भजनलाल राजनीति के बड़े खिलाड़ी भजनलाल ने अपने कामों से देश और प्रदेश में अलग पहचान बनाई। 6 अक्टूबर,1930 को बहावलपुर प्रांत के कोटवाली गांव में भजनलाल का जन्म हुआ था। बहावलपुर अब पाकिस्तान में है। आगामी बुधवार को भजनलाल की जयंती है। उनकी जंयती के मौके पर उनको-उनके कार्यक्रमों-उनके कारनामों को याद कर लेते हैं। जब भजनलाल पाकिस्तान से भारत आए तो उनका जीवन गरीबी में बीता। वो अंडर मैट्रिक तक ही शिक्षित थे। देसी घी बेचने का कारोबार किया शुरूआत में भजनलाल ने साईकिल पर कपड़े बेचे। फिर लुधियाना में देसी घी बेचने का कारोबार शुरू किया। वो बताते थे कि उन जैसा शुद्ध देसी घी आसपास कहीं नहीं बिकता था और दूर दूर से लोग उनका घी खरीदने आते थे। अपने गांव का सरपंच बनने से उनका सियासी कैरियर शुरू हुआ। वो ब्लाक समिति के चेयरमैन,विधायक,मंत्री,सीएम बने,केंद्रीय कृषि और वन मंत्री भी बने। 3 जून,2011 को 80 बरस की आयु में दिल का दौरा पड़ने से हिसार में उनका निधन हो गया। जीओ और जीने दो भजनलाल ऐसे शख्स थे जिनकी जीओ और जीनो दो, के सिंद्धात में गहरी आस्था थी। उनमें हर किसी को अपना बना लेने का हुनर था। उनका सैंस आफ हयूमर कमाल का था। वो अपनी राजनीति यात्रा को बड़े चाव से बयान करते थे। उन्होंने कभी ये कल्पना नहीं की थी कि वो हरियाणा के सीएम बन जाएंगे। वो पहली दफा 1968 में आदमपुर से चुनाव जीत कर विधायक बने। भजनलाल आदमपुर के बेताज बादशाह रहे। पांच दशक से लंबे अपने सियासी कैरियर में वो कभी आदमपुर से चुनाव नहीं हारे। देवी वैडस भजन 1977 में उनको देवीलाल ने अपनी सरकार में हरियाणा का पशुपालन मंत्री बनाया। भजनलाल को मंत्री बनाना देवीलाल की भयंकर भूल साबित हुई। उन्होंने देवीलाल सरकार को तोड़ दिया। उन्होंने एक बस में जनता पार्टी के विधायकों को बिठाया और फुर्र हो गए। किसी को ये शक ना हो कि इस बस में हरियाणा के विधायक हैं उन्होंने इसे बारात की बस दिखाते हुए इसके आगे लिखवा दिया था देवी वैडस भजन। इन विधायकों के समर्थन के दम पर भजनलाल ने 29 जून,1979 को पहली दफा मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इस कारनामे से उनको देश भर में जाना जाने लगा। राजनीति का पीएचडी बताते थे खुद को जब 1980 में केंद्र में इंदिरा गांधी की सरकार आई तो भजनलाल रातों रात कांग्रेस में शामिल हो कर जनता पार्टी से कांग्रेस के सीएम बन गए। इसके बाद 1982 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की 32 और देवीलाल की पार्टी की 36 सीट आई थी। हरियाणा के तत्कालीन राज्यपाल जीडी तपासे ने बड़े दल के आधार पर देवीलाल को इतवार को सीएम पद की शपथ देने का न्यौता दिया कि इसी बीच भजनलाल ने फिर से खेल कर दिया। उन्होंने एक दिन पहले शनिवार को ही सीएम पद की शपथ ले ली और देवीलाल के अरमान चकनाचूर कर दिए। उन्होंने फिर से देवीलाल का शिकार करते हुए उनकी पार्टी के कई विधायकों को साथ मिला अपना बहुमत साबित कर दिया। इस कारनामे के बाद देश भर में भजनलाल का फिर से डंका बज उठा। वो कहने लगे थे कि बेशक उनके पास पढाई में पीएचडी की डिग्री नहीं है,लेकिन राजनीति के पीएचडी वो ही हैं। देवीलाल के न्याय युद्ध आंदोलन से कांग्रेस की हवा बिगड़ी तो भजनलाल को राज्यसभा में भेज कर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने1986 में अपनी सरकार में उनको कृषि और वन मंत्री बना दिया। उसके बाद 1989 में उन्होंने कांग्रेस टिकट पर फरीदाबाद से चुनाव लड़ा और विजयी हुए। ये उनका पहला लोकसभा चुनाव था। अकेले मुझे चुनाव जितवा दो, सरकार बना दूंगा भजनलाल को सरकार बनाने और गिराने में ख्याति हासिल थी। आयाराम-गयाराम की राजनीति के वो सजग प्रहरी थे। 1991 के विधानसभा चुनाव में अपने जनसम्पर्क अभियान में जनता से कहते भी थे कि आप लोग बस मुझे अकेले को चुनाव जीता दो,सरकार बनाना मेरा काम है। सरकार बनाने के लिए अकेला भजनलाल ही काफी है। आप सब मेरे करिश्मे से बखूबी वाकिफ हैं। 1991 में ज्यादातर विधायक भजनलाल के पक्ष में थे और सीएम बनने में उनको कोई कठिनाई नहीं आई। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से भी अपनी सियासी नजदीकियां बढाई। उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा के कुछ सांसदों को कांग्रेस की तरफ ला कर अल्पमत नरसिम्हा राव सरकार को पांच साल तक चलाने के लिए भरपूर खाद, पानी और आक्सीजन मुहैया करवाई। एकमात्र चुनाव करनाल से हारे भजनलाल के सीएम रहते 1996 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 90 सीट में से सिर्फ नौ पर जीत मिली। इसमें में एक सीट आदमपुर की थी, जहां से भजनलाल विजयी हुए थे। आदमपुर की जनता ने हमेशा ही भजनलाल परिवार का साथ दिया। यहां तक की जब 1987 के चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ हरियाणा में नफरत का माहौल था और 90 में से पांच सीटों पर ही कांग्रेस जीती थी, उनमें से एक विधायक भजनलाल की बीवी जसमा देवी थी जो आदमपुर से चुनाव जीती थी। 1998 में करनाल लोकसभा सीट से भाजपा के आईडी स्वामी को हरा कर भजनलाल सांसद बने।भजनलाल अपने जीवन में एकमात्र चुनाव 1999 में हारे। कारगिल लहर पर सवार उनको करनाल से ही आईडी स्वामी ने हरा कर हिसाब बराबर कर लिया। उसके बाद भजनलाल फिर से 2000 में आदमपुर से विधानसभा का चुनाव जीत कर विपक्ष के नेता बने। बाद में वो हरियाणा कांग्रेस का अध्यक्ष बने और उनकी अगुवाई में हुए 2005 के चुनाव में कांग्रेस को 90 में से 67 सीटों पर जीत हासिल हुई। वो तब सीएम बनने के लिए अत्यधिक आश्वस्त थे। वो जब अपने पंचकूला स्थित आवास से कांग्रेस विधायक दल की मीटिंग के लिए हरियाणा विधानसभा परिसर के लिए रवाना हुए तो उनके साथ 47 विधायक थे। इस मीटिंग में विधायक दल का नेता चुनने का अधिकार कांग्रेस हाईकमान को सौंपे जाने सबंधी प्रस्ताव आते ही भजनलाल ना नुकर करने लगे। उनको अहसास हो गया था कि अब उनका खेल बिगड़ने वाला है। वैसा ही हुआ भी और भूपेंद्र हुडडा सीएम बन गए। इस सदमे से वो उबर नहीं आए और सियासी तौर पर हाशिए पर चले गए। हालांकि उन्होंने हरियाणा जनहित पार्टी के नाम से अलग पार्टी भी बनाई,पर सत्ता में वो वापसी नहीं कर सके। उनके बड़े बेटे चंद्रमोहन को हुडडा सरकार में डिप्टी सीएम भी बनाया गया। उनके छोटे बेटे कुलदीप बिश्नोई ने 2004 के लोकसभा चुनाव में भिवानी से सुरेंद्र सिंह और अजय चौटाला को पटखनी दी।आदमपुर के मौजूदा विधायक कुलदीप ने यहां से कई चुनाव जीते। उनकी बीवी रेणुका भी हांसी से विधायक रह चुकी हैं। ब्याज समेत चुकाते थे कर्ज भजनलाल में ऐसा क्या था कि उन्होंने गांव की गलियों से निकल कर हरियाणा सचिवालय में सत्ता के गलियारे तक का सफर तय किया? उनकी एक खूबी तो ये थे कि उनका दोस्त बनाने में विश्वास था। जब तक अत्ति ना हो जाए वो दुश्मन नहीं बनाते थे। अपने संभावित सियासी विरोधियों को आसानी से पहचान लेते थे और उनको पुचकार कर रखते थे। इसी रणनीति के तहत उन्होंने आदमपुर में किसी को अपने खिलाफ पनपने नहीं दिया। जिसका भी थोड़ा सा सियासी वजूद लगता उसको सत्ता की रेवड़ी देकर वो खुश कर देते। वो उदार स्वभाव के थे और सरकारी पद-सुविधा देकर लोगों को आसानी से पटा लेते थे। अगर कोई उनकी कुर्सी की तरफ आंख करता तो फिर वो उसे निर्ममता से सबक सिखाने में किसी किस्म की कोताही नहीं करते थे। सवेरे निपटाते थे सरकारी फाइल हरियाणा के कई सीएम के विपरीत वो सरकारी फाइल आमतौर पर सवेरे सवेरे निपटाते थे। वो जल्दी उठ जाते और सरकारी कामकाज निपटा देते थे। इसका कारण पूछने पर उन्होंने कहा कि सुबह मन शांत होता है और फैसला लेना आसान होता है। अफसरों के वो प्रिय रहे। उनकी तरक्की में उनके प्रधान सचिव रहे बीएस ओझा का भी अहम योगदान रहा। ओझा के साथ उनका रिश्ता सीएम और अफसर का ना होकर, दोस्ती का था। भजनलाल के ब्लाक समिति का प्रधान रहने के दौरान आर.एस.चौहान नामक सज्जन बीडीओ थे। भजनलाल जब सीएम बने तो उन्होंने चौहान को अपना ओएसडी बनाया और नौकरी से रिटायरमेंट के बाद उनको एचपीएससी का मैंबर भी बनाया। एक तरह से वो कर्ज को कई गुना ब्याज के साथ लौटाते थे। राजनीति में उनकी गजब की साख थी। ऐसा माना जाता है कि विधायकों-नेताओं से अगर वो जब कोई वादा करते तो उसको निभाने की हर मुमकिन कोशिश करते। …आप को ये बात शोभा नहीं देती ये 2000 में चौटाला राज का किस्सा है। एक दफा वो मेरी किसी खबर से खफा हो गए। सवेरे सवेरे उनका फोन आया और उन्होंने बड़ी ही विनम्रता-शिष्टता से कहा: आप तो अपणे आदमी हो। आप ने हमारे खिलाफ इतनी बड़ी खबर क्यों लिख दी? आपको ये बात शोभा नहीं देती। आप से मुझे ऐसी उम्मीद नहीं थी। मैंने जब उनको तथ्यों के साथ बताना शुरू किया कि इस खबर में कुछ भी गलत नहीं है तो उन्होंने मेरी बात को लगभग अनसुना करते हुए कहा कि आप मेरे घर पर लंच के लिए पधारिए। मैंने जब लंच पर उनको उस खबर के बारे में सच बताने की कोशिश की तो उन्होंने कहा कि छोड़ो,अब ये मामला। मेरे मन में आपके प्रति कोई गिला शिकवा नहीं है। उन्होंने सीधी बात करते हुए कहा कि आप मेरा साथ दो-अगला सीएम मैं बन रहा हंू-मैं आपकी मौज करवा दंूगा। वो एक अच्छे होस्ट थे। खाने पिलाने के शौकीन थे। हलवा-चूरमा-कढी उनको प्रिय थी। उनके साथ कई हसीन और यादगार शामें बिताने के आधार पर कहा जा सकता है कि वो खुल्ली बात करने के आदी थे और बात को घुमाने-छिपाने में उनका ज्यादा सा यकीन नहीं था। वो अपनी जिंदगी के कई हसीन राज बड़े चाव से और बड़ा रस लेकर लेकर सुनाते थे। उनका व्यक्तित्व इंद्रधनुषी छटा लिए हुए था जिसमें कई रंग थे। जिन भजनलाल को जोड़ तोड़ का खिलाड़ी और सिर्फ विधायकों का ही नेता माना जाता था, वो अपने सियासी सफर के आखिरी दौर में जन प्रिय नेता के तौर पर तबदील हो चुके थे। सरपंच से सीएम तक के अपने सियासी सफर में उन्होंने साबित किया कि वो साम, दाम, दंड, भेद की कलाओं में ऐसे निपुण खिलाड़ी थे,जिसने तमाम बाधाओं को अपनी दूरदर्शिता और कौशल से पार पाया। आखिर में वक्त को पहचानने में जरूर उनसे बड़ी चूक हो गई। Post navigation सीएम साहब…किसान आंदोलन से दूरी पर बाजरा खरीद क्यों नही! राष्ट्रीय बाल बहादुरी पुरस्कार के लिए आवेदन आमंत्रित, अंतिम तिथि 15 अक्तूबर