प्रधानमंत्री मोदी ने बार-बार कहा कि कुछ मुठ्ठीभर किसानों को वे समझाने में असमर्थ रहे। इसलिए इन कानूनों को निरस्त करने का फैसला लेना पड़ रहा है जबकि अधिकांश किसान इन कानूनों के समर्थन में है और उक्त कानून किसान हित में है। विद्रोही

20 नवम्बर 2021 – स्वयंसेवी संस्था ग्रामीण भारत के अध्यक्ष एवं हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रदेश प्रवक्ता वेदप्रकाश विद्रोही ने एक बयान में कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा की यह बात सौ प्रतिशत जायज है कि जब तक मोदी सरकार संसद में कानून पारित करके तीन काले कृषि कानूनों को संवैद्यानिक रूप से निरस्त नही करती है और एमएसपी गारंटी कानून नही बनाती है, तब तक दिल्ली बार्डर से वापिस नही जायेंगे। विद्रोही ने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा नेताओं की इस बात में सौ प्रतिशत सच्चाई है कि आदतन असत्य बोलकर, जुमलेबाजी करके आमजनों को ठगने वाले प्रधानमंत्री मोदीजी की किसी भी जुबानी बात पर विश्वास करने का मतलब है कि अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मारना। मोदीजी ने इससे पहले भी जो वादे किये, उन्हे पूरा नही किया अपितु लोगों को झांसा देकर केवल ठगा। हर नागरिक के बैंक खाते में 15-15 लाख रूपये, विदेशों में जमा काला धन भारत में लाना सहित ऐसे बहुत से वादे है जो मोदीजी ने चुनावी लाभ के लिए जनता के सम्मुख किये थे जिन्हे बाद में जुमले बता दिये गए। ऐसे में जब तक सरकार एमएसपी गारंटी कानून नही बनाती है, तब तक किसानों का आंदोलन खत्म करना अपने पैरो पर कुल्हाडी मारने के समान होगा। 

विद्रोही ने कहा कि उत्तप्रदेश, पंजाब व उत्तराखंड में चुनावी लाभ लेने के लिए बेशक मोदीजी ने तीन काले कृषि कानून को वापिस लेने की घोषणा टेलीविजन पर कर दी, पर उनकी ईमानदारी पर तभी सवाल खड़ा हो गया जब उन्होंने कहा कि संसद सत्र में उक्त कानून निरस्त करेंगे। यह वही मोदी सरकार है जिसने विपक्षी नेताओं को जबरदस्ती फंसाने के लिए ईडी, सीबीआई के निदेशक का कार्यकाल मनमाने ढंग से बढाने के लिए संसद सत्र से ठीक 15 दिन पहले अध्यादेश लाकर ईडी व सीबीआई निदेशक का कार्यकाल बढ़ाने का फैसला लिया। जब निजी राजनीतिक हित के लिए मोदी जी सत्ता दुरूपयोग से अध्यादेश ला सकते है तो देश के करोडों किसानों के हित के लिए संसद शीतकालीन सत्र से पहलेे उन्हे तीन काले कृषि कानूनों को निरस्त करने का अध्यादेश लाने में परहेज क्यों रहा?  

विद्रोही ने कहा कि प्रधानमंत्री आने वाले विधानसभा चुनावों में लाभ पाने कृषि कानूनों को निरस्त करके किसानों की वोट हडपने की नौटंकी कर रहे है जबकि उनकी नियत में अब भी खोट है। कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा करते समय प्रधानमंत्री मोदी ने बार-बार कहा कि कुछ मुठ्ठीभर किसानों को वे समझाने में असमर्थ रहे। इसलिए इन कानूनों को निरस्त करने का फैसला लेना पड़ रहा है जबकि अधिकांश किसान इन कानूनों के समर्थन में है और उक्त कानून किसान हित में है। मोदीजी का यह रवैया व कृषि कानूनों पर स्टैंड मुंह बोलता प्रमाण है कि वे अब भी किसी न किसी चोर दरवाजे से किसानों पर कृषि कानूनों को लादने की फिराक में है। विद्रोही ने कहा कि मोदीजी केे विगत इतिहास, आचरण से ही किसानों ने यह फैसला किया है कि कृषि सम्बन्धित सभी बिन्दुओं का सार्थक हल निकाले बिना वे अपना आंदोलन समाप्त नही करेंगे। किसानों का उक्त फैसला एकदम तर्कसंगत व सही है। मोदी-भाजपा-संघी जैसी षडसयंत्रकारी व फासिस्ट सरकार पर तब तक किसी भी हालत में भरोसा नही किया जा सकता है, जब तक किसान मांगों पर कानूनी मोहर संसद में कानून बनाकर संवैद्यानिक रूप से न लग जाये। 

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