धर्मपाल वर्मा चंडीगढ़- भारतीय जनता पार्टी द्वारा उत्तराखंड और गुजरात में मुख्यमंत्री बदलने ,कांग्रेस द्वारा पंजाब में मुख्यमंत्री बदलने के बाद कुछ लोग इस प्रचार में जुटे हुए हैं कि हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल को भी बदला जा रहा है। लेकिन राजनीति को जानने और समझने वाले लोग इन चर्चाओं को गंभीरता से नहीं ले रहे ।लेकिन उनका यह मानना जरूर है कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल पर अब कई तरह के दबाव इस तरह से बढ़ रहे हैं कि इससे उन्हें यह सोचने पर मजबूर जरूर होना पड़ेगा कि समस्याओं का समाधान नहीं निकाला गया तो मौजूदा परिस्थितियां सरकार पर भी और भारतीय जनता पार्टी पर भी भारी पड़ सकती हैं ।यदि हम पिछले 1 सप्ताह की राजनीतिक गतिविधियों और हालातों पर नजर डालें तो पाएंगे कि पार्टी में बैठे उनके विरोधियों और विपक्ष में उनके खिलाफ अभियान चला रहे नेताओं ने उनकी मुश्किलें बढ़ा दी हैं ।करनाल प्रकरण में सरकार के बैकफुट पर आने के बाद भी किसान आंदोलन के मामले में मुख्यमंत्री की चिंताएं घट नहीं पाई हैं ।मतलब उस तरफ से ठंडी हवा नहीं आ पाई है बल्कि मामला और ज्यादा गंभीर होता जा रहा है ।आज के भारत बंद से सरकार की चिंताएं निश्चित तौर पर बढ़ेगी और भारतीय जनता पार्टी को यह भी मान लेना पड़ेगा कि आंदोलन में किसानों का साथ और दूसरे लोग भी दे रहे हैं। आज भारत बंद के दौरान खास तौर पर हरियाणा मे जहां भारतीय जनता पार्टी की सरकार है ,पार्टी संगठन कहीं नजर ही नहीं आया। किसान संगठनों की तरफ से जो लोग बाजार में दुकानें बंद कराने की चेष्टा कर रहे होंगे, रास्ता रोकने के लिए आगे आए होंगे उन्हें ऐसा करने से रोकने के लिए भारतीय जनता पार्टी का कोई कार्यकर्ता नेता घर से बाहर आया ही नहीं। ऐसा लगता है कि सरकार को स्थिति का तो पूरा ज्ञान है परंतु सरकार जनता की बजाए प्रधानमंत्री की चिंता करने को प्राथमिकता दे रही है। क्योंकि अब तो सारी चीजें प्रधानमंत्री के हाथ में है और सत्ता में बैठे लोगों के लिए शायद जनता अब प्राथमिकता नहीं है। क्योंकि कुर्सी तो प्रधानमंत्री से बच पाएगी। हरियाणा सरकार विशेषकर मुख्यमंत्री को आईना दिखाते हुए सारे विशेषज्ञ 23 सितंबर को शहीदी दिवस के रूप में झज्जर में आयोजित बड़े कार्यक्रम का हवाला देते हुए यह आम चर्चा कर रहे हैं कि केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने पाटोदा गांव में आयोजित शहीदी सम्मेलन में न केवल मुख्यमंत्री के सारे विरोधियों को मंच पर इकट्ठा कर दिया , बल्कि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ को कार्यक्रम में ले आने की कूटनीति को क्रियान्वित कर दिया ।वही मंच पर और पंडाल में कहीं भी मुख्यमंत्री का फोटो नजर नहीं आने दिया। जानकार इस बात का दावा कर रहे हैं कि राव इंद्रजीत सिंह ने इस कार्यक्रम के लिए मुख्यमंत्री को औपचारिक निमंत्रण तक नहीं दिया। इस कार्यक्रम में जहां मुख्यमंत्री का फोटो तक नहीं था वही एक दो नहीं बल्कि मंच पर पांच सांसद विद्यमान थे। इनमें एक खुद राव इंद्रजीत सिंह,दूसरे भिवानी के सांसद धर्मवीर सिंह, तीसरे सोनीपत के सांसद रमेश चंद्र कौशिक चौथे रोहतक के सांसद अरविंद शर्मा और पांचवें राज्यसभा सांसद डीपी वत्स शामिल थे । इन सब ने यह दर्शाने और बताने की कोशिश की कि वह राव इंद्रजीत सिंह के पॉलीटिकल इंटरेस्ट को वॉच कर के चल रहे हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ का इस कार्यक्रम में शामिल होना एक बहुत बड़े मैन्यूप्लेशन का संकेत है। यह बात तो हम कर ही सकते हैं कि हरियाणा की जनता अच्छी तरह से समझती है कि यह सारे लोग मुख्यमंत्री के पक्षधर नहीं है। एक तरह से इनके और मुख्यमंत्री के बीच में 36 का आंकड़ा है। इंकार चाहे दोनों करते रहें।इन परिस्थितियों में यह बात निश्चित तौर पर जरूरी है कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल को अपनी राजनीतिक परिसंपत्ति को संभाल कर चले। अब हम 25 सितंबर की बात करते हैं। जींद में इंडियन नेशनल लोकदल के प्रदेश स्तरीय कार्यक्रम में सरकार के खिलाफ जहर उगला गया, सरकार की जमकर आलोचना की गई । इस कार्यक्रम के बाद इनेलो को अपनी राजनीतिक जमीन साफ दिखाई देने लगी । इंडियन नेशनल लोकदल के इसी कार्यक्रम में पार्टी के बड़े नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी वीरेंद्र सिंह भी अपने विचार व्यक्त कर आए। इन चीजों को लोगों ने नजदीक से जाना और समझा है ।उन्हें यह भी पता है कि इस मंच पर आकर चौधरी बिरेंदर सिंह मुख्यमंत्री सहित भारतीय जनता पार्टी पर एक प्रभावी दबाव बनाने की कोशिश में काफी हद तक सफल रहे हैं और यह भी बात सब जानते हैं कि कम से कम चौधरी बिरेंदर सिंह मुख्यमंत्री के समर्थकों में नहीं गिने जाते । इस मामले में एक बात बहुत खास यह है कि हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी का कोई भी नेता मुख्यमंत्री का प्रवक्ता बनकर उनके विरोधियों को काउंटर करने के लिए उस तरह से आगे नहीं आ रहा जैसी अपेक्षा की जाती है।पार्टी के बड़े नेता मुख्यमंत्री के साथ खड़े नजर ही नहीं आ रहे। यह नहीं कहा जा सकता कि मुख्यमंत्री उनका सहयोग नहीं चाहते या यह नेता उनका सहयोग करना नहीं चाहते। 25 सितंबर को मेवात में जननायक जनता पार्टी ने स्वर्गीय चौधरी देवी लाल की प्रतिमा के अनावरण करने के समय जो कार्यक्रम रखा उसमें भी पार्टी पूरी कोशिश के बाद अपेक्षित भीड़ नहीं जुटा पाई और यह बात भी चर्चा का बड़ा विषय रहा कि पार्टी के 10 विधायकों के होते मौके पर तीन विधायक ही पहुंचे और उनमें उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला भी एक थे । दूसरे थे अनूप धानक जो हर हाल में जेजेपी नेताओं के साथ माने जाते हैं और तीसरे थे मंत्री बनने की बड़ी इच्छा रखने वाले देवेंद्र बबली। इन चीजों में जे जे पी के नेताओं को यह सोचने पर मजबूर कर दिया होगा कि मामला लगातार बिगड़ता जा रहा है और अब भारतीय जनता पार्टी के साथ सरकार में रहने का बड़ा नुकसान हो जाएगा क्योंकि मुकाबले में इंडियन नेशनल लोकदल अपनी लोकप्रियता फिर से हासिल करता जा रहा है। लोग इस बात पर विचार करने लगे हैं कि अब यह संभव है कि इस दल के नेता कोई भी फैसला लेने को मजबूर हो सकते हैं ।ऐसा हुआ तो वह सरकार की सेहत के लिए बिल्कुल सही नहीं होगा। 25 सितंबर के कार्यक्रमों के बाद इंडियन नेशनल लोकदल में उत्साह का संचार हुआ है, इसमें कोई संदेह नहीं और इस प्रगति से जे जे पी के नेताओं को फिर से खुद को अपडेट करना पड़ेगा और अब इसी दल के नेता कार्यकर्ता जब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉक्टर अजय सिंह चौटाला से यह पूछने लगे हैं कि दुष्यंत चौटाला के नाम के साथ लगे उपमुख्यमंत्री शब्द के आगे से उप शब्द कब हटेगा तो यह समझा जा सकता है कि मामला गड़बड़ है। आज के भारत बंद का असर हरियाणा में विशेष तौर पर इस तरह से देखा गया कि आज न सड़क पर वाहन चले न रेल मार्ग पर रेलगाड़ियां चली और न ही बाजार आदि खुले। यदि किसानों के आह्वान में दम नहीं था तो सरकार और गठबंधन के कार्यकर्ता जोर जबरदस्ती करने वाले किसानों के प्रतिनिधियों को क्यों नहीं रोक पा रहे थे ।इसका सीधा सा अर्थ यह है कि सरकार के प्रति नाराजगी बढ़ रही है और अब किसानों से कोई बात नहीं की गई तो मामला लगातार गंभीर होता चला जाएगा और सरकार की सारी योजनाएं और विकास कार्य बुरी तरह से प्रभावित होने लगेंगे। अब सरकार बैकफुट पर भी नजर आ रही है यही कारण है कि रविवार को पानीपत में एक पंचायत में राकेश टिकैत में यह बयान देकर किसान आंदोलन को नई चर्चा में ला दिया कि हमने सरकार को दबोच लिया है अब उसके पंख उखाड़ने ही बाकी हैं। इसलिए अब सरकार के पास किसान नेताओं से बात करने का एक अवसर फिर आया है । इस पर एक्सरसाइज नहीं की गई तो कुछ भी महीने बाद होने जा रहे पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी सरकार को विपरीत हालातों का सामना करना पड़ सकता है। Post navigation मुख्यमंत्री मनोहर लाल से वाल्मीकी समाज व अग्रवाल समाज के लोगों ने सीएम हाऊस पर भेंट की हरियाणा : 1 साल के लिए और बढ़ाया गया गुटखा और पान मसाला पर बैन, 7 सितंबर 2022 तक लागू रहेगा