भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक गुरुग्राम। जैसा कि कल हमने लिखा था कि चुनाव प्रचार समाप्त होने के बाद साम-दाम-दंड-भेद का खेल चलेगा, वैसा ही अब नजर आ रहा है। इसमें कोई नई बात भी नहीं, हर चुनाव में होता है परंतु आज अभय चौटाला ने चुनाव आयोग को शिकायत भी भेजी है। अब सच्चाई का फैसला तो चुनाव आयोग ही करेगा। अब बात करें भाजपा का दावा कि मुख्यमंत्री के दौरे के बाद तेजी से बदले समीकरण। कई बातें कह जाता है, एक तो यह कि पहले समीकरण इनके पक्ष में नहीं थे, दूसरा यह कि वह बताना चाहते हैं कि यदि चुनाव भाजपा जीतती है तो उसका एकमात्र कारण मुख्यमंत्री ही होंगे। इसे दूसरे नजरिये से देख सकते हैं कि चुनाव से पूर्व तो हर चुनावी उम्मीदवार अपनी जीत निश्चित बताता है और अभी चुनाव हुआ नहीं है तो यह दावे शायद मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए भी हो सकते हैं, क्योंकि इन दावों की सच्चाई पर कोई कुछ सवाल नहीं करता। भाजपा के मन कमजोरी उनकी विज्ञप्ति ने जाहिर की। वह बड़े गर्व से बताते हैं कि हमने सौ से अधिक सभाओं को संबोधित किया। कोई उनसे पूछे कि चुनाव में इतनी सभाएं तो संबोधित करते ही रहते हैं, उसमें कौन-सी नई बात है? आपके पास 20 स्टार प्रचारकों की सूची थी, पूरे हरियाणा के कार्यकर्ता थे, इनके अतिरिक्त जजपा का साथ था और सबसे बड़ी बात हलोपा से लिया प्रत्याशी भी पार्टी के साथ खूब सभाएं कर रहा था तो ऐसे में सौ सभाओं की बात क्या कोई उपलब्धि लगती है? इस उपचुनाव में आरंभ से ही अभय चौटाला को सबसे अधिक संभावित विजयी समझा जा रहा था। माना जा रहा था कि उनका मुकाबला कांग्रेस से होगा और भाजपा तीसरे स्थान पर रहेगी। परंतु हमें प्राप्त सूत्रों के अनुसार अब मुकाबला केवल इनेलो और भाजपा में रह गया है। कांग्रेस कहीं पिछड़ती नजर आ रही है और इनमें भी यदि चुनाव विशेषज्ञों या अपुष्ट सूत्रों के मुताबिक सट्टा बाजार की माने तो अभय चौटाला विजयी माने जा रहे हैं। परंतु साथ में चुनावी चर्चाकार यह भी कहते हैं कि धन में बड़ी शक्ति होती है और गोबिंद कांडा को उम्मीदवार बनाने के पीछे गोबिंद कांडा के वहां जनाधार के अतिरिक्त धन का भी उपयोग रहा है। जो भी है स्थितियां कुछ ऐसी बन रही हैं कि अभय चौटाला को क्षेत्र की सहानुभूति या समर्थन कुछ भी कहें, वह मिलता नजर आ रहा है और पहले से ही जनता का गुस्सा झेल रही भाजपा सरकार पर अनेक प्रकार के प्रश्न चिन्ह खड़े हो रहे हैं। पहले तो अनेक स्टार प्रचारक चुनाव प्रचार में आए ही नहीं। क्या उनके नाम चुनाव आयोग की 20 स्टार प्रचारकों की औपचारिकता पूरी करने के लिए दिए गए थे? दूसरे 27 तारीख को जब चुनाव प्रचार का अंतिम दिन था तो प्रदेश अध्यक्ष गुरुग्राम में मीटिंग ले रहे थे। वर्तमान में राजनैतिक चर्चाकारों में चर्चा का विषय यह अधिक दिखाई दे रहा है कि भाजपा के चुनाव जीतने या हारने के बाद क्या मुख्यमंत्री जीत-हार की जिम्मेदारी लेंगे या यह कहा जाएगा कि उम्मीदवार नया था, इस कारण भाजपा के कार्यकर्ताओं से और जजपा के कार्यकर्ताओं से तालमेल नहीं था और तालमेल की कमी ही हार कारण बनी। Post navigation अहोई अष्टमी पर क्या कहते हैं धर्म विशेषज्ञ सभी के सहयोग से बनेगा गुरूग्राम स्वच्छता में नंबर वन शहर-डा. विजयपाल यादव