बालकृष्ण खत्री …….गुडगाँव

मेरा जन्म तौंसा शरीफ जिसे तहसील संघड भी कहते थे में हुआ | मैं वहाँ बिलकुल छोटा सा था लेकिन वहाँ की तौंसा शरीफ की यादें अब भी मुझे अच्छी तरह याद है | तौंसा शरीफ के चार मोहल्ले बड़े प्रसिद्ध थे, पोआदी बस्ती, पचादी बस्ती, उभा बेड़ा, लम्हा बेड़ा की नाम से जाने जाते थे | हम पोआदी बस्ती में रहते थे | हमारे आसपास खत्रियों के जो हमारे खानदान से थे के परिवार रहते थे | प्रात: काल जब मैं घर के बाहर छोटा सा बैठा रहता था जो भी आदमी उधर से गुजरता मुझे कहता, खत्री राजा क्या हाल है ? खत्री राजा की जय हो |

मेरे पिताजी मेन बाजार में परचून की दुकान करते थे | वह बलूचिस्तान में रह करके तौंसा शरीफ आये थे और उन्होंने अपनी दुकान पर परचून की अच्छे स्तर पर शुरूआत की | मेरा नगर ख्वाजा निजामुद्दीन के कारण बहुत प्रसिद्ध था | उनकी बहुत बड़ी दरगाह थी | उनके हजारों पुजारी थे | दूर-दूर से उनकी दरगाह में तीर्थयात्रा करने आते थे | ख्वाजा साहिब हिन्दुओं से बहुत प्यार करते थे | हमारे शहर को तौंसा शरीफ इसलिए भी कहते थे | क्योंकि अजमेर शरीफ से तौंसा शरीफ का सम्बन्ध था | मेरे शहर में एक बहुत बड़े हकीम जिनका नाम हकीम उधों दास था, बहुत प्रसिद्ध थे | वह रोगी का शीशी में पेशाब देख कर बीमारी बता देते थे और दवाई देते थे रोगी बिलकुल ठीक हो जाता था | दोपहर के बाद वो चौपड़ खेलते थे |

किसी मुसलमान ने कहा कि हकीम साहब दोपहर के बाद चौपड़ खेलने में मस्त रहते है उनकी परीक्षा लेने के लिए उस मुसलमान ने बैल का पेशाब शीशी में डाला और हकीम साहब से कहा इसको देखों, हकीम साहब ने चौपड़ खेलते हुए कहा कि इसको भूख लगी है घास खिलाओ |

मेरे नगर में आर्य समाज का एक हाई स्कूल था जिसे संस्कृत एंग्लोवैदिक स्कूल कहते थे | वह मैंने बचपन में सुना था, बहुत बढ़िया स्कूल था | मेरे पिताजी ने मुझे बताया कि स्कूल के हेड मास्टर का नाम निरंजन देव था | बंटवारे के समय जब कुछ मुसलमान उग्र हो गये तो ख्वाजा निजामुद्दीन ने कहा कि इनकी तरफ कोई आँख उठा कर नहीं देख सकता | मैं इनका रक्षक हूँ | मेरे शहर में रामलीला भी होती थी जो हकीम उधों दास भी कराते थे | मेरे नगर के लोग दशहरा देखने के लिए साथ में लगने वाले गाँव मंगरोठा में जाते थे, वहाँ का दशहरा बहुत प्रसिद्ध था | मेरे घर के पास भंजन राम जी का मंदिर था | मेरे घर के सामने सुप्रसिद्ध अध्यापक मास्टर गणेश दास रहते थे | मेरे मामा का धार साथ लगते गाँव घाली में था, जो खत्रियों का था |

मेरे नगर में सुप्रसिद्ध दुकानदार नारायण दास भाटिया, आसानंद, मनोहर लाल, आसा मनोहर के नाम से प्रसिद्ध थे जीवन दास स्वर्णकार, त्रिलोकचंद नारंग आदि बहुत प्रसिद्ध थे जिसमें दौलतराम दुआ भी एक थे | वहाँ आपस में बहुत प्यार और एक दुसरे के सुख-दुःख में शामिल होने का जबरदस्त रिवाज था |

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