उमेश जोशी

 इनेलो के अभय चौटाला ने ऐलनाबाद उपचुनाव जीत कर नया रिकॉर्ड बनाया है। अभय चौटाला तीन उपचुनाव जीतने वाले हरियाणा के पहले नेता बन गए हैं। पहला उपचुनाव सन् 2000 में रोड़ी विधानसभा क्षेत्र से जीता था। अभय चौटाला के पिता ओमप्रकाश चौटाला के इस्तीफा देने से यह सीट खाली हुई थी। उसके बाद 2010 में रोड़ी का इतिहास ऐलनाबाद में दोहराया गया। बड़े चौटाला के इस्तीफे से खाली हुई ऐलनाबाद सीट अभय चौटाला ने 2010 के उपचुनाव में जीती थी। तब कॉंग्रेस का राज था और भूपिंदर सिंह हुड्डा प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। तीसरी बार खुद के इस्तीफे से खाली हुईं सीट जीती है। हरियाणा के चुनावी इतिहास में तीन उपचुनाव अभी तक किसी नेता ने नहीं जीते हैं।   

इस उपचुनाव में अभय चौटाला को 65992 (43.49 प्रतिशत) मत मिले। गोबिंद कांडा 59253 (39.02 प्रतिशत मतों के साथ दूसरे स्थान पर रहे। कॉंग्रेस के पवन बेनीवाल ने 20904 (13.78 प्रतिशत) मतों के साथ ज़मानत गंवा दी। कॉंग्रेस ऐलनाबाद सीट पर दूसरी बार तीसरे स्थान पर रही है। इस चुनाव से एक रिकॉर्ड और बना है। बीजेपी के गोबिंद कांडा और काँग्रेस के पवन बेनीवाल ने हार की हैट्रिक बनाई है। 

 उपचुनाव का इतिहास बताता है कि ऐलनाबाद की जनता सत्तारूढ़ दलों को आईना दिखाती है। 2010 में कॉंग्रेस की सरकार थी और अभय चौटाला ने कॉंग्रेस उम्मीदवार भरत सिंह बेनीवाल को धूल चटाई थी। तब हुड्डा ने अपनी खीज और नाकामी पर पर्दा डालने हुए कहा था कि ऐलनाबाद में कॉंग्रेस की नैतिक जीत हुई है। नैतिक जीत इसलिए बता रहे थे कि 2009 के मुकाबले 2010 में कॉंग्रेस के वोट सात प्रतिशत बढ़े थे। लोकतंत्र में मतों की जीत होती है, कोई नैतिक जीत नहीं होती फिर भी हुड्डा नैतिक जीत का परचम लहरा कर अपनी पीठ थपथपा रहे थे। इस बार मनोहर लाल खट्टर अपनी फजीहत छुपाने के लिए वही दलील देंगे जो 2010 में हुड्डा ने दी थी। 

   किसानों के भारी विरोध के बावजूद बीजेपी का उम्मीदवार गोबिंद कांडा महज 6708 मतों से हारा है जबकि पर्चा दाखिल करते समय बीजेपी के खिलाफ जो माहौल था उससे लग रहा था कि बीजेपी के उम्मीदवार की जमानत जब्त होगी। बीजेपी ने तो अपनी जमानत बचा ली लेकिन काँग्रेस ने जमानत गंवा दी। गंवाती भी क्यों नहीं! जब भूपेन्द्र हुड्डा खुद एलान करते हैं कि गोपाल कांडा मेरे मित्र हैं। चुनाव में इतना ही इशारा पर्याप्त होता है। उन्होंने कांग्रेस के अपने लॉयल कार्यकर्ताओं को एक संकेत दे दिया कि गोपाल कांडा के भाई गोबिंद कांडा की मदद करनी है। काँग्रेस के कार्यकर्ताओं ने, यूँ कहें कि हुड्डा समर्थकों ने गोबिंद कांडा की मदद की भी है, तभी तो नतीजे उम्मीद से विपरीत आए हैं। 

भूपिंदर सिंह हुड्डा बड़े खिलाड़ी हैं। एक तरफ़ गोपाल कांडा से दोस्ती का धर्म निभा दिया, दूसरी ओर अपनी विरोधी कुमारी सैलजा का कद घटा दिया। आलाकमान को यह संदेश चला गया कि कुमारी सैलजा ने गलत व्यक्ति को टिकट दिलवा कर पार्टी का नुकसान किया है। वे उसकी जमानत तक नहीं बचा पाईं। पवन बनीवाल को सैलजा समर्थन था इसलिए भरत सिंह बेनीवाल को हुड्डा खेमे में जाना ही था। शायद हुड्डा प्रभाव के कारण ही भरत सिंह बेनीवाल चुनाव प्रचार में नहीं उतरे। यह सच है कि भरत सिंह बेनीवाल और पवन बेनीवाल की रिश्ते कई वर्षों से तनावपूर्ण हैं लेकिन अब दोनों कांग्रेस में हैं इसलिए भरत सिंह बेनीवाल की नैतिक जिम्मेदारी थी कि अपनी पार्टी के उम्मीदवार के लिए वोट मांगते। लेकिन, वे एक दिन की प्रचार के लिए नहीं गए। प्रचार के दौरान भरत सिंह बेनीवाल बीमार बताए गए और बीमारी की आड़ में प्रचार के लिए नहीं निकले। यह महज इत्तेफाक नहीं है कि चुनाव के समय ही भरत सिंह बेनीवाल बीमार पड़ गए। उनकी यह बीमारी परोक्ष रूप से बीजेपी की मदद मानी गई है।

 हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों में से ऐलनाबाद एकमात्र सीट है जहां दो उपचुनाव हुए हैं। यह भी एक संयोग है कि इन दोनों उपचुनावों में इनेलो ने जीत दर्ज की है।    

error: Content is protected !!