अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव मात्र एक इवेंट ?

भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। 5159 वर्ष पूर्व भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को जब वह दुविधा की स्थिति में पड़ा था, उस समय उसे राह दिखाने के लिए जो कहा गया उसे ही मेरे विचार से गीता कहा जाता है। प्रश्न यह है कि 5159 वर्ष पूर्व की परिस्थितियां और आज की परिस्थितियों में कितना साम्य है और क्या आज गीता का संदेश लोग अपने जीवन में अपना रहे हैं? 

गीता में कर्म का संदेश दिया गया है। मुख्य बात यदि एक पंक्ति में कही जाए तो उन्होंने कहा कि कर्म किए जाओ-फल की इच्छा मत करो वह मेरे ऊपर छोड़ दो लेकिन कर्म सात्विक होना चाहिए।जब युद्ध भूमि में अर्जुन ने देखा कि उसके सामने जो उससे युद्ध करने के लिए खड़े हैं, वे सभी उसके भाई-बंधु हैं। ऐसे में उसके मन में विचार आया कि मैं उन पर कैसे तीर चलाउं और वह कर्तव्यविमूढ़ होकर शिथिल हो गया। ऐसी अवस्था में ही भगवान श्रीकृष्ण ने संदेश दिया कि अपना कर्म करो, यह मत देखो कि सामने कौन है और उसी को समझ अर्जुन ने गाण्डीव उठा लिया तथा सामने खड़े सैन्य दल पर टूट पड़ा। 

वर्तमान परिस्थितियों को देखें तो यहां सब अपने भाई-बंधुओं के लिए धर्म को भूल जाते हैं। लंबी बात न कर सीधी बात करें कि यह आयोजन हरियाणा सरकार द्वारा किया जा रहा है और इस आयोजन में प्रतिभागिता के नाम पर केवल और केवल भाजपाई नजर आते हैं। क्या गीता को केवल भाजपाई ही मानते हैं।

सोते को जगाया जा सकता है लेकिन जागते को नहीं :

मुझे मेरे बुजुर्गों द्वारा कही गई सूक्ति याद आई कि सोते को तो जगाया जा सकता है लेकिन जगे हुए को कोई कैसे जगाएगा, क्योंकि वर्तमान में सरकार जिस शिद्दत गीता महोत्सव मनाने में लगी है, जो सरकार का कर्म है कि जनता के हित का ख्याल रखें, उसमें कभी भी इस शिद्दत से सरकार को लगे हुए नहीं देखा। बात फिर वही है कि क्या यह गीता महोत्सव मनाकर हमारे सत्तासीन नेता और जो सरकार के अधिकारी इसमें शामिल हैं, क्या वे ही गीता का अर्थ आत्मसात कर पाएंगे? क्या वे अपना कर्म ईमानदारी से करने लग जाएंगे?

वर्तमान में सरकार भाजपा-जजपा गठबंधन की है और समाज व प्रशासन में उनके कार्यकर्ताओं का सम्मान अधिक है। और प्रशासन द्वारा उनके कहे हुए काम भी जल्दी होते हैं। क्या यह गीता के संदेश को सार्थक करता है?

मन में ख्याल आता है कि एक वर्ष से भी अधिक किसान आंदोलन चलता रहा। क्या कभी सरकार की ओर से उन किसानों से मिलने या समझाने का प्रयास इस शिद्दत से किया गया?वर्तमान में बेरोजगारी का मुद्दा पूरे हरियाणा में छाया हुआ है और सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि सरकार नौकरियां बेच रही है। क्या सरकार की ओर से इतनी शिद्दत से युवाओं को समझाने का प्रयास किया गया? या जो सरकार का कर्म कि भ्रष्टाचारियों को तुरंत सजा दी जाए, क्या उस रास्ते पर सरकार चल रही है?

इसी प्रकार पिछले दिनों कोरोना से बहुत पीडि़त रहे, अर्थव्यवस्था भी चरमराई। स्वास्थकर्मियों को कोरोना योद्धा की उपाधि से भी नवाजा गया। वही स्वास्थकर्मी, डॉक्टर आज हड़ताल कर रहे हैं। इसी प्रकार आंगनवाड़ी वर्कर प्रदेश में विभिन्न स्थानों पर धरनों पर बैठे हैं। क्या सरकार का कर्म उनकी समस्याओं को हल करना नहीं है? 

इसी प्रकार भ्रष्टाचार की आवाजें जनता की ओर से खूब मुखर हो रही हैं। अधिकारियों की मनमानी की बात विधायक भी करते हैं। क्या सरकार का कर्म उनकी तह में जाकर सुधारना नहीं?जैसा कि अर्जुन भाई-बंधुओं को सामने देख हथियार डाल खड़ा हो गया था और फिर भगवान श्रीकृष्ण के संदेश से वह ईमानदारी से अपने कर्तव्य की पूर्ति के लिए युद्ध के लिए तैयार हो गया था। क्या ऐसा ही अब सरकार अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में सम्मिलित होने वाले व्यक्ति कर पाएंगे? आज भगवान तो उन्हें समझाने आएंगे नहीं लेकिन इस समय उन्होंने भगवान का संदेश तो अनेक बार पढ़ा, सुना और कहा। अत: क्या वह उसे आत्मसात कर पाएंगे?

ऐसी अनेक बातें हैं जो खड़ी होती हैं। सत्ता पक्ष के साथ ही नहीं विपक्ष और आम जनता के साथ भी। जहां तक मैं समझता हूं, अधिकांश लोग अपने कर्तव्य को जानते हैं लेकिन वर्तमान जीवनशैली को देखते हुए अपनी दिनचर्या को अपनी सहूलियत और लाभ के अनुसार ढाल लेते हैं। जैसे सत्ता पर आसीन लोगों को पता है कि हमारे कर्तव्य क्या हैं लेकिन वे अपनी सत्ता को लंबे समय तक कायम रखने के लिए अपने कार्यों का स्वरूप अपने हित के लिए बना लेते हैं।

इसी प्रकार व्यापारी जानता है कि वह यहां बेइमानी कर रहा है, जनता को धोखा दे रहा है लेकिन उसके दिमाग में उसका लक्ष्य या धर्म अधिक लाभ अर्जित करना है। तात्पर्य यह कि हर व्यक्ति जानता है कि मैं क्या उचित कर रहा हूं और क्या अनुचित, लेकिन फिर भी अपने लाभ के लिए वह उचित अनुचित का भेद भूल जाता है। इसलिए सोते हुए को तो जगाया जा सकता है लेकिन जागते हुए को कैसे जगाएं।

अर्थात अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव कहीं इवेंट बनकर ही न रह जाए।

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