गुरुग्राम भाजपा में चरितार्थ हो रही कहावत ‘दिये तले अंधेरा

भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। भारतीय जनता पार्टी अपने अनुशासन और चाल, चरित्र, चेहरे के नाम से जानी जाती थी परंतु वर्तमान में इसकी स्थिति भी अन्य राजनैतिक दलों की तरह हो गई है। या यूं कहें कि उनसे भी बढ़ गई है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।

अनुशासन, कार्यकर्ता का सम्मान, वरिष्ठता और कार्यकर्ता के कार्यों का पूरा सम्मान इस पार्टी में होता था, ऐसा भाजपा के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं का कहना है। वह आजकल अलगाव वाली स्थिति में हैं, क्योंकि वर्तमान में भाजपा में कार्यकर्ता के कार्य और वरिष्ठता को नहीं देखा जाता, देखा जाता है तो केवल यह कि कौन व्यक्ति कितना अधिक चाटुकार है, जो जितना चाटुकारिता में योग्य होगा, उतना ही सम्मान उसे पार्टी में मिल रहा है।

गुरुग्राम सदा से ही भाजपा के लिए बहुत महत्वपूर्ण रहा है और वर्तमान में तो गुरुग्राम का महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है, क्योंकि मुख्यमंत्री का यहां आवागमन प्राय: लगा रहता है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ का निवास भी गुरुग्राम में ही है। और भी अन्य कुछ पदाधिकारी गुरुग्राम में हैं। एक नाम जिसके पास पद तो कोई नहीं है लेकिन महत्व बहुत बड़ा है, वह हैं जवाहर यादव। मुख्यमंत्री से उनकी नजदीकियां सर्वविदित हैं। उनका निवास भी गुरुग्राम में ही है।

गुरुग्राम में भाजपा संगठन की बात करें तो वह किसी भी प्रकार से संगठित नजर नहीं आता। विधायक और जिला अध्यक्ष में सामंजस्य की कमी बताई जाती है। इसके अतिरिक्त पूर्व विधायक उमेश अग्रवाल या पूर्व मंत्री राव नरबीर कहीं कार्यक्रमों में नजर नहीं आते। अर्थात वर्तमान संगठन को इनके अनुभव का लाभ मिल नहीं रहा। इसी प्रकार संगठन में अलग-अलग गुट नजर आते हैं। जैसे— राव इंद्रजीत के समर्थक हैं तो वह अलग नजर आते हैं, जो कांग्रेस से आकर भाजपा में आत्मसात होने का प्रयास कर रहे हैं, उन्हें भाजपा वाले अपना नहीं मानते। पूर्व विधायक और पूर्व मंत्री के समर्थक अपनी अलग सोच रखते हैं। और भी कई जातीय समीकरण भी भाजपा को विभक्त कर रहे हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि भाजपा गुरुग्राम में तो संगठित नजर आती नहीं। 

अब बात करें मोर्चों की तो मोर्चों में जिला अध्यक्ष में तालमेल की कमी नजर आती है। मोर्चे के अध्यक्ष अपनी कार्यकारिणी अपनी मर्जी से गठित करना चाहते हैं, जिला अध्यक्ष चाहती हैं कि गुरुग्राम में जो भी कार्यकारिणी बने, वह उनकी जानकारी और सहमति से बने। पिछले दिनों किसान मोर्चे और युवा मोर्चे के यह किस्से आम चर्चा में आए थे। युवा मोर्चे ने तो अपने कुछ पदाधिकारियों को हटाया भी। इसके पीछे क्या कारण है, इसको निश्चित रूप से हम कुछ कह नहीं सकते।

कुछ सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार ऐसा बताया जाता है कि युवा मोर्चे ने भाजपा के संविधान के अनुसार जितने पद दिए जाने थे, उससे अधिक पदों पर उन्होंने पदाधिकारी बना दिए। प्रदेश अध्यक्ष की जानकारी में यह बात आई तो प्रदेश अध्यक्ष ने वह संख्या संविधान के अनुसार करने को कहा। अब इसमें बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि वे पदाधिकारी क्या युवा जिला अध्यक्ष ने अपनी मर्जी से बनाए थे या जिला अध्यक्ष की सहमति से बनाए थे? नियम तो यही है कि पदाधिकारी जिला अध्यक्ष की सहमति से बनें। प्रश्न यही खड़ा होता है कि पदाधिकारी युवा अध्यक्ष और जिला अध्यक्ष की सहमति से बने तो क्या उन्हें भाजपा के नियमों का ज्ञान नहीं था? 

कुछ वरिष्ठ कार्यकर्ताओं ने और कुछ वर्तमान ने बिना नाम का जिक्र करने की शर्त पर बताया कि वर्तमान में जो पदाधिकारी बने हुए हैं, वे अपनी योग्यता से नहीं अपितु अपने संबंधों से बने हुए हैं, जिसमें भाजपा के पुराने आदर्शों को बिल्कुल नकारा गया है। कुछ पार्टी से निष्कासित सदस्यों को भी पद दे दिए गए, कुछ बिल्कुल नए लोगों को पद दे दिए गए। इससे पार्टी कार्यकर्ताओं में अंदर-अंदर कुंठा है कि हम तो केवल एक नाम हैं, जो इनके कार्यक्रमों में जाकर इनकी गिनती बढ़ाने के काम आते हैं। अन्यथा हमारी पार्टी के लिए दी हुई सेवाओं का कोई मोल नहीं लगता।

अब न जानें हताशा में या क्षोभ में दो-तीन वरिष्ठ भाजपाइयों ने जो आजकल हाशिये पर चल रहे हैं, ने कहा कि अब जिले में जो पद मिलते हैं, वे आरटीओ की प्रणाली पर मिलते हैं। जैसे आरटीओ में सभी नई गाड़ी लेने वालों को नंबर दिया जाता है, उसी प्रकार यहां भी जो आना चाहे, उसे कार्यकर्ता मान लिया जाता है। और जैसे आरटीओ में कोई विशेष अथवा वीआइपी नंबर लेना हो तो उसका शुल्क अतिरिक्त देना पड़ता है। उसी प्रकार पार्टी में भी पद पाने के लिए चल रहा है। जितना अधिक वीआइपी नंबर उतना अतिरिक्त शुल्क।

अभी हाल ही में गुरुग्राम में खुले में नमाज रोकने का प्रकरण चल रहा है। उसकी कमान कहने को तो हिंदू संघर्ष समिति ने संभाल रखी है लेकिन वास्तव में उसके पीछे भाजपा से निष्कासित भाजपा के पूर्व कार्यकारी जिला अध्यक्ष कुलभूषण भारद्वाज ही नजर आते हैं। वैसे भी वह कार्यकारिणी दावा करती है कि उसके साथ दो दर्जन से अधिक हिंदू संगठन हैं लेकिन यथार्थ में ऐसा दिखाई नहीं देता। दो दर्जन से अधिक संगठनों का अर्थ प्रदर्शन में गिनती हजारों की होनी चाहिए लेकिन यहां उपस्थिति सैकड़ों की ही दिखाई देती है। और उस प्रदर्शन में भाजपा के वर्तमान पदाधिकारी भी दिखाई दिए थे। इस बारे में गुरुग्राम के न तो विधायक का और न गुरुग्राम संगठन का कोई वक्तव्य आया। हां, चंडीगढ़ बैठे गृहमंत्री अनिल विज का अवश्य वक्तव्य आया। उपरोक्त संघर्ष समिति में भाजपा के ही सहयोगी दल के व्यक्ति नेतृत्व करते नजर आ रहे थे। तो ऐसे में क्या यह माना जाए कि सत्ता भाजपा की गृहमंत्री ध्यान दे रहे तो जो काम बातों से हो जाना था तो उसके लिए प्रदर्शन क्यों?

इसी प्रकार अनेक घटनाएं नजर आती रहती हैं। पिछले दिनों में भाजपा ने अनेक अभियान चलाए या यूं कहें कि मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष की नीति ही यही है कि कार्यकर्ता खाली नहीं रहना चाहिए, उसे किसी न किसी अभियान में लगाए रखना चाहिए। वह सब अभियान भाजपा कार्यकर्ताओं ने आपस में ही मिलकर पूर्ण कर लिए। मैं भी गुरुग्राम में ही रहता हूं, मैंने कहीं भाजपा कार्यकर्ताओं को आम जनता के बीच जाते देखा नहीं।

 उपरोक्त स्थितियों से आप स्वयं अनुमान लगाएं कि जो कहा है कि दिये तले अंधेरा, क्या वह उचित है या अनुचित? गुरुग्राम भाजपा की कार्यशैली क्या विपक्ष न होने के बावजूद जनता में पार्टी की पहचान बना रही है?

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