-कमलेश भारतीय

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आखिर राजहठ छोड़कर तीन कृषि कानून वापस लेने की घोषणा ऐसे दिन की जब एक समाज को खुश किया जा सके । गुरुपर्व पर लेकिन संयुक्त किसान मोर्चे ने अभी आंदोलन वापस लेने का फैसला नहीं किया । किसान नेता राकेश टिकैत का कहना है कि जब तक संसद में कानून वापस लेने एवं एम एस पी को भी कानून में शामिल करने का फैसला नहीं हो जाता तब तक आंदोलन जारी रखा जायेगा । अब आंदोलन वापस लेने का श्रेय मोदी को देने की होड़ मच गयी है जैसे बहुत बड़ा क्रांतिकारी फैसला किया हो जबकि सब जानते हैं कि लगभग एक साल चले इस सब से लम्बे आंदोलन ने केंद्र सरकार व प्रधानमंत्री को झुकने के लिए पूरी तरह मजबूर कर दिया । अहंकार चूर चूर हुआ और राजस्थान व हिमाचल में आए उपचुनावों के परिणामों ने आइना दिखा दिया । यह खतरे की घंटी से कम नहीं था आने वाले पंजाब , उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों के लिए ।

उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ा खतरा मंडराने लगा था और पंजाब तो हाथ से गया ही गया था । ऐसे में झुकते नहीं तो क्या करते साहब ? अब श्रेय किस बात का दे रहे हैं इनके समर्थक ? लगभग सात सौ किसान इस आंदोलन के यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दे गये । ये किसके सिर लगेंगे ? अभी विपक्ष इनके परिवारों के लिए एक एक करोड़ रुपये की राशि और एक एक सरकारी नौकरी की मांग कर रहा है । विपक्ष ने खूब आलोचना की है भाजपा की और यही माना है कि अन्नदाता की जीत हुई है । लगभग एक वर्ष तक प्रधानमंत्री एक फोन काॅल की दूरी पर बैठे रहे और वार्ता के सारे द्वार भी बंद कर किसानों पर अत्याचार पर अत्याचार शुरू कर दिये । क्या वेरिकेट्स लगाने , क्या कीलें ठोंकने या फिर सड़कें खोद कर रास्ते रोकने जैसे अलोकतांत्रिक कदम क्यों न हों । कीलें तो हट गयीं लेकिन विधानसभा चुनाव में इनके निशान बहुत दुख देने वाले हैं । बहुत चुभने वाली हैं ये कीलें । राम जी , बड़ा दुख देंगीं ये कीलें । बाॅर्डर पर रास्ते खोलने के लिए सुप्रीम कोर्ट के द्वार भी खटखटाये।

लाला लाजपतराय ने भी अंग्रेजों के जमाने में पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन चलाया था और खुद लाठियां खाकर प्राण भी दिये थे । शहीद भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह भी इस आंदोलन में जेल गये थे । ऐसे आंदोलन समय समय पर चलते रहे हैं लेकिन इस बार का आंदोलन सबसे लम्बा आंदोलन बताया जा रहा है और प्रधानमंत्री लगभग एक साल चले इस आंदोलन को चाहते हैं कि किसान या आम जनता भूल जायें तो यह एक बड़ी भूल से कम नहीं । हरियाणा सरकार ने भी केंद्र के पदचिन्हों पर चल कर हिसार , सिरसा , टोहाना , कुरुक्षेत्र आदि शहरों में किसानों पर लाठीचार्ज किये और केस भी दर्ज किये । हरियाणा को लगभग किसान आंदोलन का दूसरा केद्र ही बना लिया था अपनी इसी भूल के चलते । इस आंदोलन से जहां सात सौ किसानों की जानें गयीं , वहीं चली टोल प्लाजा बंद होने से करोड़ों रुपये के टैक्स का नुक्सान हुआ ।

किसान खेतों को छोड़ कर दिल्ली के बाॅर्डर पर बैठे रहे और उन्हें बदनाम करने के लिए कभी आतंकवादी तो कभी नक्सलवादी न जाने क्या क्या आरोप लगाये जाते रहे । अब वे फिर से अन्नदाता हैं । काश , प्रधानमंत्री ने पश्चिमी बंगाल के चुनाव परिणाम के बाद इसकी आहट सुन ली होती तो इतना नुक्सान न झेलना पड़ता । अब कोई इसे दूर आयद दुरुस्त आयद भी नहीं मान रहा । कैप्टन अमरेंद्र सिंह को इसका श्रेय देने के चक्कर में है भाजपा ताकि उसके चेहरे पर वोट मांगने लायक हो जाये पर ये जो जनता है , सब जानती है । अजी अंदर क्या है , बाहर क्या है ये सब कुछ पहचानती है । चेहरे को देख भी लेगी और पहचान भी लेगी और परिणाम बता देंगे कितनी बड़ी राजनीतिक भूल की है । विपक्ष के निशाने पर हैं कैप्टन जैसे अवसरवादी नेता । जो साख थी वह भी गंवा बैठेंगे । ये कृषि कानून भाजपा को , इसके अहंकार को बहुत बड़ा सबक हैं जो देर से लिया गया ।
-पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी ।

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