आस्तिकता उसके दोनों नेत्र है, विश्वास ही उसकी श्रेष्ठ बुद्धि एवम् मन.
शिवसम्पत ब्रह्मचर्य लोक, वहीं पाँच आवरणों से युक्त ज्ञानमय कैलास.
काल चक्रेश्वर की सीमा जिसे कि विराट महेश्वरलोक बताया गया

फतह सिंह उजाला
गुरूग्राम। 
जो सत्य, अहिंसा आदि धर्मों से युक्त हो, भगवान शिव के पूजन में तत्पर होते है, वे कालचक्र को पार कर जाते हैं। काल चक्रेश्वर की सीमा तक जिसे कि विराट महेश्वरलोक बताया गया है, उससे ऊपर वृषभ के आकार में धर्म की स्थिति है । वही ब्रह्मचर्य का मूर्तिमान रूप है। उसके सत्य, सोच, अहिंसा और दया-ये चार पाद हैं । वह साक्षात शिव लोक के द्वार है। छमा उसके सींग तथा शम कान हैं , वह वेदध्वनि रूपी शब्द से विभूषित है । आस्तिकता उसके दोनों नेत्र है, विश्वास ही उसकी श्रेष्ठ बुद्धि एवम् मन है । उस क्रियारूप वृषभाकार धर्म पर कालातीत शिव आरूढ़ होते हैं । ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर की जो अपनी-अपनी आयु है, जहाँ धर्मरूपी वृषभ की स्थिति है, उससे ऊपर न दिन है न रात्रि। सनातन धर्म, सद्क्रम, यज्ञ-अनुष्ठान, सनसतन संस्कृति, अध्यात्म के जनजागरण के लिए भारत भ्रमण पर विभिन्न स्थानों पर विचरण सहित युवा पीढ़ी को जागरूक कर रहे काशी सुमेरु पीठाधीश्वर अनन्त श्री विभूषित पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती महाराज ने यह अध्यात्म ज्ञान शब्दों की वर्षा विश्व कल्याण एवम् भारत तथा सनातन धर्म के द्रोहियों के समूल उन्मूलन की कामना से सवा लाख महामृत्युंज का जप, हवन तत्पश्चात धर्मालंबियों के बीच करते कही।

शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द ने कहा कि जहाँ जन्म-मरण आदि भी नहीं है । वहाँ फिर से कारण स्वरूप ब्रह्मा के कारण सत्यलोक पर्यन्त चौदह लोक स्थित है, जो पाँच भौतिक गन्ध आदि से परे है , उनकी सनातन स्थिति है । सूक्ष्म गन्ध ही उनका स्वरूप है । उनसे ऊपर फिर कारणरूप विष्णु के चौदह लोक स्थित हैं । उनसे भी ऊपर फिर कारणरूपी रूद्र के अट्ठाइस लोकों की स्थिति मानी गई है । फिर उनसे भी ऊपर कारणेश शिव के छप्पन लोक विद्यमान हैं । तद्नन्तर शिवसम्पत ब्रह्मचर्य लोक है, और वहीं पाँच आवरणों से युक्त ज्ञानमय कैलास है, जहाँ पाँच मण्डलों, पाँच ब्रह्मकलाओं और आदिशक्ति से संयुक्त आदिलिंग प्रतिष्ठित है । उसे परमात्मा शिव का शिवालय कहा जाता है । वहीं पराशक्ति से युक्त परमेश्वर शिव निवास करते हैं । भगवान शिव सृष्टि, पालन, संहार, तिरोभाव और अनुग्रह–इन पाँचों कृत्यों में प्रवीण हैं । उनका श्रीविग्रह सच्चिदानन्द स्वरूप है । भगवान शिव सदा ध्यानरूपी धर्म में ही स्थित रहते हैं, और सदा सभी पर अनुग्रह किया करते हैं । कर्म एवं ध्यान आदि का अनुष्ठान करने से क्रमशः साधन पथ में आगे बढ़ने पर उनका दर्शन साध्य होता है । शिव और उनके भक्त में कोई भेद नहीं है । वह साक्षात शिव स्वरूप ही है । शंकराचार्य नरेंद्रानंद ने कहा कि भगवान शिव की महिमा अनन्त है, ऐसे भगवान शिव की आराधना करने से मनुष्य अपने समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति कर सकता है । महामृत्युंज यन्त्र के जप से मृत्युतुल्य कष्ट का भी निवारण मनुष्य कर सकता है । कार्यक्रम में अधिशाषी अभियन्ता सुभाष शर्मा, श्रीमती मीनाक्षी शर्मा, इंस्पेक्टर मीरा शर्मा, स्वामी बृजभूषणानन्द सहित सैकड़ों साधु-सन्यासी एवम् वैदिक विद्वान उपस्थित थे ।

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