सात्विक ,राजस और तामस सुविचार भगवान के ही हैं स्वरूप. बीज वास्तव में रस-द्रव्य का ही बना हुआ बीज से अंकुरित वृक्ष/ बीज से अंकुरित वृक्ष की लकड़ी में बीज जैसे गुण नहीं होते फतह सिंह उजाला गुरुग्राम । सनातन धर्म सहित वेद और पुराणों में वर्णित प्रकांड ऋषि मुनियों के द्वारा अध्यात्म के गूढ़ रहस्य के विषय को लेकर भारत भ्रमण के लिए निकले काशी सुमेर मठ के पीठाधीश्वर शंकराचार्य नरेंद्रानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि यह कटु सत्य है की अग्नि से धुआं निकलता है ।लेकिन यह भी कटु सत्य है की धुएं में अग्नि नहीं होती है । जबकि धुआं अग्नि का ही एक अन्य स्वरूप माना जा सकता है । यह अध्यात्म की गूढ़ और अंतर चेतना को जागृत करने वाली बात उन्होंने डोंबिवली में धर्मावलंबियों , सनातन प्रेमियों श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कही । यहां पहुंचने पर शंकराचार्य नरेंद्रानंद सरस्वती महाराज ने सबसे पहले ब्रह्मा, विष्णु और महेश की एकल स्वरूप धवल प्रतिमा के समक्ष मंत्रोच्चारण करते हुए पुष्पमाला अर्पित की। सनातन धर्म की अलख जगाने का संकल्प लेकर भारत भ्रमण पर निकले शंकराचार्य नरेंद्रानंद महाराज ने धर्म ग्रंथों, वेदों, पुराणों के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए उपस्थित श्रद्धालुओं का आह्वान किया कि यही धर्म ग्रंथ, वेद-पुराण और इनमें लिखा गया अध्यात्मिक ज्ञानवर्धक बातें ही मानव का कल्याण करने में समर्थ हैं । लेकिन इनके गूढ़ रहस्य और मतलब सहित भावार्थ को भी समझना भी बहुत जरूरी है । उन्होंने यहां आयोजित एक धर्म सभा ने कहा कि जितने भी सात्विक ,राजस और तामस विचार होते हैं । वह सब भगवान के ही स्वरूप से उत्पन्न होते हैं । इस बात को मनुष्य को सदैव अपने ध्यान और चित में रखना चाहिए। उन्होंने कहा लेकिन जिस प्रकार स्वपन अवस्था के रहते जागृत अवस्था नहीं होती, ठीक उसी प्रकार इन विकारों में भी भगवान नहीं होते हैं। उन्होंने कहा बीज अथवा कण वास्तव में रस-द्रव्य का ही बना हुआ होता है और यही रस अथवा द्रव्य वास्तव में उस बीज में भी भरा हुआ होता है । लेकिन बीज के अंकुरित होने के बाद जो वृक्ष और डालियों में जो कठिन और जटिल लकड़ी होती है , वास्तव में उसका भी भी बीज से ही स्वरूप प्राप्त होता है। उन्होंने सवाल करते हुए कहा कि क्या यह संभव है लकड़ी में बीज का गुण रहता है ? उन्होंने कहा इस प्रकार चाहे ऊपर से देखने में भले ही यह जान पड़े कि भगवान में ही विकार उत्पन्न हुए हैं, तो भी भगवान उन विकारों में नहीं रहता । आकाश में मेघ तो आते हैं, परंतु मेघों में आकाश नहीं रहता। मेघों में जल तो होता है , लेकिन उस जल में मेघ नहीं रह सकते हैं । शंकराचार्य नरेंद्रानंद सरस्वती महाराज ने धर्म सभा में मौजूद श्रद्धालुओं के बीच धर्म चर्चा करते हुए कहा कि मेघों में रहने वाले जल में जब छोभ होता है , तब उसमें से बिजली की चमक दिखाई पड़ती है । लेकिन इसका अर्थ यह नहीं समझा जा सकता कि उस चमकने वाली बिजली में भी पानी मौजूद है । उन्होंने कहा यह कटु सत्य है आग से ही धुआं निकलता है , परंतु निकलने वाले उस धुए में कभी भी आग मौजूद नहीं होती है । ठीक इसी प्रकार भगवान पर विकार होते हैं, परंतु वह विकार भगवान नहीं है । इस धर्म सभा में मुख्य रूप से काशी धर्मपीठ के पीठाधीश्वर स्वामी नारायण नंद तीर्थ , स्वामी अरुण आनंद महाराज , कमलेश शास्त्री, स्वामी अखंडानंद तीर्थ महाराज, स्वामी केदार आनंद तीर्थ महाराज , स्वामी बृजभूषण नंद महाराज सहित अनेक प्रबुद्ध प्रकांड साधु-संतों सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति और श्रद्धालु धर्म लाभ और अध्यात्म लाभ प्राप्त करने के लिए मौजूद रहे। Post navigation हरियाणवी संस्कृति की धमक के साथ हुआ गीता जयंती महोत्सव का समापन अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव मात्र एक इवेंट ?