चरखी दादरी जयवीर फोगाट

13 फरवरी,अजय योद्धा महाराजा सूरजमल की 316 जयंती पर गांव महराणा में उनके चित्र समक्ष पुष्प अर्पित कर उन्हें याद किया गया। वक्ताओं ने बताया कि महाराजा सूरजमल जाट की वीरता की गाथाएँ न सिर्फ राजस्थान के भरतपुर, बल्कि उस समय मुगलों के गढ़ रहे दिल्ली और आगरा तक फैली हुई हैं। 13 फरवरी 1707 के जन्मे महाराजा सूरजमल जाट ने दिल्ली और आगरा से लेकर अलीगढ़, भरतपुर, बुलंदशहर, धौलपुर फरीदाबाद, हाथरस, मथुरा, मेवात, मुजफ्फरनगर मेरठ और पलवल जैसे जिलों को इस्लामी आक्रांताओं से मुक्त कराया। 18वीं शताब्दी के भारत निर्माताओं में शामिल महाराजा सूरजमल जाट का जन्म ऐसे समय में हुआ था, जब अफगान अहमदशाह अब्दाली और ईरान से आए नादिर शाह जैसे आक्रांताओं ने हजारों हिन्दुओं का कत्लेआम मचाया, गायों का नरसंहार किया और मंदिरों-तीर्थस्थलों को ध्वस्त किया। राजपूत और मराठा शक्तिशाली जरूर थे, लेकिन एकता न होने के कारण देश बेचौन था।

महाराजा सूरजमल या सूजान सिंह राजस्थान के भरतपुर के हिन्दू जाट शासक थे। उनका शासन जिन क्षेत्रों में था वे वर्तमान समय में भारत की राजधानी दिल्ली, उत्तर प्रदेश के आगरा, अलीगढ़, बुलन्दशहर, गाजियाबाद, फिरोजाबाद, इटावा, हाथरस, एटा, मैनपुरी, मथुरा, मेरठ जिलेय राजस्थान के भरतपुर, धौलपुर, अलवर, जिले तथा हरियाणा का गुरुग्राम, रोहतक, झज्जर, फरीदाबाद, रेवाड़ी, मेवात जिलों के अन्तर्गत हैं। राजा सूरज मल में वीरता, धीरता, गम्भीरता, उदारता, सतर्कता, दूरदर्शिता, सूझबूझ, चातुर्य और राजमर्मज्ञता का सुखद संगम सुशोभित था। मेल-मिलाप और सह-अस्तित्व तथा समावेशी सोच को आत्मसात करने वाली भारतीयता के वे सच्चे प्रतीक थे। राजा सूरज मल के समकालीन एक इतिहासकार ने उन्हें ‘जाटों का प्लेटों‘ कहा है। इसी तरह एक आधुनिक इतिहासकार ने उनकी स्प्ष्ट दृष्टि और बुद्धिमत्ता को देखने हुए उनकी तुलना ओडिसस से की है।

इस अवसर पर पूर्व सरपंच जले पातुवास, लक्ष्मण सनवाल महराणा, आश्रम खेड़ी सनवाल मुकेश ,संदीप, सुनील फौजी, सतबीर प्रधान, बल्लू डॉक्टर, राजपाल, प्रदीप महराना, अनिल कोच आदि थे।

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