आन्दोलन रहेगा जारी संयुक्त तालमेल कमेटी न झुकी है, ना झुकेगी जिलास्तर पर होगा बीजेपी के एमएलए व एमपी निवासों पर 24 घंटे का पड़ाव करनाल पड़ाव होगा पहले से भी जोरदार 25 फरवरी को होगी तालमेल कमेटी की अगली मीटिंग बजट सैशन पर विधानसभा के घेराव का प्रस्ताव विचाराधीन आज 21 फरवरी, 2022 को पिछले 76 दिनों से मजबूरन हड़ताल-आन्दोलन कर रही आंगनवाड़ी प्रतिनिधियों को चण्डीगढ़ में वार्ता के लिए बुलाया था। वहां पहुंचने पर कहा गया कि पहले हड़ताल उठा लो, आन्दोलन वापस ले लो। आपकी दो-एक बात मान लेंगे। नेत्रियों का कहना है कि क्या यही कहने के लिए आज चण्डीगढ़ बुलाया था। 14 फरवरी से करनाल में प्रदेशस्तरीय महारैली व महापड़ाव का मोर्चा जमाने पर आंगनवाड़ी यूनियनों को पहले तो 18 फरवरी को बातचीत का न्यौता मिला था। फिर इसे बदल कर आज 21 फरवरी की तारीख दी गई थी। नारनौल, फरीदाबाद आदि स्थानों से चलकर आंगनवाड़ी नेत्रियां चण्डीगढ़ पहुंची थी। पहले तो अधिकारियों ने राजाओं की तरह नखरे दिखाये। कहा कि यूनियन के पुरूष नेताओं को बातचीत में नहीं बिठाया जायेगा। आंगनवाड़ी नेत्रियों ने आपत्ति दर्ज कराते हुये जब वार्ता शुरू की तो एक लाइन का फरमान सुना दिया कि पहले हड़ताल वापस लो, तभी आपकी बात सुनी जायेगी। अन्दाजा लगाया जा सकता है कि अधिकारी पत्थर-हृदय भाजपा सरकार के सर्वेसर्वा मुख्यमंत्री खट्टर साहब के अलार्म की तरह कैसे टनाटन बज रहे थे। हां अलार्म की तरह। एक निर्जीव मशीनी यन्त्र – बिना आंख, कान का। पत्थर की तरह स्पन्दनहीन। लगता है कि आंगनबाड़ी आंदोलन के साथ भी शायद वैसा ही कुछ हो रहा है जैसा मोदी सरकार ने किसानों के साथ किया था। 11 बार की वार्ता के बाद भी किसानों की जायज बात नहीं मानी थी। खट्टर सरकार भी उसकी नकल कर रही है। किसान आंदोलन से वह कुछ भी नहीं सीखना चाहती। बात है कि अंध-भक्तों की आदत अंधानुकरण करने की होती है। किसान संघर्ष पर जमे रहे तो जिस मोदी सरकार ने किसानों से 11 बार की वार्ता करने पर भी उनकी जायज बात को नहीं सुना था, उसी मोदी सरकार को एक दिन सवेरे सवेरे तीन काले कृषि कानून वापस लेने पड़े थे। लगता है कि खट्टर सरकार भी मोदी सरकार के पदचिन्हों पर चल कर उसके टुच्चेपन का अनुकरण कर रही है। इस तरह, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं सहायिकाओं के साथ खट्टर सरकार क्रूरता कर रही है। कह दिया कि पहले हड़ताल वापस लो, फिर आपकी बात सुनेंगे। इससे बड़ी तानाशाही, निरंकुशता व मनमानी गरीब, वंचित, शोषित-उत्पीड़ित आंगनबाड़ी कर्मियों के साथ और कोई नहीं हो सकती। हरियाणा प्रदेश के तमाम न्याय प्रिय लोगों को खट्टर सरकार की आंगनबाड़ी कर्मियों पर ज्यादतियों का जमकर विरोध करना चाहिए। आंगनबाड़ी आंदोलन का मुखर होकर साथ देना चाहिए। आखिर ये सामान्य घरों की बहू-बेटियां, माताएं हैं। अपने बच्चों को छोड़कर ये पूरे समाज के बच्चों का पालन करती हैं, उनको कुपोषण से बचाने के लिए अपना जीवन लगाती हैं। बच्चा जन्मने से पहले माताओं की देखभाल में मदद करती हैं। दूध पिलाने वाली शिशुवती माताओं को भी पौषाहार देती हैं। पोलियो आदि के टीके लगवाती हैं। सरकार हजार तरह से इनसे अपने काम कराती है। अफसरों और मंत्रियों की सभाओं की शोभा बढ़ाने के लिए इन्हें हांका जाता है। जब उनकी सभाओं की शोभा बढ़ानी हो तो आंगनबाड़ी कर्मियों की सराहना की जाती है। इन्हें आईसीडीएस स्कीम की रीढ़ की हड्डी बता कर बडीरा जाता है। लेकिन मेहनताना देने का वक्त आता है तो उनको सिर्फ अंगुठा/ठोसा ही नहीं, बल्कि जूता दिखाया जाता है। पिछले 76 दिनों से भंयकर सर्दी, ठण्ड हर तरह की मुसीबत उठाकर आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सहायिकाएं अपने हक की आवाज उठा रही हैं। हड़ताल पर हैं। यह आसान कार्य नहीं है। जब सारे रास्ते अजमा लिये, अन्य कोई उपाय नहीं बचा, तब हड़ताल पर गई हैं। सरकार की हृदयहीनता, आंगनवाड़ी विभाग के अफसरों की तमाम धमकियों, नौकरी से बाहर निकालने के काले फरमानों का सामना उन्हें हर रोज बड़ी संख्या में करना पड़ रहा है। तब भी सरकार सत्ता के नशे में चूर होकर इनके हक की आवाज को दबाना चाहती है। इस संकट की घड़ी में आंगनबाड़ी वर्करों का साथ देना समाज का दायित्व बनता है। इनकी तकलीफें समाज की तकलीफें हैं। इसलिये, पूरे समाज को खुल कर इन पर हो रहे अन्याय का प्रतिवाद करना चाहिए। Post navigation ‘स्वावलंबी युवा’ प्रोजेक्ट के साथ, आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना पुण्यतिथि पर विशेष…..हरियाणा के पहले मुख्यमंत्री पंडित भगवत दयाल शर्मा