पटौदी में सैनिकों की खान कहे जाने वाले कोई आयोजन नहीं. फूलमाला-मोमबत्ती बिना सूना ही रहा पटौदी का शहीद स्मारक फतह सिंह उजालापटौदी । दक्षिणी हरियाणा, जिसे की अहीरवाल और सैनिकों की खान कहा जाता है। इसी का हिस्सा अहीर बहुल पटौदी क्षेत्र भी सैनिकों की खान से कम नहीं है। यहां पर ऽभी भारत-चीन युद्ध से लेकर कारगिल युद्ध और हाल ही में रणसीका गांव के 22 वर्षीय शहीद कैप्टन कपिल कुंडू के साथ ही भारतीय सेना या यूं कहें कि सेना के इतिहास में सबसे कम उम्र के शहादत देने वाले विजेंद्र सिंह भी इसी इलाके के गांव के ही हैं । 26 नवंबर को देश को दहला देने वाले मुंबई आतंकी हमले का एक काला अध्याय और काला दिन के रूप में हमेशा याद किया जाता रहेगा। एक दशक पहले जब मुंबई के ताज होटल में सबसे बड़ा और दिल दहलाने वाला आतंकि हमला हुआ था, तो सुरक्षा बलों के मुकाबले आतंकियों को हावी होते हुए देख मानेसर से ब्लैक कैट कमांडो ऽभेजे गए थे। उस दल में भी पटौदी क्षेत्र के गांव नया गांव का रहने वाला जांबाज कमांडो सुनील यादव, जो कि अपने बैच का सर्वश्रेष्ठ कमांडो भी शामिल था । उस आतंकी हमले में आतंकियों से मुकाबला करते हुए उसे दो गोलियां ऽभी लगी थी। विभिन्न मौकों पर सुनील यादव को सम्मानित भी किया गया । यह स्थिति और हालात तब है जब कुछ माह पहले ही सत्ता पक्ष पार्टी के पदाधिकारियों, संगठन और सत्तासीन नेताओं के द्वारा शहीदों की याद में भव्य तरीके से तिरंगा सम्मान यात्रा का आयोजन किया गया। इस तिरंगा यात्रा सम्मान आयोजन की कड़ी में पटौदी क्षेत्र के करीब तीन दर्जन शहीद स्मारक स्थल पर शहीदों को याद करते हुए पुष्प अर्पित कर याद किया गया और शहीद परिजनों से विशेष तौर पर मुलाकात भी की गई। मुलाकात के साथ ही शहीदों के परिजनों का सम्मान भी किया गया । लेकिन शुक्रवार को देश में सबसे बड़े मुंबई में हुए आतंकी हमले की तेरहवीं वर्षगांठ के मौके पर शहादत देने वाले एनएसजी कमांडो, महाराष्ट्र पुलिस अन्य सुरक्षा बलों की जांबाजी को पूरी तरह से बिसरा दिया गया। इन सब बातों से इतर सवाल यह है कि कारगिल युद्ध में अहीरवाल क्षेत्र से सबसे अधिक शहादत देने के बाद पटौदी ही एकमात्र ऐसा क्षेत्र है, जहां से 8 जवानों ने अपनी जान की बाजी लगाकर के शहादत की परंपरा को आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा के रूप में प्रस्तुत किया। गुरूवार को जब सभी जगह मुंबई आतंकी हमले को नाकाम करने के दौरान शहीद हुए विभिन्न पुलिस जवान, सुरक्षा बलों और सैनिकों सहित ब्लैक कैट कमांडो को याद करके उनकी शहादत को सलाम किया जा रहा है और अपने अपने तरीके से श्रद्धांजलि दी जा रही है। ऐसे में अपने आप में यह भी एक बहुत बड़ा सवाल है कि पटौदी जैसे शहीदों के खान कहे जाने वाले इलाके में किसी भी प्रकार का कोई सामाजिक संगठन का कार्यक्रम, सरकारी स्तर पर कार्यक्रम का आयोजन नहीं होना अपने आप में बहुत बड़ा सवाल है कि हम आने वाली पीढ़ी को क्या संदेश दे रहे हैं ? जब भी कोई कार्यक्रम अथवा आयोजन होता है, खासतौर से शहीदों के संदर्भ में । उस वक्त सभी वक्ता विभिन्न राजनीतिक दलों के लोग, सामाजिक संगठनों के लोग, पदाधिकारी , शहीदों के सम्मान की बात करते हुए अपना अपना गला सुनने वालों के सामने खूब साफ करते हैं । अब जब मुंबई आतंकी हमले के शहीदों को याद करने का समय आया, ऐसे में तमाम उन लोगों का गला खुश्क हो गया, जो कि अक्सर शहीदों के कार्यक्रम में अपना गला साफ करते दिखाई देते हैं । क्षेत्र में एकमात्र शहीद स्मारक पटौदी महल और पटौदी कोर्ट के बीच में बना हुआ है । वहां पर भी किसी प्रकार की कोई एक मोमबत्ती जलाकर भी शहीदों खासतौर से मुंबई आतंकी हमले को नाकाम करने वाले शहीदों को याद करने की जहमत नहीं उठाई गई । इस पूरे प्रकरण को देखते हुए यही लगता है कि समय के बदलाव के साथ और समय बीतने के साथ बढ़ती ठंड के बीच में शहीदों के सम्मान में कसीदे पढ़ने वालों का जोश और खून भी ठंडा हो गया। इधर यदि दूसरी तरफ केंद्र में बीजेपी सरकार बनने और मोदी के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद अब तक के हालात पर गौर किया जाए तो कोई ऽभी व्यक्ति सत्ता पक्ष का हो या विपक्ष का हो। इस बात से इंकार नहीं कर सकता और गर्व के साथ कह ऽभी सकता है कि देश के किसी ऽभी कोने में कहीं ऽभी किसी ऽभी प्रकार का कोई ऽभी आतंकी हमला नहीं हो सका है । जो ऽभी आतंकी हैं , वह जम्मू कश्मीर क्षेत्र में ही सुरक्षा बलों के हाथों ढेर हो रहे हैं । इस साहस पूर्ण कार्य के पीछे आज ऽभी आए दिन हमारे ही अपने देश का कोई ना कोई जवान, जो किसी मां का बेटा, पत्नी का पति , बहन का ऽभाई है- वह देश की सुरक्षा के साथ साथ हम सभी की सुरक्षा के लिए बेखौफ होकर के अपनी जान की बाजी लगाने में जरा भी नहीं हिचक रहे हैं । यह संभव हुआ है सेना को आतंकियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाने की छूट दिए जाने के बाद से। ऐसे में हमारी संवेदनाएं क्यों मर रही है ? हम सभी को इसी बात पर ही विचार करना होगा की ऐसे मौकों पर कोई भी आयोजन किसी भी संस्था के द्वारा किसी भी संस्था में नहीं करके हम आने वाली युवा पीढ़ी को कहीं देश भक्ति के जज्बे से वंचित तो नहीं कर रहे हैं ? इस बात पर बेहद गंभीरता से विचार करना होगा। Post navigation …बढ़ सकती हैं हेलीमंडी नगर पालिका प्रशासन की मुश्किलें ! एक दिसम्बर एड्स दिवस को काला दिवस के रूप में मनाया जाएगा