धान की सरकारी खरीद शुरू पर बाजरा खरीदने से बच रही सरकार
किसान आंदोलन में सरकार के साथ खड़े रहने वाले अहीरवाल के किसान अन्याय पर चुप क्यों ?
भावांतर भरपाई योजना से भी नहीं होगी भाव और भरपाई के बीच अंतर की दूरी
चार विधायक और एक मंत्री बाजरा खरीद को लेकर मिले सीएम से
अहीरवाल के जनप्रतिनिधियों को नहीं मिला कैबिनेट मिनिस्टर का साथ

अशोक कुमार कौशिक 

आज घर का सामान लेना था। शहर की जानी मानी  दुकान पर गया सामान की सारी बात हो गई तो लेने से पहले उनसे किसान आंदोलन के बारे में उनके विचार पुछ लिए। वो किसान से ज्यादा सरकार को सही ठहरा रहा था तो सामान लेना कैंसल कर दिया। उनसे और बोल कर भी आया कि आप खेती नहीं करते, तो किसान आंदोलन से आपका लेना देना नहीं लेकिन रोटी से तो आपका लेना देना है।

अगर हम कहीं से भी 20-25 हजार से उपर का सामान खरीदते हैं तो एक बार दुकान वाले से किसान आंदोलन के बारे में राय जरूर ले ले। जो किसान साथ है हमें उनके साथ रहना चाहिए।

अहीरवाल ने 2014 से ही भाजपा को पूरा समर्थन दिया। मिला क्या? भाजपा 2014 से ही दक्षिणी हरियाणा की अपेक्षा तराई क्षेत्र को अधिक महत्व देती आई है। यहां तक कि कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे आंदोलन से खुद को अलग रखकर अहीरवाल के किसान ने एक तरह से सरकार का खुलकर साथ दिया है। जिस क्षेत्र के किसान कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन कर रहे हैं, वह प्रमुख रूप से धान की खेती करते हैं। आंदोलनकारियों का साथ नहीं देने वाले दक्षिणी हरियाणा के किसानों की प्रमुख फसल बाजरा है। धान की सरकारी खरीद नहीं होने के खिलाफ आंदोलन की आहट ने ही सरकार के पसीने छुड़ा दिए। इसके बाद सरकार धान की खरीद के लिए तैयार हो गई। अब सरकार समर्थन मूल्य पर बाजरा बेचने के लिए दक्षिणी हरियाणा के किसान सरकार का मुंह ताक रहे हैं, परंतु सरकार की ओर से उन्हें एमएसपी पर बाजरा खरीदने का आश्वासन तक नहीं मिला है।

बाजरा उत्पादक किसानों की आलोचना का शिकार सत्तापक्ष से जुड़े लोगों को होना पड़ रहा है।बाजरे का सरकारी समर्थन मूल्य 2246 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया हुआ है। एमएसपी पर बाजरे की खरीद नहीं होने के कारण इसका बाजार भाव भी बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। गत वर्ष जब सरकार ने 2150 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से बाजरा खरीदने का निर्णय लिया था, तो पड़ौसी राज्यों का बाजरा भी प्रदेश की मंडियों में काफी अधिक मात्रा में बिक गया था। महंगे दामों पर खरीदे गए बाजरे को सरकार सस्ते दामों पर बेचने पर मजबूर हो गई थी, जिस कारण सरकार को इससे भारी नुकसान उठाना पड़ा था। प्रदेश में जितने बाजरे का उत्पादन होता है, मंडियों में सरकारी रेट पर उससे कहीं ज्यादा बाजरा बेचा गया था। यही कारण था कि इस बार सरकार ने किसानों को बाजरे की बजाय दूसरी फसलें उगाने के लिए प्रेरित किया था। इसके बदले सरकार ने प्रोत्साहन राशि के रूप में किसानों को सहायता राशि की घोषणा की थी पर इस बार बरसात ने सरकारी अनुमान के साथ-साथ किसानों के अरमानों पर भी पानी फेर दिया।  अनेक जगह मूंग, ग्वार, बाजरा की फसल खराब हो गई।

इसके बावजूद बाजरे की फसल पर निर्भर रहने वाले दक्षिणी हरियाणा के विकल्पहीन किसानों के लिए बाजरा उत्पादन मजबूरी बन गया था। अब उन किसानों के लिए मंडियों में बाजरा बेचना मुश्किल साबित हो रहा है।

सरकार भावांतर भरपाई योजना के तहत बाजरा उत्पादन किसानों को प्रति क्विंटल 600 रुपए देने की बात कर रही है, परंतु बाजार भाव काफी कम होने के कारण यह राशि भी किसानों को राहत नहीं दे पा रही है। क्षेत्र के बाजरा उत्पादक किसान धान की खरीद शुरू कराने की घोषणा के बाद से ही इस बात की उम्मीद लगाए बैठे हैं कि सरकार बाजरा खरीद भी जल्द शुरू करेगी, लेकिन उनका इंतजार खत्म नहीं हो रहा। 

किसानों के मर्ज से डॉक्टर का किनारा…

अहीरवाल के किसानों की प्रमुख फसल मंडियों में मार्केट रेट पर कौडिय़ों के दाम बिक रही है। प्रदेश सरकार की भावांतर भरपाई योजना के तहत निर्धारित राशि भी किसानों के लिए अपर्याप्त साबित हो रही है। बाजरे की सरकारी समर्थन पर मूल्य पर खरीद कराने के लिए किसान इस क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों से अपील कर रहे हैं। इस अपील पर गौर फरमाते हुए मंगलवार को सामाजिक अधिकारिता मंत्री ओमप्रकाश यादव, कोसली के विधायक लक्ष्मण सिंह यादव, नांगल चौधरी के विधायक डा. अभयसिंह, अटेली के विधायक सीताराम और पटौदी के विधायक सत्यप्रकाश जरावता ने एकजुटता का परिचय देते हुए सीएम मनोहरलाल से मिलकर उन्हें इस क्षेत्र के किसानों की पीड़ा से अवगत कराया। जिस समय अहीरवाल के यह जनप्रतिनिधि सीएम से मिलने गए, उस समय सहकारिता मंत्री डा. बनवारीलाल ने उनका साथ निभाना उचित नहीं समझा। इससे यह बात साबित हो रही है कि कृषि से जुड़े प्रमुख विभाग का मंत्री होने के बावजूद डा. बनवारीलाल को किसानों के हितों से कोई खास सरोकार नहीं है। इसके पीछे डॉ बनवारी लाल अहीरवाल की किसान की उदासीनता को लेकर भली भांति वाकिफ है। अहीरवाल के किसान की इसी मनोदशा के चलते डॉ बनवारी लाल ने इस मामले से दूरी बना कर रखना ही बेहतर माना।

बाजरा बिक्री को लेकर सरकार की 600 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से दी जाने वाली राशि भी किसानों के लिए एमएसपी की बराबरी से काफी दूर साबित हो रही है। विधायक लक्ष्मण सिंह यादव ने इस मामले को सीएम के समक्ष प्रमुखता से उठाते हुए उन्हें बताया कि बाजार में बाजरे के भाव काफी कम होने के कारण इस राशि को प्रति क्विंटल एक हजार रुपए किया जाए। मंत्री व दूसरे विधायकों ने लक्ष्मण की इस मांग को उचित बताते हुए सीएम से इस मामले में तत्काल कदम उठाने का आग्रह किया। सीएम ने उन्हें भरोसा दिलाया कि सरकार जल्द इस मामले में कोई कदम उठाएगी। 

लक्ष्मण सिंह यादव और डा. अभयसिंह यादव ने यह भी मांग की कि इस समय दक्षिणी हरियाणा के किसानों के समक्ष डीएपी खाद की कमी भी आड़े आ रही है, इसलिए सरकार को किसानों के लिए पर्याप्त डीएपी खाद उपलब्ध कराना चाहिए। मंत्री ओपी यादव और विधायक सीताराम के साथ सत्यप्रकाश जरावता ने किसानों की जमकर पैरवी की, लेकिन डा. बनवारीलाल का उनके साथ नहीं जाना कई तरह के सवाल खड़े कर रहा है। लोगों में इस बात की चर्चा होने लगी है कि एक किसान का दर्द किसान से जुड़ा हुआ नेता ही समझ सकता है। डाक्टर की पृष्टभूमि से जुड़े नेता को किसानों के हितों से कोई सरोकार नहीं है।

पूरे दक्षिणी हरियाणा के किसानों में डा. बनवारीलाल के प्रति नेगेटिव मैसेज जा चुका है। आने वाले समय में उन्हें इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है। बहरहाल बाजरा खरीद को लेकर अहीरवाल के इन नेताओं की किसानों के लिए की गई पैरवी जल्द ही रंग ला सकती है। पर यहां सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा होता है भाजपा द्वारा बार-बार उपेक्षित रहने के बाद बावजूद अहिरवाल की का किसान उदासीन क्यों है? उसमें न तो संघर्ष करने का जज्बा दिखाई दे रहा और ना ही विरोध के कोई स्वर उठ रहे। सरकार भी दक्षिणी हरियाणा के किसान की किसान आंदोलन से दूरी के साथ-साथ उसकी मनोदशा को अच्छी प्रकार से भांप चुकी है। इसी कारण अहीरवाल के बजाय जहां का किसान आंदोलित है उनकी तरफ ज्यादा ध्यान केंद्रित है।

अब देखना यह है कि सरकारी समर्थन मूल्य पर आखिर सरकार किसानों का बाजरा खरीदते हुए उन्हें कृषि आंदोलन से दूर रहने का ईनाम दे पाती है या नहीं।

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