ऐलनाबाद तीर्थ स्थल बना भाजपाइयों के लिए तीन पार्टी मिलकर लड़ रही हैं चुनाव भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक गुरुग्राम। सत्तारूढ़ दल के लिए उपचुनाव को आमतौर से सहज माना जाता है और यह धारणा है कि वह सत्ता का लाभ ले अपने प्रभाव से बड़े आराम से चुनाव जीत लेगी परंतु इस बार भाजपा के लिए स्थितियां बड़ी विचित्र दिखाई दे रही हैं। मैदान में उतरने से पहले ही एक हार का ठीकरा तो वह अपने सिर फोड़ चुके हैं। वह यह कि भाजपा और उनके सहयोगी जजपा का कोई भी कार्यकर्ता गठबंधन सरकार को इतना सक्षम नहीं लगा कि वह चुनाव जीत सके। अत: बाहर से उम्मीदवार आयात किया। वैसे अब यह भाजपा की परंपरा सी बन गई है। निगम चुनाव में भी उन्होंने अधिकांश उम्मीदवार आयात ही किए थे। वर्तमान में भाजपा जो चुनाव की रणनीति के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है, ऐलनाबाद में बिखरी-बिखरी नजर आ रही है। उम्मीदवार घोषित होने से पहले ही भाजपा ने अपनी ओर से सुभाष बराला को चुनाव प्रभारी घोषित कर दिया और जजपा ने सरदार निशान सिंह को तथा उम्मीदवार आ गया हलोपा से। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार उम्मीदवार गोबिंद कांडा अपनी रणनीति से चुनाव लडऩा चाह रहे हैं। इधर दो दिन पूर्व प्रदेश अध्यक्ष भी पहुंच गए और मंच से भाजपा की जीत का दावा भी कर दिया। साथ ही जींद के विकास के गीत गा गए। उसका असर जनता पर यह हुआ कि यह पार्टी तो जुमले ही जुमले फैंकती है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि धनखड़, बराला, निशान सिंह और गोपाल कांडा ये चारों तो अपनी रणनीति से चुनाव लडऩे की सोच ही रहे हैं। इनसे ऊपर भाजपाइयों का कहना है कि हरियाणा में रणनीति तो मुख्यमंत्री की ही चलती है। अब जनता इन बातों से कुछ भ्रमित नजर आती है। ऐलनाबाद में अनेक स्थानों पर भाजपा और जजपा के नेताओं का बहिष्कार हो रहा है। ऐसे में गोपाल कांडा और गोबिंद कांडा अपने कार्यकर्ताओं के साथ वहां कार्यक्रम करते हैं। दूसरी ओर जैसा कि कहा जाता है कि भाजपा विश्व का सबसे बड़ा संगठन है, हरियाणा में भी निर्विवाद रूप से सबसे बड़ा राजनैतिक संगठन है और इस समय भाजपा के सारे हरियाणा के कार्यकर्ताओं को ऐलनाबाद जाना समझ आ रहा है। शायद उनका सोचना है कि ऐलनाबाद जाने से हमारी पार्टी के प्रति निष्ठा हाइकमान की नजर में आ जाएगी। अत: एक प्रकार से ऐलनाबाद भाजपाई कार्यकर्ताओं के लिए तीर्थ स्थल बना हुआ है, जो वहां सच्चे दिल से प्रार्थना करके आएगा, उसे अवश्य संगठन की ओर से कोई न कोई लाभ होगा। ऐसा सोचना है कार्यकर्ताओं का। वर्तमान में भाजपा अनेक कठिनाइयों से गुजर रही है। चाहे मुख्यमंत्री अपने कार्यशैली और ब्यानों से यह संदेश देते हैं कि हरियाणा में सब बढिय़ा है, हर तरफ खुशहाली और प्रसन्नता है तथा विकास के पथ पर अग्रसर हो रहा है। और अपनी इन बातों को सत्य प्रमाणित करने के लिए केंद्र के नेताओं से मिलकर उन नेताओं से भी हरियाणा सरकार के कार्यों की प्रशंसा कराते रहते हैं। इसी प्रकार उनके साथ उनके कुछ मंत्री भी सरकार के कार्यों की प्रशंसा करते रहते हैं। नई-नई योजनाएं मुख्यमंत्री द्वारा घोषित की जाती हैं। जैसे अभी दो-तीन दिन पूर्व ही हर हित के 71 स्टोरों का उद्घाटन करके गए। कोई उनसे पूछे कि इसी प्रकार सरकार के नियंत्रण में इतने राशन डिपो चल रहे हैं और उनमें उनके ही उपमुख्यमंत्री हर प्रकार का सामान बेचने की घोषणा कर चुके हैं तो इसमें नया क्या? इसी प्रकार आज पांच हजार वीटा स्टोर खोलने की बात कर रहे हैं। मुख्यमंत्री जी अगर यह सबकुछ इतना ही फायदेमंद था, जितना आप बता रहे हैं तो सात वर्ष आपने इसे सोचने में क्यों लगाएं? यह प्रश्न जनता पूछ रही है। तात्पर्य यह कि मुख्यमंत्री पूर्णतया: दिखा रहे हैं कि हम जनता के हितार्थ कार्य कर रहे हैं। संभव है कि यह सच भी हो लेकिन जनता को इनकी बात पर विश्वास नहीं है। सबसे बड़ा किसान आंदोलन सरकार के लिए सिर दर्द बना हुआ है। किसान आंदोलन के साथ श्रमिक वर्ग भी जुड़ गया है, अनेक सरकारी कर्मचारियों की यूनियनें भी जुड़ गई हैं। आम आदमी भी महंगाई और कोरोना की मार से झेल रहा है बेरोजगारी तो परेशान आदमी कभी सरकार से प्रसन्न नहीं होता, यह शाश्वत सत्य है। अब सरकार के गठबंधन की बात करें तो वहां भी सामंजस्य की कमी नजर आती है। मुख्यमंत्री और गृहमंत्री की अनबन के चर्चे अकसर अखबारों की सुर्खियां बनते रहते हैं। संगठन में मुख्यमंत्री का पूरा अधिपत्य है और यह प्रदेश अध्यक्ष को शायद पसंद नहीं आ रहा। दबी-सुनी चर्चाएं सुनी जाती हैं कि दोनों की सोच में अंतर है। राव इंद्रजीत सिंह ने शहीद सम्मान रैली कर उसमें पांच सांसदों, मंत्रियों, विधायकों और प्रदेश अध्यक्ष को एक मंच पर एकत्रित कर यह जनता को दर्शा दिया कि मुख्यमंत्री से पार्टी के सदस्य भी प्रसन्न नहीं हैं। शहीद सम्मान रैली के पश्चात मुख्यमंत्री ने संगठन के मोर्चों से अपने निवास पर मिलना आरंभ किया। उसमें प्रदेश अध्यक्ष की अनुपस्थिति सबको खल रही थी परंतु आज सहकारिता व पशुपालन एवं डेयरी प्रकोष्ठों की बैठक में प्रदेश अध्यक्ष की उपस्थिति नजर आई। तो इन सब बातों से चर्चाएं तो चलती ही रहती हैं। जब सर्वप्रथम मुख्यमंत्री ने मार्चों से मिलने की शुरूआत किसान मोर्चे से की तो उनका लट्ठ वाला ब्यान बहुत चर्चा में आया। विपक्ष उन पर पूर्णतया: हमलावर रहा। मुख्यमंत्री के त्यागपत्र तक की मांग कर डाली लेकिन भाजपा संगठन की ओर से किसी नेता का ब्यान मुख्यमंत्री के समर्थन में नहीं आया। इसी प्रकार पहले मुख्यमंत्री किसी योजना का शुभारंभ करते थे या घोषणा करते थे तो प्रदेश भर के भाजपाइयों की ओर से उनका आभार प्रकट किया जाता था परंतु आजकल भाजपा में शायद परंपरा समाप्त हो गई लगती है। इसके पीछे क्या कारण है, यह विचारनीय विषय है विचारो। इस प्रकार सामने यह आया कि चुनाव की मुख्य जिम्मेदारी तो मुख्यमंत्री मनोहर लाल के ऊपर आती है। उसके बाद जिम्मेदारी सहयोगी और उपमुख्यमंत्री होने के नाते दुष्यंत चौटाला पर आती है या यूं कहें कि दुष्यंत चौटाला पर अधिक आती है तो गलत नहीं होगा, क्योंकि दुष्यंत चौटाला उसे अपना गृहक्षेत्र कहते आए हैं। और इसके बाद गोपाल कांडा जिनके भाई गोबिंद कांडा को अब भाजपा ने उम्मीदवार बनाया है, उन पर भी आती है, क्योंकि उनके इस क्षेत्र में अच्छा प्रभाव होने की बात लगातार कही जा रही है। इस प्रकार देखें तो तीन पार्टियां भाजपा, जजपा और हलोपा मिलकर चुनाव लड़ रही हैं और फिर भी सत्ता में रहने के बाद चुनाव फंसा हुआ है। अगर हम यह कहें कि अभी भाजपा बैकफुट पर है तो शायद अनुचित नहीं होगा। यदि इन तीन पार्टियों के सत्ता में बने रहने के बावजूद उपचुनाव में गठबंधन उम्मीदवार क्यों भाजपा उम्मीदवार, क्योंकि चुनाव तो भाजपा के चुनाव चिन्ह पर लड़ रहे हैं, की हार हो जाती है तो हरियाणा सरकार और विश्व की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी पर क्या गुजरेगी, यह अनुमान लगाना शायद सहज नहीं होगा। Post navigation रेडक्रॉस शाखा में दिव्यांगों के 21 अक्टूबर से पंजीकरण शुरू 1947 के विभाजन का दर्द – बुजुर्गों की जुबानी