रहती इसीलिए उन्होंने महीनों भूमिगत रहकर स्वतन्त्रता आंदोलन में काम किया। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने सरदार पटेल की करो या मरो नीति का अनुसरण करते हुए गिरफ्तारी दी। साल 1945 में जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने बिड़ला कालेज पिलानी में प्राध्यापक की नोकरी की। वहां पर भी उन्होंने मजदूर संगठन तथा विद्यार्थी संघ जैसे संगठन कायम किए जिन्होंने स्वतन्त्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। करियरपूर्व में भगवत दयाल शर्मा कांग्रेस और संगठन कांग्रेस से संबद्ध रहे। 1941-46 में उन्होने ‘भारतीय स्वतंत्रता संग्राम’ में भाग लिया।1941 में एक वर्ष की जेल यात्रा की और फिर 1942 में साढ़े तीन वर्ष की जेल की सज़ा काटी।1957 और 1958 में भगवत दयाल शर्मा ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन’ (जेनेवा), स्टि्जरलैंड में भारतीय श्रमिकों का दो बार प्रतिनिधित्व करने वाले शिष्टमण्डल के सदस्य रहे। भगवतदयाल शर्मा 1959-61 में क्षेत्रीय ‘भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस’, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर के सेक्रेटरी तथा प्रसीडेन्ट रहे।1959-65 में वे ‘भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस’ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य रहे।1959 में ‘भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस’ की वकिग कमेटी के सदस्य और 1960-61 में उसके संगठन सचिव रहे।उन्होंने ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संघ’ में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया।उसके बाद वे पंजाब के इंटेक के प्रधान चुने गए।ऑल इंडिया इंटेक के महामंत्री के तौर पर उन्होंने सारे देश में मजदूरों की भलाई का काम किया। साल 1962 में आम चुनाव में वे कांग्रेस टिकट पर झज्जर से पूर्व मंत्री प्रोफेसर शेर सिंह के मुकाबले पंजाब विधानसभा के सदस्य चुने गए और कैरो मंत्री मण्डल में राज्यमंत्री बने। साल 1963 तथा 1964 से 1966 तक पंजाब कांग्रेस के प्रधान रहे। पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनने वाले वे एक मात्र हरयाणवी थे। उन्होंने हरियाणा निर्माण में भी महती भूमिका निभाई तथा एक नवम्बर,1966 को हरियाणा प्रदेश अलग बन जाने पर पण्डित भगवत दयाल शर्मा को हरियाणा कांग्रेस दल का नेता चुना गया और हरियाणा का प्रथम मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। भगवत दयाल शर्मा 1968 में हरियाणा में संयुक्त मोर्चे के नेता निर्वाचित हुए थे।भगवत दयाल शर्मा 1970-71 में ‘अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी’ की वकिंग कमेटी के सदस्य भी रहे।1962-66 में भगवत दयाल शर्मा ‘पंजाब विधान सभा’ के सदस्य तथा ‘श्रम और सहकारिता’ के राज्यमंत्री रहे। उन्होंने 1966 का चुनाव यमुनानगर से जीता। मात्र छह माह मुख्यमंत्री रहने के बाद पण्डित जी आयाराम गयाराम की राजनीति का शिकार हो गए। उनका उठाया विधानसभा अध्यक्ष प्रत्याशी एक मत से हार गया जिसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते पण्डित जी ने नैतिकता के आधार पर अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। वे 1968 में राज्यसभा के सदस्य बने। वर्ष 1969 में राष्ट्रपति चुनाव को लेकर कांग्रेस दो भागों में विभक्त हो गई। मोरारजी देसाई के नजदीक होने के कारण वे संगठन कांग्रेस में रहे। वर्ष 1975 में इमरजेंसी के समय उन्हें नजरबन्द किया गया। साल 1977 में वे करनाल लोकसभा सीट से सांसद चुने गए। थोड़े समय के बाद उन्हें उड़ीसा का राज्यपाल मनोनीत किया गया। वे उड़ीसा राज्य की कई सामाजिक और सांस्कृतिक संस्थाओं के सरंक्षक रहे। जगन्नाथ मंदिर की प्रशासनिक कमेटी से सक्रिय रूप में भी भगवत दयाल शर्मा संबद्ध रहे। साल 1980 में जनता पार्टी की सरकार गिर जाने के बाद इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी। जनता पार्टी द्वारा मनोनीत राज्यपाल बदल दिए गए,लेकिन उनकी स्वच्छ छवि के कारण उन्हें पूरा कार्यकाल रखा गया। इंदिरा जी उनका पूरा सम्मान करती थी तभी तो उन्हें उड़ीसा के बाद मध्यप्रदेश का राज्यपाल भी मनोनीत किया गया। 1984 में सेवानिवृति होने के बाद उन्होंने राजनीति से सन्यास ले लिया। उनके तीन बेटे तथा तीन बेटियाँ है। वाचन करने और शतरंज खेलने में भगवत दयाल जी की विशेष रुचि थी। इसके अलावा आदिवासी हरिजनों तथा कमज़ोर वर्गों के कल्याणकारी कार्यों को करने में भी उनके रुचि थी। 22 फरवरी,1993 को महान स्वतन्त्रता सेनानी,प्रथम मुख्यमंत्री सदा सदा के लिए इस दुनिया को छोड़कर चले गए। आज का दौर अपने बाप दादाओं को प्रसिद्ध करने का दौर है तभी तो सभी राजनेताओं ने उन्हें ही महिमामण्डित किया। पण्डित जी आज भी गन्दी राजनीति का शिकार हो गए। यही कारण है कि इस महान स्वतन्त्रता सेनानी तथा प्रथम मुख्यमंत्री की समाघि स्थल की सुध लेने वाला भी कोई नहीं है। समय की विडंबना ही है वरना इस महान स्वतन्त्रता सेनानी का एक राज्यस्तरीय स्मारक होना चाहिये तथा नारनौल, बेरी,झज्जर,रोहतक,पानीपत,करनाल व यमुनानगर में इनकी प्रतिमाएं लगनी चाहिए तथा बेरी में एक पार्क तथा झज्जर बेरी महम सड़क का नाम पण्डित भगवत दयाल शर्मा के नाम पर होना चाहिये। हरियाणा के सभी जिलों में पण्डित जी की आदमकद प्रतिमा स्थापित होनी चाहिये। यही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी जिससे आने वाली पीढ़िया शिक्षा ले सके। Post navigation खट्टर सरकार राज के नशे में चूर, आंगनवाड़ी वार्ता रही बेनतीजा : आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सरकार द्वारा शराब पीने, खरीदने व बेचने की उम्र 25 साल से घटाकर 21 साल करना उचित नहीं है- बजरंग गर्ग