किशन चन्द कोटी

किशन चन्द कोटी का जन्म 01-05-1932 को गाँव कोट कसरानी तहसील तौंसा (संघर तहसील) जिला डेरा गाजी खान में हुआ था | भारत को भंडित करने के समय मेरी आयु लगभग 15 साल की थी | मैंने लाहौर विश्वविद्यालय से आठवीं की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी |

हमारा गाँव लगभग मुस्लिम आबादी का था | हमारे गाँव में लगभग 150 हिन्दू परिवार थे, लेकिन कम संख्या के कारण हम उनसे लड़ाई-झगड़े नहीं कर सकते थे |

15 अगस्त 1947 से पहले हमारे गाँव में मुस्लिम लीग का जबरदस्त प्रचार हुआ औए हिन्दुओं के परिवारों को जीने की इच्छा ना के बराबर थी | परमात्मा की कृपा से मुसलमानों में कुछ अच्छे सरदार भी थे जिक्स नाम अमीर मुहम्मद खान था और उसका भतीजा मंज़ूर अहमद खान था, जो पक्का मुस्लिम लीगी था | हमारे गाँव में हिन्दुओं को मार-काटने का डर अधिक बढ़ गया था अपितु श्री अमीर मुहम्मद खान ने जब जान लिया कि अब हिन्दुओं के बचने की आशा नहीं थी तो उन्होंने हिन्दुओं को बचाने के लिए एक मस्जिद में हिन्दुओं को इकठ्ठा किया और उनको कहा कि अब जान-माल का खतरा बढ़ गया है इसलिए आप को चुपचाप घर छोड़कर चले जाना चाहिए | श्री अमीर मुहम्मद खान ने उर्दू जुबान का एक शेर पढ़ा , जो इस प्रकार है :-

आह, जाती है फ़लक पर रहम जाने के लिए,
बादलों हट जाओ, दे दो रास्ता हिन्दुओं को जाने के लिए

उनके आवाहन पर सभी हिन्दू जाने के लिए तैयार हो गए और घर बार छोड़ दिए | केवल हिन्दुओं का एक ही परिवार श्री मेहर चन्द कुमार व श्री नेबराज वहाँ रह गये जो अब इस समय मुसलमान बन कर रह रहे है | गाँव का एक ओर व्यक्ति श्री जेसाराम फती भी नहीं आया, वहां रह गया |

तौंसा शरीफ़ से कुछ हिन्दू डेरा गाजी खान बस द्वारा जा रहे थे, रस्ते में मुसलमानों ने बस को रोक कर हिन्दुओं को तलवारों से काट दिया, उसमें हमारे गाँव का एक व्यक्ति श्री जेसाराम कुमार को मौत के घाट उतार दिया | उसका एक पोता सेक्टर-4 में रहता है और वह रेलवे से रिटायर्ड है |

डेरा गाजी खान से चल कर मुजफ्फरगढ़ पहुँच गये थे और वहां हिन्दुओं का शिविर लगा हुआ था और हमें उसमें डाल दिया | उस दिन रात को मुसलमानों ने हमला कर दिया और उस हमले में कई हिन्दू मारे गये थे | हमले के दौरान भारतीय फ़ौज जो मुज्जफरगढ़ में थी उन्होंने उस बदमाशों का पीछा किया और गोली चलाई जिसके कारण 11 बदमाश मारे गये थे |

वह नजारा बड़ा भयानक था, भय के कारण परिवार सहित बड़ी कठिनाई के कारण रेलगाड़ी में बैठ गये थे | रास्ते में रेलगाड़ी में हिन्दुओं को काट-काट कर चले जाते थे और सारी गाड़ी को काट देते थे और कटी हुई गाड़ी को भारत भेज देते थे | परमात्मा का कोटि-2 धन्यवाद कि हमारी गाड़ी को कोई हानि नहीं पहुंची | हमारी गाड़ी इसलिए बच गई थी कि भारत से मुसलमानों की कटी गाड़ियाँ आ रही थी | इस खतरे को भापकर मुसलमानों ने गाड़ियों को काटना बंद कर दिया | परमात्मा का धन्यवाद है कि हम बचकर भारत पहुँच गये |

अंत में सारांश यह है कि मुसलमानों का राज कितना अच्छा हो फिर भी वे हिन्दुओं को काफ़िर समझते है और घृणा की दृष्टि से देखते है | परमात्मा का कोटि-कोटि धन्यवाद है कि हम भारत में वहाँ से अपना जीवन, शुद्ध व पवित्र ढंग से निर्वाह कर रहे है | देश के बंटवारे के साथ कुछ वर्षों तक हमें बहुत कठिनाईयों का सामना करना पड़ा | बारिश, आँधी और विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं से पीड़ित थे | बड़ी मेहनत कर के अपना पेट पालते थे और तो और पढ़ने के लिए पैसा नहीं था कुलीगीरी करके पढ़ाई को जारी किया और मार्च 1951 में दसवीं की परीक्षा दी और जून1951 में द्वितीय श्रेणी में पास हो गया था | सर्वप्रथम मैं अनट्रेंड टीचर के रूप में कैममकाम (वहीं रह कर) मुख्याध्यापक के रूप में सोतई गाँव तहसील बल्लभगढ़ में 5 महीने श्री दौलतराम मुख्याध्यापक की छुट्टी पर जाने के समय काम किया था | लिखने के लिए तो बहुत कुछ है परन्तु समय का अभाव होने के कारण अधिक नहीं लिख सकते | आप सभी मित्रों और सामजिक काम करने वालों को मेरी ओर से बहुत – बहुत धन्यवाद |

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