रविवार को मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप अभय मुद्राधारिणी स्कंदमाता की होगी उपासना: पं. अमरचंद भारद्वाज

पूजन से सुख-शांति और समृद्धि की होती है प्राप्ति, साक्षात मां जैसी कृपा ही भक्तों पर रखती हैं स्कंदमाता

गुरुग्राम: श्री माता शीतला देवी मंदिर श्राइन बोर्ड के पूर्व सदस्य एवं आचार्य पुरोहित संघ गुरुग्राम के अध्यक्ष पंडित अमर चंद भारद्वाज ने कहा कि शारदीय नवरात्र के चौथे/पांचवें दिन रविवार को मां दुर्गा के पंचम स्वरुप मां स्कंदमाता की उपासना की जाएगी। स्कंद कुमार (कार्तिकेय) की माता के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम दिया गया है। भगवान स्कंद बालरूप में माता की गोद में विराजित हैं। देवी मां की चार भुजायें हैं। ऊपर की दाहिनी भुजा में माता अपने पुत्र स्कन्द को पकड़ी हैं और निचले दाहिने हाथ तथा एक बाएं हाथ में कमल का फूल है, जबकि माता के दूसरा बाएं हाथ में अभय मुद्रा सुशोभित है। माना जाता है कि देवी मां अपने भक्तों पर ठीक उसी प्रकार कृपा बनाये रखती हैं, जिस प्रकार एक मां अपने बच्चों पर बनाकर रखती हैं। देवी मां अपने भक्तों को सुख-शांति और समृद्धि प्रदान करती हैं। साथ ही स्कंदमाता हमें सिखाती हैं कि हमारा जीवन एक संग्राम है और हम स्वयं अपने सेनापति। देवी मां की कृपा से हमें सैन्य संचालन की प्रेरणा भी मिलती है। नवरात्रि में मां दुर्गा की आराधना करने वाले भक्तों/ साधकों का मन पांचवें दिन स्कंदमाता के पूजन के दौरान विशुद्ध चक्र में अवस्थित होता है। शास्त्रों में इस दिन का पुष्कल महत्व बताया गया है। इस पूजन चक्र में साधकों की समस्त वाह्य क्रियाओं और चित्तवृत्तियों का लोप हो जाता है। साधक का मन समस्त लौकिक और सांसारिक बंधनों से विमुक्त होकर मां स्कंदमाता की चरणों में तल्लीन होता है। समस्त वृत्तियों को एकाग्र रखते हुए मां स्कंदमाता की साधना करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। साधक को मृत्युलोक में शांति और सुख का अनुभव प्राप्त होता है। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी स्कंदमाता की उपासना से बाल रूप स्कंद भगवान की उपासना भी स्वयं हो जाती है।

स्कंदमाता की पूजन विधि

पंडित अमर चंद भारद्वाज ने कहा कि माता के पूजन के लिए सबसे पहले चौकी पर स्कंदमाता की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें। इसके बाद उस चौकी में श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी), सप्त घृत मातृका (सात सिंदूर की बिंदी लगाएं) की स्थापना भी करें। फिर वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा स्कंदमाता सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि करें। तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें। साथ ही देवी मां के इस मंत्र-सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चित करद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥ का 11 बार जप भी करना चाहिए। स्कन्दमाता के इस मंत्र का जप करने से आपके घर में सुख-शांति और समृद्धि भी बनी रहेगी। मां को केले का भोग अति प्रिय है। इन्हें केसर डालकर खीर का प्रसाद भी चढ़ाना चाहिए।

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