अखिल भारतीय साहित्य परिषद गुरुग्राम इकाई ने किया आयोजन

अखिल भारतीय साहित्य परिषद गुरुग्राम इकाई के तत्वावधान में महर्षि वाल्मीकि जयन्ती के अवसर पर काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया । रविवार 24 अक्टूबर को सायं 4 बजे से आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता भारतीय शिक्षण मंडल दिल्ली प्रान्त के उपाध्यक्ष सोमदत्त शर्मा ने की जबकि संपादक, कवि एवं संस्कृतिकर्मी आशीष कंधवे ने मुख्य अतिथि के रूप में कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई । नई पीढ़ी को सुनने व मंच प्रदान करने के उद्देश्य से नवांकुर अतिथि के रूप में युवा कवयित्री कोमल को आमंत्रित किया गया । इकाई अध्यक्ष प्रो कुमुद शर्मा ने अतिथि गण का शाब्दिक स्वागत किया ।

गोष्ठी का संचालन वरिष्ठ कवि त्रिलोक कौशिक ने किया । मीनाक्षी पांडेय के मधुर कंठ द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से विधिवत गोष्ठी का शुभारंभ हुआ ।

काव्य गोष्ठी में मुख्य रूप से नरेंद्र खामोश, सुरिंदर मनचंदा, मोनिका शर्मा, मीनाक्षी पांडेय, आशीष कंधवे, सोमदत्त शर्मा, त्रिलोक कौशिक, अनिल श्रीवास्तव ने काव्य पाठ किया ।

नवांकुर अतिथि कोमल का नया तेवर उनकी रचनाओं में दिखाई दिया । कुछ मुक्तक के साथ उनकी रचना “अगर मैं चिरैया होती ” को विशेष सराहना मिली ।

“उपेक्षा , अवज्ञा , अस्वीकृति
से लड़ता रहा ,
जीवन चलता रहा ।”

मुख्य अतिथि आशीष कंधवे ने वाल्मीकि जयंती पर भगवान राम का स्मरण करते हुए कुछ पंक्तियां पढ़ीं । उनकी रचना “अखबार” की पंक्तियां ” और खून पीने से जब कागज़ ने मना कर दिया .. ” को विशेष सराहना मिली । अपनी रचना “अमृत मंथन ” में प्रभावशाली शैली में उन्होंने अपनी बात कही ।

“सब कुछ मौन हो जाने के बाद भी
तुम सृष्टि में मुखर कैसे होते हो ।”
उनका एक मुक्तक देखिए,
“हारता गया पर हारा नहीं हूँ मैं ,
लौटा कभी दुबारा नहीं हूँ मैं ।
रास्ते हों या हों मंजिल,
हकीकत हूँ, इशारा नहीं हूँ मैं ।”

अध्यक्षीय व्यक्तव्य में नए तेवर और अनुभव से गूँथी हुई विभिन्न रचनाओं का जिक्र करते हुये सोमदत्त शर्मा ने मारक लघु कविताओं और दोहों से वाहवाही लूटी ।

” जानता हूँ तैरना मगर,
मैं डूब जाना चाहता हूँ समुन्दर में,
तुम समुन्दर ही तो हो ।”

” जीवन नियमित चर्या से विमुख हो जाये
तो भीड़ जन्म लेती है ।
भीड़ समाज नहीं होता ।”

मीनाक्षी पांडेय ने जीवन की सच्चाई को अपने कविता में कुछ यूँ बयां किया

“मैंने जब संवेदनाओं का अभाव देखा ,
तब मैं जिंदगी से रूबरू हुई ।”
गुरुग्राम इकाई की महामंत्री मोनिका शर्मा की पंक्तिया
“अदब से सर झुकाने का हुनर
तुमसे ही पाया है ।
ये धड़कन तुम्हारी है
मुझ पर तुम्हारी साया है ।”
नरेन्द्र खामोश की पंक्तिया
” बात नरमी से वो अपनी ,
अब कभी कहता कहाँ है ।
वो कथायें प्रेरणा की,
अब कोई कहता कहाँ है ।”
त्रिलोक कौशिक की कुछ पंक्तियाँ यूँ थी,
“दरवाजे पर आकर चिपक गयी हैं
तुम्हारी दस्तकें ,
ऊपर आने की सीढ़ियां,
नीचे उतर गयी हैं ।”

इकाई अध्यक्ष प्रो कुमुद शर्मा ने प्रस्तुत कविताओं की सराहना करते हुये कहा नई कलम से निकली व्यापकता लिए रचनाओं के साथ प्रखर व्यंग्य , मूल्यपरक रचनाये सुनने को मिली वहीं संचालन में भी व्यंग्य के छींटे दिखाई दिये । उन्होंने आमंत्रित अतिथि कवि गण व श्रोताओं के प्रति आभार व्यक्त किया । इस अवसर पर प्रांतीय मार्गदर्शक हरियाणा डॉ शिव कुमार खंडेलवाल, रतन जैन , प्रदीप तिवारी , कृष्णलता यादव, रीमा यादव, निरंजन बनर्जी सहित कई साहित्य प्रेमी उपस्थित थे ।

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