बेटा-बेटी की खुशहाली के लिए किया अहोई व्रत फतह सिंह उजालागुरुग्राम। कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष गुरूवार को अष्टमी के दिन अपनी-अपनी संतान की दीर्घ आयु, स्वस्थ रहने और अकाल मृत्यु से बचाने के माताओं ने अहाई अष्टमी माता का उपवास रखा। माता और पिता जीवन पर्यंत प्रयास करते रहते हैं, कि संतान को स्नेह और सभी प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध हों । अहोई माता का अष्टमी के दिन व्रत खासतौर से पुत्र प्राप्ति, स्वास्थ्य और दीर्घ आयु के लिए ही किया जाता है। समाज सुधारक, चितंक, संस्कृत के विद्वान और धर्म ग्रंथो सहित वेदों के ममर्ज्ञ महामंडलेश्वर धर्मदेव कहते हैं आज लड़की अधिकांश क्षेत्रों में लड़कों से श्रेष्ठ साबित हो रही हैं। उन्होनें कहा बेशक कन्या अपना भाग्य लेकर ही जन्म लेती है, क्यों कि पालन तो अभिभावक ही करते हैं, शादी के बाद जीवन दूसरे परिवार में बीतता है। समय और भविष्य की जरूरत है कि कन्या के प्रति सोच बदलनी चाहिए । कन्या भू्रण हत्या करने और करवाने वालों को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए जीवन में कन्या, बेटी, बहू, बहन, पत्नी, मां का महत्वपूर्ण स्वरूप है। जरूरत के अनुसार यह भूमिका बदल जाती है। कन्या भू्रण की हत्या पर रोक नही लगी तो पिता, भाई, दादा, नाना, नानी व अन्य रिश्ते भी कायम नही रह सकेंगे। प्रकृति के संचालन और संतुलन के लिए जितना जरुरी लड़का है, उतना ही महत्व लड़की का भी है। गुरूवार को अंजू वधवा, शंकुतला, अंजू छाबडा, संगीता खुराना, ममता सहगल, पिंकी खुराना, बबीता, रेणू अदलखा, नववधु हेमा खुराना, बिंदू वधवा, निर्मला, पूनम, सुनिता, भावना सहित अनेक गृहणियों ने अहोई अष्टमी पर अहोई माता का व्रत रखा। राम मंदिर में सामूहिक रूप से अहोई माता की पौराणिक कथा भी सुनी गई। उपवासी माताओं ने पारंपरिक ओढ़नी-पीलिया-चूंदड़ी ओढ़कर, घर में बनाए पकवान अहोई माता को अर्पित किए। पौराणिक कथा के अनुसार भक्त प्रहलाद और हिरणाकश्यप प्रकरण को ध्यान में रखते हुए ही यह व्रत पुत्र की लंबी आयु के लिए रखा जाता है, कि उसे अकाल मृत्यु छू भी नही सके और लंबी आयु सहित स्वस्थ रहे। भौतिकवादी युग में बढ़ती महत्वकांक्षा में लड़की-वधु को उपभोग की वस्तु माना जाने लगा है। विवाह के बाद अक्सर ऐसे मामले सुर्खियां बन रहे हैं कि दहेज या अन्य कारणों से वधु-बहू को प्रताड़ित किया या फिर मार दिया गया। कई बार तो परेशान होकर नव विवाहिता अपनी जान तक दे रही है। आज भागदौड़ के जीवन और एकल परिवारों के कारण कामकाजी पढ़ी लिखी माताएं अहोई का व्रत रखते हुए नेट पर इसके महत्व को समझते हुए विधिवत व्रत खोलने लगी हैं। के संचालक महंत विठ्ठल गिरि और पटौदी के गांव हेड़ाहेड़ी में महाकाल गौशाला के संचालक महंत राजगिरि कहते हैं कि अब बदलती सोच और लड़की के महत्व को ध्यान में रखते हुए समाज में जागरुकता बन रही है। बेटा-बेटी में कोई अंतर नही देखते हुए पुत्री के लिए भी अहोई माता का व्रत किया जा रहा है। बेटी अपने घर और शादी के बाद सुसराल में भी हमेशा सुखी और खुशहाल रहे। उन्होंने कहा कि यह भी एक कटु सत्य है कि पुत्र चाहे कितना भी अयोग्य हो, कोई भी मां आजीवन उसका बुरा नहीं चाहेगी। अहोई अष्टमी माता के व्रत और पूजन का सीधा सरल संदेश यही है कि अभिभावक अपनी संतान का अहोई माता और भगवान से कुशल ही चाहते हैं। Post navigation ट्रैक्टर, थ्री व्हीलर व मोबाईल चुराने वाले तीन दबोचे ऐलनाबाद उपचुनाव : मुख्यमंत्री के दौरे के बाद तेजी से बदले समीकरण, दावे में सच्चाई या औपचारिकता !